वास्तु दोषों को चुन-चुन कर मारता है गणेशजी का यह स्वरूप

Edited By ,Updated: 01 Jul, 2015 08:08 AM

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सनातन धर्म में वरदविनायक भगवान गणेश का अभूतपूर्व स्थान है । पूजा-अनुष्ठान हो अथवा कर्मकांड, हर शुभ मंगल कार्य की शुरुवात के समय सबसे पहले भगवान गणेश का पूजन करने का विधान हमारे वैदिक व पौराणिक शास्त्रों में बताया गया है.....

सनातन धर्म में वरदविनायक भगवान गणेश का अभूतपूर्व स्थान है । पूजा-अनुष्ठान हो अथवा कर्मकांड, हर शुभ मंगल कार्य की शुरुवात के समय सबसे पहले भगवान गणेश का पूजन करने का विधान हमारे वैदिक व पौराणिक शास्त्रों में बताया गया है। गणेशजी बुद्धि रिद्धी और सिद्धि के अधिपति होकर विघ्न विनाशक भी हैं । संस्कृत शब्द गणपति का अर्थ है गणों का स्वामी । प्रताक्ष्य व अप्रताक्ष्य रूप से मनुष्य जीवन के हर क्षेत्र में भगवान श्रीगणेश जी की संलिप्तता हैं ।

श्रीगणेश ही देवताओं के मूल प्रेरक हैं । शस्त्रनुसार श्रीगणेश ही सर्व देवगणों में अग्रणी माने जाते हैं तथा उनके प्रथक-प्रथक स्वरूप व नामों का उल्लेख भी धार्मिक साहित्य में मिलता हैं । परंतु क्या आप जानते हैं की भगवान श्रीगणेश जी के कुछ विशिष्ट स्वरूपों का वास्तुशास्त्र में अत्यधिक महत्व है । या दूसरे शब्दों में कहें की श्रीगणपति ही स्वयं में संपूर्ण साकार वास्तु विज्ञान हैं । इस लेख के माध्यम से हम अपने पाठकों को बताने जा रहे हैं गणेशजी का वो स्वरूप जिससे समाप्त हो सकते हैं वास्तु दोष । 

गणेश पुराण के इस श्लोक अनुसार, "प्राच्यां रक्षतु बुद्धिशा, अग्नेयां सिद्धिदायक: दक्षिणस्याम उमापुत्रो, नैऋत्यं तु गणेश्वर, प्रतिच्यां विघ्नहर्ताव्यां वायव्याम गजकर्णक:" अर्थात गणेशजी के विभिन्न स्वरूप दस दिशाओं में सुरक्षा करते हैं। शास्त्रनुसार गणेशजी की विधिवत स्थापना व पूजा-पाठ से नौ ग्रहों के दोष भी दूर हो जाते हैं । मुद्गल पुराण अनुसार श्वेतार्क गणपति की पूजा सर्वश्रेष्ठ मानी गई है । श्वेतार्क गणपति के पूजन से जीवन में भौतिक सुख एवं समृद्धि का प्रवाह होता है । 

- गणेशजी के सुमुख स्वरुप से सूर्य के दोष को दूर होते है । 

- एकदंत स्वरुप से बुध ग्रह के दोष दूर होते है । 

- धूम्रकेतु सरूप से केतु के दोष दूर होते हैं । 

- गजानन स्वरुप से शनि ग्रह के दोष दूर होते है । 

- भालचंद्र स्वरुप से चंद्रमा के दोष दूर होते है । 

- लंबोदर से बृहस्पति के दोष दूर होते हैं । 

- गजकर्णक से राहू के दोष दूर होते हैं।

- विनायक स्वरुप से शुक्र ग्रह के दोष दूर होते है । 

- गणाध्यक्ष स्वरुप से मंगल ग्रह के दोष दूर होते है। 

- कपिल, विकट व विघ्न-नाश स्वरुप से क्रमश वरुण यम व हर्षल गृह के दोष दूर होते हैं । 
गणपति की आराधना के बिना वास्तुपुरुष की संतुष्टि असंभव है । गणेशजी आराधना से वास्तु दोषों का शमन होता है । सिंदूरी रंग वाले गणेश का स्वरूप के पूजन से सर्वमंगल होता है । घर के मेन गेट पर गणेशजी का स्वरूप लगाकर उसके ठीक पीछे उनका दूसरा स्वरूप इस प्रका र लगाएं कि दोनों की पीठ एक दूसरी से मिली रहें, इससे वास्तुदोष शांत होता है ।

घर या ऑफिस की उतार दिशा की दीवार पर घी मिश्रित सिंदूर से स्वस्तिक बनाने से वास्तुदोष का प्रभाव कम होता है । घर या ऑफिस में श्रीगणेश का स्वरूप लगते समय यह ध्यान रखें की इन का मुंह दक्षिण-पश्चिम दिशा में न हो । गणेशजी को वो स्वरूप लगाएं जिनमे उनकी सूंड उनके बाएं हाथ की तरफ घूमी हुई हो । सूंड में लड्डू होना चाहिए । ध्यान रहे कि चित्र या प्रतिमा में चूहा और लड्डू अवश्य हों । ध्यान रखें कि घर में बैठे तथा व्यवसायिक स्थल पर खड़े गणेश का स्वरूप लगाएं । ध्यान रखे की खड़े गणेशजी के दोनों पैर जमीन पर हों । घर की उत्तरपूर्व दिशा में गणेशजी का स्वरूप लगाना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है ।

आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

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