शुभ समय पर किया गया पारण ही देगा निर्जला एकादशी के उपरांत पुण्यफल

Edited By ,Updated: 30 May, 2015 08:26 AM

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निर्जला एकादशी को करने से वर्ष भर में पड़ने वाली 24 एकादशियों के व्रत के समान फल मिलता है। द्वादशी में स्नान करने के पश्चात ब्राह्मणों को भोजन करवा कर शुद्ध पारण के समय के अनुसार व्रत को खोलें।

निर्जला एकादशी को करने से वर्ष भर में पड़ने वाली 24 एकादशियों के व्रत के समान फल मिलता है। द्वादशी में स्नान करने के पश्चात ब्राह्मणों को भोजन करवा कर शुद्ध पारण के समय के अनुसार व्रत को खोलें।

एकादशी का व्रत जब समाप्त किया जाता है तो उसे पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन यानि द्वादशी को सूर्योदय के उपरांत पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि के खत्म होने से पूर्व ही कर लेना चाहिए। किन्हीं विशेष योगों के तहत अगर द्वादशी तिथि सूर्योदय से पूर्व ही समाप्त हो गई हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के उपरांत ही होता है। द्वादशी तिथि के अंदर पारण न करना अपराध करने के समान फल देता है।

पारण का शुभ समय

30 को, पारण (व्रत तोडऩे का) समय = 05:28 से 08:12

पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय = 20:43

एकादशी तिथि समाप्त = 29/मई/2015 को 19:07 बजे

व्रत से मिलने वाला पुण्यफल : पद्मपुराण के अनुसार निर्जला एकादशी व्रत के प्रभाव से जहां मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, वहीं अनेक रोगों की निवृत्ति एवं सुख, सौभाग्य में वृद्धि होती है। इस व्रत के प्रभाव से चतुर्दशीयुक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है वही फल इस व्रत की महिमा सुनकर मनुष्य पा लेता है। करोड़ों गोदान करने तथा सैंकड़ों अश्वमेध यज्ञ करने के समान इस व्रत का पुण्यफल है। विभिन्न प्रकार के अन्न एवं वस्त्रों से ब्राह्मणों को प्रसन्न  एवं संतुष्ट करने वाले प्राणियों के लिए यह व्रत किसी रामबाण से कम नहीं है क्योंकि व्रत के प्रभाव से मनुष्य की बीती हुई  तथा आने वाली 100 पीढिय़ों को भगवान वासुदेव के परमधाम की प्राप्ति होती है।

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