सभी पापों का सम्पूर्ण नाश करके भक्त को सभी सुखों की प्राप्ति करवाता हैं ये व्रत

Edited By ,Updated: 28 Jun, 2015 08:42 AM

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पुरुषोत्तम मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत मनुष्य के सभी पापों का सम्पूर्ण नाश करता है । पुरुषोत्तम मास को अधिक एवं मल मास भी कहते हैं । इस मास में आने वाली एकादशियां पुरुषोत्मा एकादशियों.....

पुरुषोत्तम मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत मनुष्य के सभी पापों का सम्पूर्ण नाश करता है । पुरुषोत्तम मास को अधिक एवं मल मास भी कहते हैं । इस मास में आने वाली एकादशियां पुरुषोत्मा एकादशियों के नाम से जानी जाती हैं । वैसे तो सालभर में कुल 24 एकादशियां आती हैं परन्तु अधिक मास में 2 एकादशियां बढ़ जाती हैं, जिससे एकादशियों की संख्या 26 हो जाती है । पुरुषोत्तम मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी 28 जून को है, जो पद्मनी  एवं कामदा एकादशी के रूप में  जानी जाती है। इस एक एकादशी व्रत के प्रभाव से मनुष्य को सभी एकादशियों के व्रत का पुण्य फल प्राप्त हो जाता है । 

व्रत में क्या करें: व्रत करने का संकल्प कर सच्चे भाव से व्रत करना चाहिए । इस व्रत से बढ़कर अन्य कोई यज्ञ, तप, दान या पुण्य नहीं है । जिसने ज्ञान एकादशी का व्रत किया हो उसे पृथ्वी के सभी तीर्थ और क्षेत्रों के दर्शन एवं स्नान का फल मिलता है । सूर्योदय से पूर्व उठकर प्रभु का पूजन करें। श्रेष्ठ ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें दान दें । व्रत में राधिका सहित भगवान श्री कृष्ण और लक्ष्मी जी सहित भगवान विष्णु और मां पार्वती जी सहित भगवान शिव का विधिपूर्वक पूजन करें । व्रत में पहले पहर की पूजा नारियल, दूसरे पहर की बेलपत्र, तीसरे पहर की सीताफल और चौथे पहर की सुपारी से करना श्रेष्ठ कर्म है । मंदिर में दीपदान करने तथा हरिनाम संकीर्तन करने से बड़ा व्रत में कोई कर्म नहीं है ।  

किस पूजन से क्या फल प्राप्त होता है :  वैसे तो पुरुषोत्तम मास में कोई भी कर्म किसी विशेष इच्छा से नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि  शास्त्रानुसार इस मास में सभी कर्म नि:स्वार्थ भाव से करने का प्रावधान है । सर्वशक्तिमान एवं सर्वव्यापक परमात्मा सभी के मन की जानते हैं तथा अपने भक्तों पर सदा कृपा करते हुए उन्हें बिना मांगे ही सब कुछ प्रदान कर देते हैं, फिर भी जो भक्तों को इस व्रत में प्रथम पहर के पूजन से अगिनष्टोम यज्ञ का फल, दूसरे पहर के पूजन से बाजपेय यज्ञ, तीसरे पहर के पूजन से अश्वमेघ यज्ञ और चौथे पहर के पूजन से राजसूय यज्ञ के समान उत्तम फल की प्राप्ति होती है । 

क्या न करें : वैसे तो इस एकादशी व्रत में जल का भी सेवन नहीं करना चाहिए परन्तु यदि ऐसा सम्भव न हो तो व्रत में कांसे के बर्तनों में भोजन न करें । मूंग, मसूर, चना, कद्दू, शाक और मधु का भी प्रयोग न करें । व्रत में जो कुछ खाएं वह अपने घर में ही तैयार करें अर्थात पराए अन्न का सेवन कभी न करें । व्रत में क्रोध न करें, झूठ न बोलें और न ही किसी की निंदा व चुगली करें । ब्राह्मणों और गुरु की निंदा करना महापाप है ।

क्या कहते हैं विद्वान
महात्मा अमित चड्ढा जी के अनुसार भगवान विष्णु जी के प्रिय भक्तों को सदा ही एकादशी व्रत का पालन सच्चे भाव से करना चाहिए । उन्होंने कहा कि पद्मपुराण के अनुसार पक्षियों में गरुड़, नदियों में गंगा, मासों में पुरुषोत्तम मास जितना श्रेष्ठ है, उतना ही तिथियों में एकादशी तिथि का यह व्रत पुण्यफलदायक है । इस व्रत में बिना मांगे ही भक्त को सभी सुखों की प्राप्ति होती है । वैसे तो पूरा मास दीपदान करने का महात्मय है परंतु एकादशी व्रत में दीपदान करने तथा रात्रि संकीर्तन से बड़ा कोई कर्म नहीं है । व्रत का पारण 29 जून को प्रात: 9.02 बजे से पहले करना चाहिए ।

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