Edited By ,Updated: 02 Jul, 2015 08:09 AM
सनातन धर्म के वैदिक व पौराणिक शास्त्रों में पूजा-पाठ से संबन्धित अनेक निर्देश दिए हुए हैं । नित्य कर्म के संदर्भ में इशौप्निषद जैसे कुछ शास्त्रों में दैनिक कर्म से लेकर पूजन प्रणाली और देव दर्शन तक निर्देश दिए हुए हैं ....
सनातन धर्म के वैदिक व पौराणिक शास्त्रों में पूजा-पाठ से संबन्धित अनेक निर्देश दिए हुए हैं । नित्य कर्म के संदर्भ में इशौप्निषद जैसे कुछ शास्त्रों में दैनिक कर्म से लेकर पूजन प्रणाली और देव दर्शन तक निर्देश दिए हुए हैं । शास्त्रों ने कुछ निर्देश देवस्थान जाने को लेकर भी बनाए गए हैं । कुछ निर्देश सामान्य हैं जैसे स्नान करके ही मंदिर जाना, साफसुथरे कपड़े पहन कर ही मंदिर जाना, तथा सदैव शुद्ध होकर ही देवस्थान जाना व पवित्र स्थिति में ही देवदर्शन करना इत्यादि ।
शास्त्रों में ऐसा वर्णन है कि श्रीभगवान के दर्शन मात्र से ही जन्म-जानमंतार के पाप धुल जाते हैं । इसी कारण श्रीभगवान के दर्शन पाने हेतु कई प्रकार के अनुष्ठान और जतन किए जाते हैं । भक्तगण तीर्थों, देवालयों, धार्मिक स्थलों व मंदिरों में देवी-देवताओं के दर्शन हेतु जाते हैं । मान्यतानुसार सर्व देवी-देवताओं की मूर्तियों के दर्शन मात्र से पुण्य ही प्राप्त होता है परंतु ऐसा एक अपवाद शास्त्रों में उल्लेखित मिलता है । मान्यतानुसार भगवान श्रीकृष्ण के पीठ के दर्शन करना शास्त्रों में वर्जित माना गया है ।
भगवान श्री कृष्ण की पीठ के दर्शन ना करने का नियम शास्त्रों में दिया गया है । इसलिए जब भी कृष्ण मंदिर जाएं तो यह जरुर ध्यान रखें कि भगवान कृष्ण की मूर्ति के पीठ के दर्शन कभी ना करें । दरअसल शास्त्र सुख सागर में पीठ के दर्शन न करने के संबंध में भगवान श्रीकृष्ण की लीला जुड़ी हुई है । कृष्णलीला अनुसार जब भगवान श्रीकृष्ण जरासंध से युद्ध कर रहे थे तब जरासंध का एक साथी असूर कालयवन भी उनसे युद्ध करने आ पहुंचा ।
कालयवन कृष्ण के समक्ष उन्हे ललकारने लगा । तब श्रीकृष्ण वहां से भाग निकले । रणभूमि से भागने के कारण ही उनका नाम रणछोड़ पड़ा । जब श्रीकृष्ण भाग रहे थे तब कालयवन भी उनके पीछा करने लगा । इस तरह श्रीकृष्ण रणभूमि से भागे क्योंकि कालयवन के पूर्व जन्म के पुण्य बहुत ज़्यादा थे व श्रीकृष्ण किसी को भी तब तक सजा नहीं देते थे जब कि पुण्य का बल शेष रहता था। कालयवन श्रीकृष्ण की पीठ देखते हुए भागने लगा व इसी तरह उसका अधर्म बढ़ने लगा क्योंकि भगवान की पीठ पर अधर्म का वास होता है ।
शास्त्रनुसार श्रीभगवान की पीठ के दर्शन करने से अधर्म बढ़ता है । जब कालयवन के पुण्य का प्रभाव खत्म हो गया तब श्रीकृष्ण एक गुफा में चले गए । जहां मुचुकुंद नामक राजा निद्रासन में था । मुचुकुंद को देवराज इंद्र का वरदान था कि जो भी व्यक्ति राजा को नींद से जगाएगा वो राजा की दृष्टि पढ़ते ही वह भस्म हो जाएगा। कालयवन ने मुचुकुंद को श्रीकृष्ण समझकर उठा दिया व राजा की नजर पढ़ते ही वह भस्म हो गया ।
अत: श्रीभगवान की पीठ के दर्शन नहीं करने चाहिए क्योंकि इससे पुण्य कर्म का प्रभाव कम होता है व अधर्म बढ़ता है । भगवान श्रीकृष्ण का सदैव सनमुख होकर दर्शन करें । यदि भूलवश उनकी पीठ के दर्शन हो जाएं तो भगवान से याचना करें । शास्त्रानुसार इस पाप से मुक्ति हेतु कठिन चांद्रायण व्रत करना होता है । शास्त्रों मे चांद्रायण व्रत हेतु निर्देश दिए गए हैं । निर्देश के अनुसार चंद्रमा के घटने व बढ़ने के क्रम मे व्रती को खान-पान में कटौती या बढ़ोतरी करना पड़ती है व अमावस्या को निराहार रहना पड़ता है व पूर्णिमा यह व्रत पूर्ण हो जाता है ।
आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com