अटकी योजनाओं के अच्छे दिन

Edited By ,Updated: 04 Jul, 2015 09:49 AM

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आखिरकार खुशखबरी आई देसी उद्योग जगत के लिए भी और केंद्र में बैठी नरेंद्र मोदी सरकार के लिए भी।

मुंबईः आखिरकार खुशखबरी आई देसी उद्योग जगत के लिए भी और केंद्र में बैठी नरेंद्र मोदी सरकार के लिए भी। असल में जो अटकी परियोजनाएं अर्थव्यवस्था को काफी समय से तकलीफ दे रही थीं, उनमें लगातार कमी आ रही है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (सीएमआईई) इस साल अप्रैल-जून तिमाही में ऐसी परियोजनाओं की संख्या साल भर पहले के मुकाबले आधी ही रह गई है।

नई सरकार का कमान संभालना, स्थिर नेतृत्व होना और परियोजनाओं को अधिक तेजी से मंजूरी मिलना ही परियोजनाओं में तेजी की वजह बताई जा रही हैं। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के कार्यकाल के अंतिम 3 सालों में बड़ी तादाद में बुनियादी ढांचा परियेाजनाएं रुकी पड़ी थीं। इसकी बड़ी वजह पर्यावरण संबंधी मंजूरी नहीं मिलना, भूमि अधिग्रहण में दिक्कत आना तथा कर्ज महंगा होना थी। उस दौरान निजी क्षेत्र की करीब 585 और सार्वजनिक क्षेत्र की 161 परियोजनाएं रुकी हुई थीं। इन 746 में से करीब आधी परियोजनाओं में अब हलचल दिख रही है।

मोदी सरकार के लिए खास तौर पर यह अच्छी खबर है क्योंकि उसने अटकी हुई 100 शीर्ष परियोजनाओं को मंजूरी देना अपनी सबसे बड़ी प्राथमिकता बताया था। इस बात की तसदीक डॉयचे बैंक भी कर रहा है। 22 जून की अपनी रिपेार्ट में उसने बताया कि वित्त वर्ष 2013 की अंतिम तिमाही के बाद से सबसे अधिक परियोजनाओं को मंजूरी 2015 की अंतिम तिमाही में ही मिली। कोयला क्षेत्र में 14 मंजूरियां दी गईं और धातु क्षेत्र को भी जमकर फायदा मिला।

दिसंबर 2014 में कुल 8.8 लाख करोड़ रुपए की परियोजनाएं अटकी थीं, जो राशि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की 7 प्रतिशत के बराबर है। उसके बाद से अटकी परियोजनाओं की संख्या लगातार गिर रही है और ब्याज दरों में कमी के साथ परियोजनाएं दौडऩे लगी हैं लेकिन खबर पूरी तरह अच्छी भी नहीं है। सीएमआईई के मुताबिक चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भारतीय कंपनियों की ओर से नया पूंजीगत व्यय धीमा ही रहा है क्योंकि कई कंपनियां अब भी कच्चे माल की किल्लत और बाजार के अस्थिर माहौल से जूझ रही हैं। बिजली उत्पादन क्षेत्र में 27,700 करोड़ रुपए के निवेश वाली 6 परियोजनाएं रद्द हो गई हैं। रिलायंस पावर ने ठेका मिलने के 6 साल बाद भी जमीन का इंतजाम नहीं होने के कारण 25,000 करोड़ रुपए की तिलैया अल्ट्रा मैगा पावर परियोजना छोड़ दी है।

वित्त वर्ष 2015 में 3.7 लाख करोड़ रुपए की परियोजनाएं आरंभ की गईं और जून तिमाही में ही 1 लाख करोड़ रुपए की परियोजनाएं आरंभ हुई हैं। इसका मतलब है कि वित्त वर्ष 2016 के अंत तक कम से कम 4 लाख करोड़ रुपए की परियोजनाएं आरंभ हो चुकी होंगी। जून 2015 की तिमाही के दौरान 1.15 लाख करोड़ रुपए के नए निवेश की घोषणाएं की गईं, जो जून 2014 की तिमाही की अपेक्षा 33 फीसदी ज्यादा हैं। लगभग 498 नए निवेश प्रस्तावों की घोषणा की गई। जो कंपनियां पूंजीगत निवेश कर रही हैं, उनमें रिलायंस इंडस्ट्रीज प्रमुख है, जो गुजरात में अपने संयंत्र का विस्तार कर रही है और वायरलेस सेल्युलर एवं डेटा सेवा लाने जा रही है। रिलायंस ने वायरलेस सेवाओं में ही ढाई लाख करोड़ रुपए के निवेश का ऐलान किया है। गौतम अदाणी के अदाणी समूह ने भी बंदरगाह, सौर ऊर्जा व बिजली से जुड़ी विभिन्न परियोजनाओं में 2 लाख करोड़ रुपए के निवेश के समझौतों पर दस्तखत किए हैं।

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