याकूब मेमन को फांसी ‘हरे कर गई कई घाव’

Edited By ,Updated: 30 Jul, 2015 11:35 PM

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12 मार्च, 1993 को देश की आॢथक राजधानी मुम्बई में योजनाबद्ध तरीके से किए गए शृंखलाबद्ध बम धमाकों में 257 निर्दोष लोगों की मृत्यु, 713 लोग घायल और असंख्य लोग बेघर हो गए।

12 मार्च, 1993 को देश की आॢथक राजधानी मुम्बई में योजनाबद्ध तरीके से किए गए शृंखलाबद्ध बम धमाकों में 257 निर्दोष लोगों की मृत्यु, 713 लोग घायल और असंख्य लोग बेघर हो गए। धमाके करने के लिए पाकिस्तान से प्राप्त आर.डी.एक्स का भारत में पहली बार प्रयोग किया गया।

न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने आधी रात के बाद किसी केस की सुनवाई करते हुए याकूब मेमन की फांसी पर रोक लगाने संबंधी अंतिम याचिका पर 30 जुलाई को तड़के 3.20 बजे सुनवाई शुरू की और तीन सदस्यीय पीठ द्वारा 4 बजकर 50 मिनट पर फांसी पर रोक लगाने से इंकार कर देने के बाद सुबह 6.35 बजे उसे फांसी पर लटकाया गया। 
 
मेमन को फांसी के मुद्दे पर चल रही बहस के बीच कांग्रेसी सांसद शशि थरूर ने दुख व्यक्त करते हुए कहा है कि ‘‘मैं दुखी हूं कि हमारी सरकार ने एक इंसान को फांसी पर लटका दिया। राज्य प्रायोजित हत्याएं हमें हत्यारों के बराबर ला खड़ा करती हैं। इससे आतंकवाद पर काबू नहीं पाया जा सकता।’’
 
दिग्विजय सिंह ने टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘‘ मुझे संदेह है कि याकूब को फांसी देने में जो प्रतिबद्धता दिखाई गई है ऐसी ही तत्परता आतंकवाद के अन्य आरोपियों के मामले में भी दिखाई जाएगी।’’
 
आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि ‘‘याकूब को राजनीतिक कारणों से फांसी दी गई है।’’  
 
भाजपा सांसद साक्षी महाराज का कहना है कि ‘‘न्यायपालिका का सम्मान न करने वाले पाकिस्तान चले जाएं।’’ बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा है कि,‘‘इसी तरह जो अन्य केस पैंडिग हैं, उन पर भी फैसला होना चाहिए।’’
 
इन धमाकों से तबाह इमारतों में सैंचुरी बाजार के सामने एक ‘मलकानी महल’ नामक इमारत भी थी जो इसके निकट पीपल के पेड़ के नीचे रखे टाइम बम में विस्फोट से एक मलबे में तबदील हो गई। 
 
इसमें रहने वाले परिवार 2 वर्ष तक बेघर भटकते रहे और किसी को भी उस समय के मुख्यमंत्री शरद पवार द्वारा घोषित 5 लाख रुपए की राहत राशि यह कह कर नहीं दी गई कि, ‘‘फाइल गुम हो गई है।’’ 
 
इसी इमारत में रहने वाली 100 वर्षीय विंदूर मीरचंदानी आज भी उस भयानक दिन को याद करके दहल जाती हैं जब धमाके से टूटे कांच के टुकड़े उनके चेहरे और सिर में घुस गए थे। उनके खून से सने कपड़े इस तरह शरीर से चिपक गए थे कि उन्हें काट कर अलग करना पड़ा। 
 
विंदूर परिवार के अपार्टमैंट की दीवार उनके पड़ोसी राम अडवानी के फ्लैट पर जाकर गिरी जिसके नीचे दब कर वह मारा गया। विंदूर की बेटी माया का कहना है कि ‘‘सरकार ने हमें केवल 5000 रुपए की राहत राशि दी। हमारे लिए तो ये धमाके दूसरे देश विभाजन की पीड़ा झेलने जैसे थे।’’
 
इसी इमारत की दूसरी मंजिल पर ब्यूटी पार्लर की मालकिन कमला मलकानी की बहन और वहां काम करने वाली 2 लड़कियां गंभीर रूप से घायल हो गईं जबकि उसका एक अन्य कर्मचारी मारा गया। 
 
इसी इमारत में रहने वाली एक युवती के अनुसार, ‘‘कुछ समय के लिए मेरे भाई की आंखों की रोशनी चली गई और दो वर्षों तक हम बेघर भटकते रहे। इस घटना ने इस सारी व्यवस्था से मेरा मोहभंग कर दिया और मुझे अत्यधिक दुख हुआ कि यहां किसी का कोई मोल नहीं है।’’
 
इन्हीं विस्फोटों में अपनी मां को खोने वाले तुषार देशमुख ने कहा कि ‘‘ उस मनहूस दिन जब मेरी मां घर लौट रही थी, एक टैक्सी में धमाका हुआ और मेरी मां के टुकड़े-टुकड़े होकर दूर-दूर तक बिखर गए।’’  यह तो चंद लोगों की आपबीती है। तबाह होने वाले अन्य परिवारों की कहानियां भी कुछ ऐसी ही हैं। 
 
जहां भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार आधी रात के बाद सुप्रीमकोर्ट के दरवाजे खुलवाकर इस केस की सुनवाई को लेकर प्रश्न उठाए जा रहे हैं वहीं यह प्रश्न भी उठता है कि आज तक उन लोगों को पर्याप्त मुआवजा क्यों नहीं मिला जो इन हमलों में मारे गए या घायल हुए थे!  
 

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