राजा मृत संजीवनी मंत्र: यमदूत को भी कर देता है भागने पर विवश

Edited By ,Updated: 01 Aug, 2015 12:47 PM

king dead god of death his chant mantras also gives lifesaving forced to flee

भोलेनाथ स्वामी का मंगलमय दिन सोमवार है। सोम का अर्थ है स+उमा= सोम- दिन वार का अर्थ है सूर्य की प्रचंडता का सार्वभौम स्वरूप। शिवतत्व का स्वरूप तीनों तत्वों को मिलाकर बना है। शिवतत्वों में दो तत्व शिव और शक्ति का समावेश हैं। हिन्दू धर्म में जप का...

भोलेनाथ स्वामी का मंगलमय दिन सोमवार है। सोम का अर्थ है स+उमा= सोम- दिन वार का अर्थ है सूर्य की प्रचंडता का सार्वभौम स्वरूप। शिवतत्व का स्वरूप तीनों तत्वों को मिलाकर बना है। शिवतत्वों में दो तत्व शिव और शक्ति का समावेश हैं। हिन्दू धर्म में जप का विधान प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण रहा है। मंत्रों में शक्ति का अपार भंडार भरा हुआ है। पूर्ण श्रद्धा से उसकी साधना विधिवत करने से उसका फल अवश्य प्राप्त होता है। इस मंत्र का सवा लाख जाप श्रद्धा से जो पैंतालीस दिन में सम्पूर्ण होता है, पवित्रता से करने पर रोगी मृत्युभय से मुक्त हो स्वस्थ हो जाता है।

‘महामृत्युंजय मंत्र’
ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टि वर्धनम्।
ऊर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
 
शिव पुराण में इस मंत्र का बहुत ही सुंदर वर्णन मिलता है। ऋग्वेद की 7/59/12 एवं यजुर्वेद की ऋचा 1/60 में पाया जाने वाला मंत्र अत्यंत शक्तिशाली ‘महामृत्युंजय’ मंत्र कहलाता है। महामृत्युंजय मंत्र का प्रारम्भ जप के माध्यम से मृकंड ऋषि के युग से हुआ जब ब्रह्मा जी ने उनको बतलाया कि आपके पुत्र की आयु बहुत कम है। 
 
तब वह चिंतित हो गए और लोमेश जी के पास गए। लोमेश जी ने उन्हें सर्वप्रथम ‘महामृत्युंजय’ जप करने का विधान बतलाया जो मार्कंडेय ऋषि को जीवन का वरदान दिलाने में सहायक हुआ। जब मार्कण्डेय ऋषि ने लगातार महामृत्युंजय का उच्चारण किया तब यमदूत भी उनको छोड़कर भागने में विवश हो गए।
 
च्यवन ऋषि के पुत्र दधीचि ने भी महामृत्युंजय मंत्र का जप करके भगवान शिव को प्रसन्न करके मनवांछित वरदान प्राप्त किया और मृत्यु पर विजय  प्राप्त की थी।
 
शिवभक्त शिरोमणि तथा मृत्युंजय विद्या के प्रवर्तक शुक्राचार्य ने शिव पूजन कर महामृत्युंजय मंत्र का उपदेश दिया। दधीचि को उपदेश देकर शुक्राचार्य भगवान भोले नाथ भंडारी का स्मरण करते हुए अपने स्थान पर लौट गए। शुक्राचार्य के निर्देश अनुसार दधीचि ने वन में विधिपूर्वक महामृत्युंजय जप कर भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न किया। भगवान भोलेनाथ भंडारी ने मुनिश्रेष्ठ दधीचि को वर मांगने के लिए कहा। तब दधीचि ने तीन वर मांगे। मेरी हड्डियां वज्र की हो जाएं। मेरा कोई वध न कर सके, मैं सर्वत्र अदीन रहूं कभी मुझमें दीनता न आए।

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