इस वैद्य का नाम जपने से ही समस्त पीड़ाएं हो जाती हैं दूर

Edited By ,Updated: 30 Jun, 2015 10:31 AM

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ज्ञानियों में अग्रगण्य, सकल गुणनिधान, भक्तिस्वरूपा सीता जी के कृपापात्र श्री हनुमान जी का चरित्र अत्यंत सुंदर एवं कल्याणकारी तो है ही, साथ ही साथ कलिकाल के विभिन्न रोगों से ग्रस्त जीवों के उद्धार का मार्गदर्शक भी है ......

ज्ञानियों में अग्रगण्य, सकल गुणनिधान, भक्तिस्वरूपा सीता जी के कृपापात्र श्री हनुमान जी का चरित्र अत्यंत सुंदर एवं कल्याणकारी तो है ही, साथ ही साथ कलिकाल के विभिन्न रोगों से ग्रस्त जीवों के उद्धार का मार्गदर्शक भी है । श्री हनुमान जी के चरित्र का विश्लेषण करके उसे यथा मति हृदयंगम करने से हमें सच्ची दीनता, यथार्थ शरणागति, अलौकिक अनुरक्ति, असाधारण निर्भरता और गंभीर ज्ञान के स्वरूप का पता चलता है ।

श्री हनुमान जी के वैद्य रूप के बारे में गोस्वामी तुलसीदास जी ने ‘कवितावली’ में बहुत ही सुंदर रूप में लिखा है कि ‘विराट पुरुष के हृदय में रावण रूपी रोग बढ़ रहा था, जिससे व्याकुल होकर वह दिन-प्रतिदिन सभी प्रकार के सुखों से हीन होता जा रहा था । देवता, सिद्ध और मुनिगण अनेक प्रकार की औषधि करके थक गए, किन्तु न तो वह शोकरहित होता था, न कुछ चैन ही पाता था । तब मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी की आज्ञा से रसवैद्य श्रीहनुमान जी ने समुद्र पार करके और लंका रूपी सिकोरे को ठीक करके राक्षस रूपी बूटियों के रस में लंका के सोने और रत्नों को यत्नपूर्वक फूंक करके (मृगांक) एक विशेष रसौषधि बना डाली । यथा-
रावनु सो राजरोगु बाढ़त विराट उर 
दिनु दिनु विकल, सकल सुख रांक सो।
नाना उपचार करि हारे सुर, सिद्ध मुनि,
होत न विसोक, औ पावै न मनाक सो।
राम की रजाइ ते रसाइनी समीर सूनु,
उतरि पयोधि पार सोधि सरवाक सो।
जातु धान बुट पुटपाक लंक जातरुप- 
रतन जतन जारि कियो है मृगांक सो।।

‘चम्पू रामायण’ में महाराज भोज ने श्री हनुमान जी के वैद्यरूप का बहुत सुंदर वर्णन किया है । अशोक वाटिका में तो दशानन रावण के वज्र वचनों से विदीर्ण सीता जी के कर्णों के भीतर घाव की चिकित्सा के लिए हनुमान जी के वचन औषधि रूप थे तथा उन्हें विश्वास दिलाने के लिए रघुवंश से संबंधित थे । मधुर मधु के समान श्री राम का चरित सुनने से सीता जी का कष्ट दूर हो गया ।
सीता मन बिचार कर नाना। मधुर बचन बोलेउ हनुमाना।।
रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा।।(मानस/सुंदरकांड)

श्रीलक्ष्मण जी के शरीर में नया प्राण संचारित करने के संदर्भ में महाराज प्रवर सेन ने अपने सेतुबंध काव्य में श्री हनुमान जी के वैद्यरूप पर बड़े ही मार्मिक शब्दों में लिखा है, कि सोऽपि च पवनसुतानीतधराधरौषधि वितीर्ण जीवाम्यधिक :। तथा संहिता चापशरौ निशाचरै: सह योद्धमारब्ध । अर्थात लक्ष्मण जी ने पवनसुत द्वारा लाई गई पर्वतीय औषधीय से नवजीवन पाकर मूर्छा रहित होकर दोगुना तेज व बल से राक्षसों से युद्ध करना पुन: आरंभ किया । मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने भगवती सीता जी को बताया था कि  श्री हनुमान जी ने द्रोणाचल पर्वत को लाकर लक्ष्मण जी के घाव (शल्य) की चिकित्सा की और समस्त संसार को निष्कण्टक बना दिया है । यथा-
आनीता द्रोणशैलेन सौमित्रे: शल्यहरिणा।
अक्रियन्त जगन्त्येव निश्शल्यानि हनुमता।।

श्री हनुमान जी द्वारा स्वेच्छापूर्वक वृहद्रूप धारण करने के अनेक उदाहरण श्रीरामचरितमानस से लेकर अन्य ग्रंथों में भी मिलते हैं । भगवान श्रीराम ने श्रीलक्ष्मण से किष्किन्धा में हनुमान जी के मिलने पर कहा था कि यह तो वृहदाकार मोक्ष रूप में प्रकट हुए हैं । स्वर्णमय पर्वत भी उनकी भुजाओं की बराबरी नहीं कर सकता था । यह प्रतीत होने लगा कि सभी वेद-शास्त्र ही आकर खड़े हुए हैं । श्रीहनुमान जी के मुख की आभा और स्वर्णिम उज्ज्वल कुंडलों से चमकता दैदीप्त स्वरूप देखकर तीनों लोकों के स्वामी भी चकित हो गए । श्रीराम जी ने श्रीलक्ष्मण जी से कहा कि व्याकरण से शुद्ध भाषा, वेदों तथा दोषरहित ज्ञान से दुर्ज्ञेय मोक्ष पद ही वानर रूप लेकर उपस्थित है ।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमान जी के मंगलमय स्वरूप का वर्णन बहुत ही रोचक ढंग से किया : 
स्वर्न-सैल-संकाय कोटि रबि-तरून-तेज-धन।
उर विसाल, भुजदंड चंड नख बज्र बज्रतन।।
पिंग चपन, भृकुटी कराल रसना दसनानन।
कपीस केस करकस लंगूर खल-दल-बल-भानन।।
कह तुलसीदास बस जासु उस मारुत सुत मूरति विकट ।

संताप पाप तेहि पुरुष पहिं सपनेहु नहि आवत निकट।।(हनुमान बाहुक)

श्री हनुमान जी सदैव ही विभिन्न रूप धारण कर मानव कल्याण तथा धर्मशास्त्र की रक्षा करते हैं । जिसकी जैसी भावना होती है वे उसी रूप में उसे दर्शन देते हैं । श्री हनुमान चालीसा में भी लिखा है कि -
नासै रोग हरे सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
जिसके नाम जपने मात्र से सभी रोग व समस्त पीड़ाएं दूर हो जाएं तो वह निश्चय ही वैद्य है अत: हनुमान जी का वैद्यरूप नमनीय है ।

—रामचंद्र तिवारी  

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