भारतीय सेनाओं में महिलाओं की उपस्थिति

Edited By ,Updated: 03 Aug, 2015 01:06 AM

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भारत में 2011 में महिला सेनाधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन शुरू किया गया था और रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने शुक्रवार को संसद में सगर्व दावा किया कि सेना में अभी तक 340 महिलाओं को स्थायी कमीशन दिया गया है।

भारत में 2011 में महिला सेनाधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन शुरू किया गया था और रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने शुक्रवार को संसद में सगर्व दावा किया कि सेना में अभी तक 340 महिलाओं को स्थायी कमीशन दिया गया है। इस तथ्य के दृष्टिगत यह संख्या नाममात्र ही है कि देश की सशस्त्र सेनाओं में 60000 से अधिक अधिकारी हैं और 11120 अधिकरियों की कमी है लेकिन यह भारतीय सेना में महिलाओं द्वारा बड़ी मेहनत से अर्जित सफलता है। 

यहां उल्लेखनीय है कि रूस, अमरीका, तुर्की, इसराईल और यहां तक कि पाकिस्तान सहित अनेक देशों में महिलाओं को लड़ाकू पायलटों के रूप में भर्ती किया जाता है जबकि मलेशिया, श्रीलंका और बंगलादेश सहित अनेक देशों में महिलाओं को युद्धपोतों पर तैनात किया जाता है। 
 
अमरीका में तो महिलाएं परमाणु बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र पनडुब्बियों पर भी तैनात की जाती हैं लेकिन कुछ देश महिलाओं को प्रत्यक्ष जमीनी अभियानों में शामिल होने की अनुमति नहीं देते।
 
भारत में हालांकि 2011 में महिलाओं को कुछ क्षेत्रों में स्थायी कमीशन की अनुमति दे दी गई थी लेकिन सेना द्वारा इसका जोरदार विरोध किया गया क्योंकि वे महिला अधिकारियों को नहीं चाहते थे। उनका विचार यह था कि  शॉर्ट सॢवस कमीशन में महिलाओं का आना उत्साहजनक नहीं रहा क्योंकि महिला अधिकारी पसंदीदा स्थल पर पोसिंटग चाहती हैं। वे मातृत्व अवकाश भी लेती हैं व लम्बे समय तक अनुपस्थित रहती हैं।
 
वैसे 1992 में भारतीय सेना में महिलाओं को स्पैशल एंट्री स्कीम के तहत शामिल करने की शुरूआत हो गई थी और वे 5 वर्ष तक आर्डनैंस तथा शिक्षा कोर के अलावा जज एडजूटैंट जनरल (जे.ए.जी.) शाखा में शार्ट सर्विस कमीशन (एस.एस.सी.) अधिकारियों के रूप में सेवा कर सकती थीं।
 
वर्ष 1996 में एस.एस.सी. महिला अधिकारियों का कार्यकाल 5 वर्ष और बढ़ाकर 10 वर्ष कर दिया गया और इसके साथ ही उन शाखाओं की संख्या भी बढ़ा दी गई जिनमें वे काम कर सकती थीं। 
 
इसके बाद पुन: 2004 में एस.एस.सी. का कार्यकाल 4 वर्ष और बढ़ा दिया गया और फिर आर्मी एजुकेशन कोर की लैफ्टिनैंट कर्नल मधुमिता का केस सामने आया जिन्हें फरवरी 2010 में काबुल स्थित भारतीय गैस्ट हाऊस पर आतंकवादी हमले के दौरान अपनी जान की परवाह न करते हुए हमले के दौरान घायलों को वहां से निकालने के अभूतपूर्व साहस प्रदर्शन के लिए सेना पदक (वीरता) प्रदान किया गया था। 
 
लैफ्टिनैंट कर्नल मधुमिता को इस बात से अनजान होने के कारण सेना ने स्थायी कमीशन देने से इंकार कर दिया कि दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश पारित करके महिलाओं को स्थायी कमीशन देने का मार्ग प्रशस्त कर रखा था। अब एक लम्बे संघर्ष की शुरूआत हुई।
 
इस कड़ी कानूनी लड़ाई में सेना ने इस बात पर बल दिया कि महिलाओं को सेना में स्थायी कमीशन नहीं दिया जा सकता क्योंकि भारत के ग्रामीण इलाकों से संबंध रखने वाले बड़ी संख्या में सेना के जूनियर कमीशंड अधिकारी (जे.सी.ओज) तथा अन्य रैंकों के अधिकारी युद्ध की स्थिति में किसी महिला को अपना नेता स्वीकार करने के लिए अभी तैयार नहीं हैं।
 
लेकिन महिला अधिकारियों ने न सिर्फ फील्ड में अपनी जिम्मेदारियां निभाते हुए कड़ी मेहनत से काम किया बल्कि अदालत में अपनी कानूनी लड़ाई में भी यही जुझारूपन दिखाया और अब तो सेनाधिकारियों का एक वर्ग भी कहने लगा था कि अधिक महिला अधिकारियों को सेना में शामिल किया जाना चाहिए।
 
हालांकि थल सेना में महिलाओं की कुल संख्या 1436, जल सेना में 413 और वायुसेना में 1331 है और यहां तक कि अभी तक स्थायी कमीशन प्राप्त 340 महिलाओं को लड़ाकू विमान उड़ाने और समुद्र में चलने वाले युद्धपोतों पर काम करने या इंफैंटरी, बख्तरबंद सेना और आटलरी में काम करने की अनुमति नहीं है लेकिन उनकी बढ़ती हुई संख्या न सिर्फ सेनाओं में महिलाओं की शानदार विजय का संकेत देती है बल्कि यह सशस्त्र सेनाओं में उनके प्रति बदलते हुए रुझान का भी संकेत है। 
 
सेना ने यह तथ्य स्वीकार करना शुरू कर दिया है कि लैंगिक समानता अब सिर्फ शब्दों तक ही सीमित नहीं रहेगी। उसे अपने आपको बदलना होगा और महिलाओं के लिए रास्ता देना होगा लेकिन तब तक महिला सेनाधिकारियों को कड़ी मेहनत करनी होगी।
 

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