‘अनर्गल बयानबाजी’ से हिमाचल में भाजपा का अहित ही होगा

Edited By ,Updated: 01 Aug, 2015 02:49 AM

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पिछले एक सप्ताह से हिमाचल प्रदेश में विगत विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की हार को लेकर अनर्गल बयानबाजी की जा रही है।

(विवेक अविनाशी): पिछले एक सप्ताह से हिमाचल प्रदेश में विगत विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की हार को लेकर अनर्गल बयानबाजी की जा रही है। ये नेता इस हार के कारणों की चीर-फाड़ करने के लिए एक-दूसरे पर इस तरह से कीचड़ उछाल रहे हैं मानो वे खुद पाक-साफ हैं और बाकी सब दागदार।

होना तो यह चाहिए था कि प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के सभी नेता पुराने गिले-शिकवे भुलाकर एकजुट हो प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को सुदृढ़ बनाने का प्रयास करते, लेकिन राष्ट्रीय शीर्षस्थ नेताओं में अपनी छवि चमकाने के लिए कुछ छुटभैये नेता इन बयानों के आधार पर अपनी राजनीतिक दुकानदारी चला रहे हैं।
 
हिमाचल प्रदेश में शांता-धूमल भारतीय जनता पार्टी के 2 कद्दावर नेता हैं। हिमाचल के विकास में इन दोनों नेताओं ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इन दोनों के समर्थक हिमाचल प्रदेश में एक कोने से दूसरे कोने तक फैले हुए हैं। प्रदेश के विकास में किसका योगदान ज्यादा है और किसका कम, यह आंकना एक न खत्म होने वाली बहस है। बहस सार्थक हो तो लाभप्रद है अन्यथा ऐसे ही अनर्गल बयानों को हवा मिलती है।
 
वर्ष 2012 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की हार का किस्सा अत्यंत रोचक है। चुनावों से पूर्व भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेता प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व से खिन्न होकर पार्टी छोड़ चुके थे। इन नेताओं में महेश्वर सिंह प्रमुख थे जिनकी कुल्लू जिले पर पकड़ है। उनके अलग होने से पार्टी कुल्लू जिले में बैकफुट पर आ गई थी। अन्य निष्कासित नेताओं ने भी अपने-अपने क्षेत्र में पार्टी को नुक्सान पहुंचाया।
 
जब भाजपा के उम्मीदवारों के चयन का सिलसिला प्रारंभ हुआ तो केन्द्रीय हाईकमान ने प्रदेश में जीतने वाले प्रत्याशियों के बारे में एक सर्वेक्षण करवाया था। इस सर्वेक्षण में लोगों से प्रदेश में तत्कालीन भाजपा सरकार के कार्यकाल में बेरोजगारी, विकास, राजनीतिक बदलाव, महंगाई के अतिरिक्त भ्रष्टाचार के  बारे में भी जानकारी ली गई थी। जहां वोटरों ने बेरोजगारी और महंगाई पर चिन्ता व्यक्त की थी, वहीं प्रदेश के 68 में से आधे से अधिक विधानसभा क्षेत्रों के वोटरों ने माना था कि प्रदेश में वर्तमान भाजपा सरकार के कार्यकाल में भ्रष्टाचार 50 से 90 प्रतिशत तक बढ़ा है। 
 
यह सर्वेक्षण शांता कुमार ने नहीं, केन्द्रीय हाईकमान ने कराया था। जब भाजपा के सम्भावित प्रत्याशियों के चयन की प्रक्रिया प्रारंभ हुई तो इस तथ्य को नकार कर भी प्रदेश में अधिकांश टिकट एक गुट विशेष के उम्मीदवारों को दिए गए और जहां कहीं इस गुट विशेष की मर्जी के खिलाफ टिकट दिया गया  वहां अधिकृत प्रत्याशी के विरुद्ध बागी उम्मीदवार खड़े किए गए। प्रादेशिक राजनीति में हमीरपुर, कांगड़ा, चंबा और सोलन जिलों में भारतीय जनता पार्टी का वर्चस्व है जबकि अन्य जिलों शिमला, कुल्लू, सिरमौर, लाहौल-स्पीति, किन्नौर और ऊना में कांग्रेस भारतीय जनता पार्टी से आगे है। बिलासपुर में स्थिति मिली-जुली है।
 
यह गुट अपने इस मंसूबे में कामयाब भी हुआ और कांगड़ा,चंबा व मंडी में इस तरह भाजपा के 8-10 उम्मीदवार चुनाव हारे। ऐसा केवल शांता कुमार के राजनीतिक अस्तित्व को दाव पर लगाने के लिए किया गया। 
 
इस मुद्दे को पुन: उछालने के पीछे निहित स्वार्थों का सुनियोजित षड्यंत्र है। दोनों धड़ों की इस कलह ने हिमाचल की सत्ता थाली में परोस कर कांग्रेस को दे दी थी। शांता कुमार ने प्रदेश की राजनीति से अपने आपको अलग करने की सार्वजनिक घोषणा की थी और कहा था कि वह विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे और उनके परिवार में से भी कोई चुनाव नहीं लड़ेगा, इसके बावजूद कांगड़ा, चंबा में उनके सहयोगी भाजपा उम्मीदवारों को हराने के लिए बागी उम्मीदवारों को खड़ा करना भारतीय जनता पार्टी की हार का सबसे बड़ा कारण रहा। 2017 के चुनाव से पूर्व यदि भारतीय जनता पार्टी इस मुद्दे को संतोषजनक ढंग से सुलझा न पाई और यह गलती फिर दोहराई गई तो 2017 में एक बार फिर इसे इसी गलती का खमियाजा भुगतना पड़ेगा। 
 
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