मनचाहे स्थान पर स्नान करने से भी पाया जा सकता है गंगा स्नान का पुण्य

Edited By ,Updated: 03 Aug, 2015 04:16 PM

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सनातन धर्म में गंगा को सर्वाधिक पवित्र नदी माना जाता है। पुराणों के अनुसार कुएं की तुलना में झरने का पानी, झरने से ज्यादा नदी का पानी, नदी के पानी से किसी तीर्थ का जल, तीर्थ के जल से गंगाजल अधिक श्रेष्ठ माना जाता है।

सनातन धर्म में गंगा को सर्वाधिक पवित्र नदी माना जाता है। पुराणों के अनुसार कुएं की तुलना में झरने का पानी, झरने से ज्यादा नदी का पानी, नदी के पानी से किसी तीर्थ का जल, तीर्थ के जल से गंगाजल अधिक श्रेष्ठ माना जाता है। अनंत फल प्राप्त करने के लिए सूर्य उदय से 1 घंटा पहले गंगा में स्नान करना सर्वोत्तम माना जाता है।  स्नान के पश्चात दीप-दान करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। नदी की धारा की ओर या सूर्य की ओर मुंह करके नहाना चाहिए। नदी में 3, 5, 7 या 12 डुब‍कियां लगाना शुभ फल देता है।

भविष्य पुराण में गंगा मंत्र दिया गया है। स्नान करते समय इसका जाप अवश्य करें। जो भी व्यक्ति साधारण पानी में गंगा जल मिलाकर गंगा मंत्र का दस बार जाप करते हुए स्नान करता है, चाहे वो दरिद्र हो, असमर्थ हो वह भी गंगा की पूजा कर पूर्ण फल  पाता है। 

गंगा मंत्र: ॐ नमो भगवती हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा॥

शास्त्रों के अनुसार स्वयं गंगा मां कहती हैं कि स्नान करते समय यदि कोई सच्चे दिल से मुझे याद करेगा, मैं उस स्थान के जल में आ जाऊंगी। स्नान करते समय गंगा मां के कहे कथनों को इस श्लोक के रूप में पढ़ें:

नन्दिनी नलिनी सीता मालती च महापगा।

विष्णुपादाब्जसम्भूता गंगा त्रिपथगामिनी।।

भागीरथी भोगवती जाह्नवी त्रिदशेश्वरी।

द्वादशैतानि नामानि यत्र यत्र जलाशय।

स्नानोद्यत: स्मरेन्नित्यं तत्र तत्र वसाम्यहम्।। 

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