सपनों में हकीकत का रंग भरने का नाम हैं कलाम

Edited By ,Updated: 28 Jul, 2015 01:47 PM

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अवुल पकिर जैनुलाबद्दीन कलाम की शुरुआती जिंदगी कुछ अच्छी इसलिए नहीं रही कि उनकी पैदाईश एेसे परिवार में नहीं हुई जहां बच्चे चांदी की चम्मच के साथ पैदा लेते हैं।

जालंधर (एम. के प्रमोद):  अवुल पकिर जैनुलाबद्दीन कलाम की शुरुआती जिंदगी कुछ अच्छी इसलिए नहीं रही कि उनकी पैदाईश एेसे परिवार में नहीं हुई जहां बच्चे चांदी के चम्मच से पैदा लेते हैं लेकिन देश के इतिहास में  इस नागरिक का नाम जुड़ने से देश खुशहाल तो जरूर हुआ क्योंकि मिसाइल के दम दूसरे देशों पर आंखें तरेड़ने वाले देशों की आंख में आंख मिलाकर भारत भी बात करने लगा ।
 
 इस नागरिक ने  अपने जीवन को मिसाइल के लिए ही समर्पित कर दिया और उनकी दिमागी उड़ान ने भारतीय मिसाइल को उड़ने की एेसी गति दी कि विश्व की ताकतों को लगा कि शायद भारत भी उन देशों की कतार से बाहर नहीं है जहां के लोग समारिक ताकत की कूबत पर अपने को कम नहीं समझते। उनकी शुरुआती जिंदगी पर पड़ी गरीबी की छाया ने उनसे एक काम जरूर करवा लिया जिससे भारतीय मीडिया भी अपने आप में गर्व महसूस करता रहेगा। 
 
कहना गैरजरूरी है कि कलाम साहब ने अपनी गरीबी के दिनों में घर-घर अखबार भी पहुंचाया। विज्ञान की दुनिया से राष्ट्रपति के पद पर पहुंचने वाले  अवुल पकिर जैनुलाबद्दीन कलाम पहले ही लाखों देशवासियों के प्रेरणास्रोत बन चुके थे और उनकी इसी लोकप्रियता ने उन्हें देश के सर्वोच्च आसन पर आरूढ़ कराया था।  
 
 
देश के 11वें राष्ट्रपति रहे डॉ. कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम कस्बे के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। उनके पिता जैनुल आबदीन नाविक थे। वे मछली पकड़ कर रोजीरोटी कमाते थे और पांच वक्त के नमाजी थे। उनकी माता का नाम आशियम्मा था। उनकी आरंभिक शिक्षा पांच वर्ष की अवस्था में रामेश्वरम के प्राथमिक स्कूल से शुरू हुई। वह बचपन से ही खासे प्रतिभाशाली रहे।  
 
 
मिसाइल मैन के नाम से विख्यात डॉ.कलाम का बचपन बड़ा संघर्ष पूर्ण रहा। उनकी दिनचर्या में प्रतिदिन सुबह चार बजे उठ कर ट्यूशन पढऩा, फिर लौट कर पिता के साथ नमाज पढऩा, फिर तीन किलोमीटर दूर स्थित धनुषकोड़ी रेलवे स्टेशन से अखबार लाना और घूम-घूम कर बेचना। उसके बाद स्कूल जाना और शाम को अखबार के पैसों की वसूली करना शामिल था। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा के बाद रामनाथपुरम के  हाईस्कूल में प्रवेश लिया। वहां की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने 1950 में सेंट जोसेफ कॉलेज, तिरुचिरापल्ली में प्रवेश लिया। 
 
 
वहां से उन्होंने भौतिकी और गणित विषयों के साथ बी.एससी. की डिग्री प्राप्त की। अपने अध्यापकों की सलाह पर उन्होंने स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए मद्रास इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नालॉजी (एम.आई.टी.), चेन्नई का रुख किया। वहां पर उन्होंने अपने सपनों को आकार देने के लिए एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग का चयन किया। 
 
 
डॉ. कलाम वायु सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करना चाहते थे  लेकिन इस इच्छा के पूरी न हो पाने पर उन्होंने बे-मन से रक्षा मंत्रालय के तकनीकी विकास एवं उत्पाद विभाग में 1958 में तकनीकी केन्द्र (सिविल विमानन) में वरिष्ठ वैज्ञानिक सहायक का कार्यभार संभाला। उन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर वहां पहले ही साल में एक पराध्वनिक लक्ष्यभेदी विमान की डिजाइन तैयार करके अपने स्वर्णिम सफर की शुरूआत की। 
 
 
डॉ. कलाम के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ तब आया, जब वह 1962 में‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) से जुड़े। यहां पर उन्होंने विभिन्न पदों पर कार्य किया। उन्होंने यहां पर आम आदमी से लेकर सेना की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अनेक महत्वपूर्ण परियोजनाओं की शुरूआत की। इसरो में स्वदेशी क्षमता विकसित करने के उद्देश्य से ‘उपग्रह प्रक्षेपण यान कार्यक्रम’ की शुरूआत हुई  डॉं कलाम की योग्यताओं को दृष्टिगत रखते हुए उन्हें इस योजना का प्रोजेक्ट डायरेक्टर नियुक्त किया गया। 
 
 
उन्होंने अपनी प्रतिभा के बल पर इस योजना को भलीभांति अंजाम तक पहुंचाया तथा जुलाई 1980 में ‘रोहिणी’ उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के निकट स्थापित करके भारत को ‘अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब’ के सदस्य के रूप में स्थापित कर दिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को जब राष्ट्रपति का उम्मीदवार नहीं मिल रहा था और वह इसके लिए कांग्रेसी हमले से पहले से पिड़ित थे तो उनके दिमाग में एक बात सूझी और उन्होंने इस पद के लिए डा. कलाम का नाम आगे कर दिया और इस पद को एक सुयोग्य नागरिक हासिल हो सका। किसी ने भी उनका विरोध नहीं किया। 
 
 
जब वह राष्ट्रपति के पद से मुक्त हुए तो उन्होंने एक साक्षात्कार के दौरान कहा था कि अब वह बहुत ज्यादा व्यस्त हैं। देश की उड़ान को सही ताकत देने के लिए शायद उन्होंने शादी भी नहीं की। समूचा पंजाब केसरी परिवार इस महान आत्मा के लिए श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

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