वास्तु के अनुसार जानें किस दिशा पर होना चाहिए कौन सा कक्ष

Edited By ,Updated: 30 Jun, 2015 01:31 PM

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सुख, समृद्धि,सम्पत्ति, यश प्राप्ति तथा स्वास्थ्य लाभ के लिए वास्तुशास्त्र के कुछ उपयोगी सूत्र अपनाना आवश्यक हैं । आप भी इन सूत्रों को अपनाकर अपने जीवन को सुखी एवं सफल ....

सुख, समृद्धि,सम्पत्ति, यश प्राप्ति तथा स्वास्थ्य लाभ के लिए वास्तुशास्त्र के कुछ उपयोगी सूत्र अपनाना आवश्यक हैं । आप भी इन सूत्रों को अपनाकर अपने जीवन को सुखी एवं सफल बनाइए-

1. भोजन कक्ष : (सुख-शांति एवं पाचन के लिए शुभदायक स्थिति)

(क) भवन में भोजन कक्ष पूर्व अथवा पश्चिम दिशा में होना चाहिए ।

(ख) उत्तर+पूर्व (ईशान कोण) में भोजनालय नहीं बनाना चाहिए ।

(ग) पश्चिम दिशा में भोजन कक्ष से व्यक्ति को शांति एवं सुख प्राप्त होता है । पाचन योग भी अच्छा बनता है । भोजन कक्ष से आशय है जहां भोजन किया जाता है । इसे रसोई कक्ष नहीं मानें ।

2. स्नानघर : (क) भवन में स्नान घर का सर्वोत्तम स्थान उत्तर पूर्व दिशा मानी गई है ।

(ख) पानी का बहाव भी उत्तर पश्चिम दिशा में होना शुभदायक माना गया है ।

(ग) वास्तु के अनुसार स्नान घर व शौचालय पृथक-पृथक होने चाहिएं । यदि स्नान घर व शौचालय एक स्थान पर बनाने पड़ें तो इन्हें पश्चिमोत्तर दिशा में बनाएं ।

(घ) गीजर का संबंध अग्रि से होने के कारण उसे उत्तर-पूर्व दिशा में नहीं लगाना चाहिए ।

3. पूजा कक्ष : पूजा घर एवं प्रार्थना स्थल उत्तर-पूर्व कोण में होना चाहिए । ईशान कोण उत्तर पूर्व दिशा सदा साफ-सुथरा, बाधा रहित व भारी वजन से रहित होना चाहिए । पूजा कक्ष में ज्ञान प्राप्ति के लिए उत्तर दिशा और धन प्राप्ति के लिए पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजा करनी चाहिए । ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सूर्य, इंद्र का मुख पूर्व या पश्चिम में होना चाहिए । कुबेर, दुर्गा, भैरव आदि का मुख दक्षिण दिशा में होना चाहिए ।
(क) उत्तर-पूर्व (ईशान दिशा) में पूजा कक्ष से धन लाभ, स्वास्थ्य लाभ एवं सुख शांति प्राप्त होती है । यहां पूजा स्थान सर्वाधिक उपयुक्त माना गया है । इसे हल्का खुला रखें तो शुभ है ।

(ख) पूर्व दिशा में पूजा यश प्रदान करती है ।

(ग) उत्तर दिशा में पूजा कक्ष से ज्ञान व समृद्धि की प्राप्ति होती है ।

(घ) मिल या इंडस्ट्रीज में ईशान कोण में ही मंदिर या पूजा कक्ष का निर्माण करना चाहिए ।

4. रसोईघर : (क) रसोईघर के लिए पूर्व+दक्षिण का कोण अर्थात अग्रि कोण भी शुभ माना गया है ।

(ख) दूसरा विकल्प उत्तर+पश्चिम-वायव्य कोण में माना गया है ।

(ग) रसोईघर उत्तर दिशा, उत्तर पूर्व दिशा, दक्षिण-पश्चिम, मध्य-दक्षिण क्षेत्र में नहीं होना चाहिए ।

(घ) रसोईघर, पूजा कक्ष, शौचालय, शयनकक्ष, सीढी, अध्ययन कक्ष, परस्पर ऊपर-नीचे नहीं होने चाहिएं ।

(च) रसोईघर में बर्तनों की अलमारी दक्षिण-पश्चिम में होनी चाहिए ।

(छ) पानी का नल रसोई घर के उत्तर-पूर्व की ओर होना चाहिए ।

(ज) खाना पकाने की स्लैब पूर्वी व उत्तर दिशा की दीवार को छुए बिना पश्चिम, दक्षिण दिशा में बना सकते हैं ।

(झ) बिजली के उपकरण जैसे मिक्सी, ग्राइंडर, तंदूर, ओवर, टोस्टर आदि रसोईघर के अग्रि क्षेत्र में रखना अच्छा माना गया है । गीजर भी यहीं रखें ।

(ट) रसोईघर सुविधाजनक आरामदायक, कीटरहित, धुआं रहित, गर्मी रहित एवं हवायुक्त होना चाहिए ।

(ठ) रसोईघर में फ्रिज वायव्य कोण में होना चाहिए ।

5. तहखाना: वर्तमान युग में स्थान की कमी के कारण भवन में तहखाना, भूमिगत भवन का निर्माण भी होने लगा है । इसके नियम इस प्रकार हैं-

(क) तहखाना भवन के पूर्वी-उत्तरी व उत्तरी-पूर्वी भाग में बनाना चाहिए । दक्षिण-पश्चिम, उत्तर-पश्चिम, दक्षिण-पूर्व दिशा क्षेत्र में तहखाना कदापि नहीं बनाना चाहिए । यह अशुभकारी है।

(ख) चूल्हे के आकार का तलघर भी भवन के लिए हानिकारक माना जाता है । ये सामान्य बातें ही भवन को शुभदायक बनाने में सहयोगी, यशदायक, स्वास्थ्यदायक होती हैं ।

—ब्रह्मर्षि पं. नारायण शर्मा, कौशिक शास्त्री

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