राजा ने यूं करी मृत्यु की तैयारी, उपहार स्वरूप पाई बहुमूल्य मणि

Edited By ,Updated: 21 Jul, 2015 08:52 AM

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एक राजा ने एक रात्रि स्वप्न देखा कि कोई उससे कह रहा है कि, ‘‘कल रात विषैले सर्प के दंश से तुम्हारी मृत्यु होगी। वह सर्प तुम्हारे महल से कुछ दूर बाईं दिशा में लाल फूल वाले पेड़ की जड़ में रहता है। वह तुम्हारे पूर्व जन्म की दुश्मनी का बदला लेने को...

एक राजा ने एक रात्रि स्वप्न देखा कि कोई उससे कह रहा है कि, ‘‘कल रात विषैले सर्प के दंश से तुम्हारी मृत्यु होगी। वह सर्प तुम्हारे महल से कुछ दूर बाईं दिशा में लाल फूल वाले पेड़ की जड़ में रहता है। वह तुम्हारे पूर्व जन्म की दुश्मनी का बदला लेने को आतुर है।’’

सुबह जब राजा नींद से जागा तो स्वप्न पर विचार करने लगा। वह धर्मात्मा और प्रजापालक था। उसने सोचा कि स्वप्न हमेशा ही मिथ्या नहीं, सत्य भी होते हैं। अब उसने आत्मरक्षा के उपाय पर विचार आरंभ किया। वह इस निर्णय पर पहुंचा कि मधुरवाणी और व्यवहार से बढ़ कर शत्रु को जीतने वाला और कोई शस्त्र नहीं हो सकता। इसी के बल पर तो पड़ोसी राजा भी उसके मित्र हैं। उनकी ओर से वह सदैव निश्चित और भयमुक्त है।

शाम ढलते ही राजा ने उस पेड़ की जड़ से अपने शयन कक्ष तक मार्ग में फूल बिछवा दिए। सुगंधित द्रव्य छिड़कवाया। पूरे रास्ते मीठे दूध से भरे कटोरे रखवाए। प्रहरियों को सख्त हिदायत दी कि, ‘‘इस रात्रि में यदि कोई सर्प मेरे शयन कक्ष तक आए तो उसे हानि न पहुंचाई जाए।’’

अर्धरात्रि में सर्प अपनी बांबी से निकला और महल की तरफ बढऩे लगा जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया और स्वागत में की गई व्यवस्थाओं को देख कर आनंदित होता रहा। राज महल द्वार में प्रवेश करते ही सशस्त्र द्वारपालों ने भी उसे रास्ता दे दिया। 

राजा के इस असाधारण सौजन्य, सद्व्यवहार और नम्रता ने उसे मंत्रमुग्ध कर दिया। वह राजा की मृत्यु का कारण बने या क्षमा करें, इसी ऊहापोह में वह शयन कक्ष में प्रवेश कर गया। जहां राजा पलंग पर बैठा था।

सर्प ने कहा, ‘‘राजन! आपने मुझे पूर्व जन्म में बहुत हानि पहुंचाई, उसी का बदला लेने आया हूं परन्तु आपके सौजन्य और सद्व्यवहार ने मेरे क्रोधासक्ति निर्णय को परास्त कर दिया है। अब मैं आपका शत्रु नहीं मित्र हूं। उपहार स्वरूप यह बहुमूल्य मणि स्वीकार करें।’’ 

यह कह कर सर्प पुन: अपनी बांबी की ओर प्रस्थान कर गया।

अपने प्रति सद्व्यवहार से ही जिस प्रकार सर्प का हृदय परिवर्तित हो गया वैसे ही हम भी बड़े से बड़ा संकट टाल सकते हैं। जीवन को चट्टान की तरह कठोर नहीं, जल के समान तरल बनाएं ताकि विपरीत परिस्थितियों में आगे बढऩे का मार्ग ढूंढ सकें।

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