सास ने ‘किडनी’ देकर बहू की जान बचाई ‘अंगदान’ की प्रेरणादायक मिसालें

Edited By ,Updated: 25 Jul, 2015 12:41 AM

article

अंगदान और रक्तदान महादान की श्रेणी में आते हैं। ऐसा करके कोई भी व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति की जान बचाने का माध्यम बनता है जिसके साथ प्राय: उसका कोई रिश्ता भी नहीं होता।

अंगदान और रक्तदान महादान की श्रेणी में आते हैं। ऐसा करके कोई भी व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति की जान बचाने का माध्यम बनता है जिसके साथ प्राय: उसका कोई रिश्ता भी नहीं होता। अंगदान का सबसे बड़ा उदाहरण महर्षि दधीचि हैं जिनकी अस्थियों से देवताओं ने वज्र बना कर असुरों का संहार किया और इस प्रकार दधीचि विश्व के प्रथम अंगदानी बने। 

इस वर्ष मार्च मास में फरीदाबाद के एक किडनी अस्पताल में ईराक के बैबीलोन शहर से आए तीन वर्षीय बालक मुस्लिम अहमद के शरीर में उसके दादा की किडनी लगा कर अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में इतिहास रचा गया। 
 
यह बालक जन्मजात दोनों किडनियों की खराबी से पीड़ित था और उसके शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली भी खराब हो चुकी थी। उसे अनेक अस्पतालों से जवाब मिल चुका था परंतु फरीदाबाद के अस्पताल के डाक्टरों ने उसके दादा की किडनी उसके शरीर में प्रत्यारोपित करके उसकी जान बचा ली। 
 
गत 2 जुलाई को नई दिल्ली में 65 वर्षीय एक वृद्धा बिमला ने अपनी बहू कविता के लिए किडनी देकर अंगदान की मिसाल पेश की है। कविता की दोनों किडनियां खराब थीं और उसे जीवित रहने के लिए किडनी चाहिए थी। 
 
शुरू में तो कविता की मां किडनी देने को तैयार हो गई। सभी परीक्षण भी कर लिए गए परन्तु अंतिम समय पर उसने इंकार कर दिया। कविता की सास बिमला को इसका पता चलते ही उन्होंने कविता की जान बचाने के लिए अपनी एक किडनी देने की पेशकश कर दी और अब दोनों के बीच सास-बहू का रिश्ता न रह कर मां-बेटी का रिश्ता बन गया है और कविता लोगों से यह कहती नहीं थकती कि,‘‘मेरी सास ही मेरी असली मां हैं।’’
 
इसी प्रकार 16 जुलाई को मुम्बई के कोकिला बेन अस्पताल में इलाज के लिए लाई गई 51 वर्षीय एक महिला को ‘ब्रेन डैड’ घोषित कर दिए जाने के बाद डाक्टरों की प्रेरणा से उसके परिजनों ने उसकी किडनी, जिगर और आंखें दान करना स्वीकार कर लिया और उनका रिकार्ड अवधि में जरूरतमंदों में प्रत्यारोपण करके 5 जिंदगियां बचा लीं। इससे एक ऐसी महिला को भी जीवनदान मिला जो 6 वर्षों से डायलिसिस पर थी। 
 
इसके अगले ही दिन 17 जुलाई को मुम्बई के लीलावती अस्पताल में ‘ब्रेन डैड’ घोषित एक 66 वर्षीय वृद्ध के परिजनों द्वारा दान की गई उसकी किडनी और जिगर से 2 रोगियों को जीवनदान मिला। 
 
नि:संदेह अंगदान से अनेक रोगियों की जान बचाई जा सकती है परन्तु देश में प्रत्यारोपण के लिए अंग देने वाले दानी बहुत कम हैं और अस्पतालों की लापरवाही से अधिकांश ‘ब्रेन डैड’ रोगियों के अंग प्रत्यारोपण के लिए उपलब्ध नहीं हो पाते।
 
कई बार दानी के शरीर से अंग निकालने के बावजूद समय पर उन्हें जरूरतमंद के शरीर में प्रत्यारोपित नहीं किया जाता जिससे वे नष्टï हो जाते हैं। इससे अंग दानी का दान व्यर्थ चला जाता है और अनेक जरूरतमंद रोगियों की जान भी चली जाती है जो बचाई जा सकती थी। 
 
प्रति वर्ष लगभग 2.1 लाख भारतीयों को किडनी प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ती है परन्तु केवल 3 से 4 हजार ही किडनी-प्रत्यारोपण हो पाते हैं। हृदय और कानया प्रत्यारोपण के मामले में भी स्थिति इससे भिन्न नहीं है। 
 
स्पष्टïत: जहां बिमला ने अपनी बहू को किडनी देकर समाज को अंगदान के पक्ष में एक नया संदेश देने के अलावा सास-बहू के रिश्ते को नई परिभाषा दी है, वहीं अन्य ‘ब्रेन डैड’ रोगियों के रिश्तेदारों ने अंग दान करके समाज को एक संदेश दिया है कि मृत्यु के बाद अथवा ‘ब्रेन डैड’ रोगियों के अंग दान द्वारा असंख्य लोगों को अकाल मृत्यु के मुंह में जाने से बचाया जा सकता है और अंगदान मृत देह का सही उपयोग भी है।

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!