लक्ष्मी की कामना हो तो पहले करें इन्हें प्रसन्न

Edited By ,Updated: 29 May, 2015 08:04 AM

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एक बार लक्ष्मी जी पृथ्वीवासियों से क्रुद्ध हो गईं। इससे पृथ्वी पर अनेक समस्याएं उत्पन्न हो गईं। सभी लोग लक्ष्मी के अभाव में दीन-हीन हो इधर-उधर भटकने लगे। तब ब्राह्यणों में श्रेष्ठ वशिष्ठ ने निश्चय किया कि मैं लक्ष्मी को प्रसन्न कर पुन: इस पृथ्वी पर...

एक बार लक्ष्मी जी पृथ्वीवासियों से क्रुद्ध हो गईं। इससे पृथ्वी पर अनेक समस्याएं उत्पन्न हो गईं। सभी लोग लक्ष्मी के अभाव में दीन-हीन हो इधर-उधर भटकने लगे। तब ब्राह्यणों में श्रेष्ठ वशिष्ठ ने निश्चय किया कि मैं लक्ष्मी को प्रसन्न कर पुन: इस पृथ्वी पर लाऊंगा। वह तत्काल जाकर वैकुंठ में लक्ष्मी से मिले तो उन्हें ज्ञात हुआ कि मां लक्ष्मी क्रुद्ध हैं तथा किसी भी स्थिति में पृथ्वी पर आने को तैयार नहीं हैं। तब वशिष्ठ वहां बैठकर श्री विष्णु की आराधना करने लगे।

जब विष्णु प्रसन्न होकर प्रकट हुए तो वशिष्ठ ने कहा, "हे प्रभो! लक्ष्मी के अभाव में हम सभी पृथ्वीवासी पीड़ित हैं। आश्रम उजड़ गए हैं। आशा-निराशा में बदल चुकी है। जीवन के प्रति उत्साह लगभग समाप्त हो गया है।"

श्री विष्णु तुरंत वशिष्ठ को साथ लेकर लक्ष्मी जी के पास गए और उन्हें मनाने लगे, परंतु लक्ष्मी रूठी ही रहीं। उदास मन, खिन्न अवस्था में ऋषि वशिष्ठ पुन: पृथ्वी लोक में लौट आए और लक्ष्मी जी के निर्णय से सब को अवगत करा दिया। सभी चकित थे कि अब क्या किया जाए?

तब देवताओं के गुरु बृहस्पति ने कहा कि अब तो केवल एक ही उपाय है और वह है ‘श्रीमहालक्ष्मी’ की साधना। इसके बाद सागर मंथन हुआ व श्रीमहालक्ष्मी समुद्र से प्रकट हुईं इसलिए श्री महालक्ष्मी का एक नाम रत्नगर्भा भी है।

सभी देवता और दैत्य उन पर मोहित होकर उनकी प्राप्ति की इच्छा करने लगे। तभी देवराज इंद्र ने उनके लिए सुंदर आसन उपस्थित किया जिस पर भगवती विराजमान हो गईं। लक्ष्मी पूजन की सभी सामग्री एकत्रित कर ऋषियों ने विधिपूर्वक भगवती का अभिषेक किया।

विधिपूर्वक पूजन होने के उपरांत सागर ने भगवती को पीले वस्त्र और विश्वकर्मा ने कमल समर्पित किया। इसके पश्चात मांगलिक वस्त्र और आभूषणों से सुसज्जित होकर देवताओं और असुरों पर एक दिव्य दृष्टि डाली, परन्तु उनमें से उन्हें जीवन साथी के रूप में कोई योग्य वर दिखाई न पड़ा क्योंकि उन्हें तो श्री भगवान विष्णु की खोज थी। ज्यों ही हरि दिखाई पड़े, त्यों ही उन्होंने हाथों में पकड़ी कमलों की माला भगवान के गले में अर्पण कर दी।

भगवान नारायण ने उन्हें अपने वाम अंग में स्थान दिया और वह भगवान विष्णु के पास विराजित हो गईं। तभी से वह सदा भगवान के संग ही रहती हैं। जिस जातक को लक्ष्मी की कामना हो उसे सर्वप्रथम भगवान विष्णु को प्रसन्न करना चाहिए।

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