रहस्य: इस स्थान पर रहती हैं आत्मा, काला साया, भूत-चुड़ैल या फिर कुछ और...

Edited By ,Updated: 04 Aug, 2015 03:52 PM

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पर्वतों की रानी मसूरी के बाहरी क्षेत्र में लगभग 8 किलोमीटर दूर लम्बीधार में सीढ़ीनुमा चूना पत्थरों की खदानें हैं, जिन्हें 1990 में जब से बन्द कर दिया गया है तब से यह बस्ती पूरी उजाड़ और वीरान हो गई है, अब यहां कोई नहीं रहता। कहते हैं कि सन् 1990 में...

पर्वतों की रानी मसूरी के बाहरी क्षेत्र में लगभग 8 किलोमीटर दूर लम्बीधार में सीढ़ीनुमा चूना पत्थरों की खदानें हैं, जिन्हें 1990 में जब से बन्द कर दिया गया है तब से यह बस्ती पूरी उजाड़ और वीरान हो गई है, अब यहां कोई नहीं रहता। कहते हैं कि सन् 1990 में यहां लगभग 50 हजार आदमी काम करते थे, जो कि बड़ी तेजी से विभिन्न बीमारियों के कारण मर गए। ज्यादातर मजदूर फेफड़ों में धूल जाने के कारण टी.बी की बीमारी से मरे। 100 वर्ष पुराने इस लम्बीधार गांव के बारे में कई रहस्यमयी कहानियां प्रचलित हैं। लम्बीधार के आसपास के इलाके के लोग कहते हैं कि लम्बीधार में बुरी आत्माओं का साया है। इस इलाके के लोगों के अनुसार एक काला साया यहां से गुजरने वालों पर हमला करता है, उन्हें कभी-कभी रात में दर्द भरी करहाने की आवाजें आती हैं, तो कभी पहाड़ से छम-छम की आवाज करती हुई चुड़ैल नीचे उतरती नजर आती है।

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यहां उजाड़ और खण्डहर हुई हास्पिटल में रात में पत्थर मारने की, चूडियां खनकने की और रोने की आवाजें भी आती हैं और इस इलाके में वाहनों की दुर्घटनाएं भी ज्यादा होती हैं। इन्हीं रहस्यमयी कहानियों के कारण ही लम्बीधार की चूना पत्थरों की खदानें भारत की दस प्रसिद्ध प्रेतबाधित स्थानों में से एक हैं। कई न्यूज चैनल्स् ने इस बंगले के भूतहा होने के प्रोग्राम दिए हैं। जी न्यूज ने भी पैरानार्मल सोसायटी के लोगों के साथ यहां प्रोग्राम किया था।

आईए देखते हैं लम्बीधार स्थित चूना पत्थरों की खदानों का वास्तु विश्लेषण करके देखते हैं कि इस स्थान की बनावट में ऐसा क्या है कि यह स्थान भारत के प्रथम दस प्रसिद्ध प्रेतग्रस्त स्थानों में गिना जाता है।

वास्तुशास्त्र के अनुसार किसी भी स्थान की नकारात्मक ऊर्जा के कारण ही इस प्रकार का छल होता है कि वहां भूत-प्रेत या कोई साया है। किसी भी भवन में या उसके परिसर के अन्दर नैऋत्य कोण (South West corner) के वास्तुदोषों जैसे नैऋत्य कोण में नीचाई हो, नमी रहती हो, पानी जमा रहता हो, काई जमी रहती हो या दीवारों पर सीलन हो, दीवारों पर से रंग की पपडियां उतरी हुई हो। नैऋत्य कोण के दक्षिण या पश्चिम भाग में बढ़ाव हो। इन दोषों के कारण नैऋत्य कोण में हवा का प्रवाह निर्बाध्य रूप से न हो पाने के कारण वहां बहुत ज्यादा मात्रा में नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न हो जाती है। भवन व उसके परिसर के नैऋत्य कोण के वास्तु दोषों के साथ-साथ यदि ईशान कोण (North East corner) में भी वास्तु दोष हो जैसे ईशान कोण ऊंचा हो, दबा, कटा या घटा हो या जरूरत से ज्यादा भवन या उसका परिसर पूर्व ईशान या उत्तर ईशान की ओर बढ़ जाए इत्यादि तो नैऋत्य कोण के दोषों से उत्पन्न हुई नकारात्मक ऊर्जा के कुप्रभाव में और भी अधिक वृद्धि हो जाती है। इन्हीं वास्तुदोषों से उत्पन्न हुई नकारात्मक ऊर्जा के कारण यहां रहने वालों को भ्रम होता है कि वहां भूत-प्रेत वास करते हैं।

देहरादून से मसूरी की ओर जाते वक्त मसूरी से कुछ किलोमीटर पहले एक कच्चा पहाड़ी घुमावदार रास्ता उल्टे हाथ की ओर जाता है इस सड़क पर कुछ किलोमीटर जाने पर एक और कच्चा रास्ता नीचे की ओर उतरता है जहां पर पहाड़ों की श्रृंखला में लम्बीधार की चूना पत्थरों की खदानें सीढ़ीनुमा हैं। वर्तमान में यहां अभी तीन-चार खण्डर हुई वीरान बिल्डिंग बनी हुई हैं, जिन पर काई जमी हुई है, जो कभी लम्बीधार

 हॉस्पिटल और प्रशासनिक कार्यालय रहा होगा। इस पूरे इलाके की भौगोलिक स्थिति को देखकर यह तय है कि यहां कभी-भी 50000 आदमी नहीं रहे होगें, हो सकता है उस दौरान दो-चार हजार आदमी लम्बीधार के पहाडो़ पर झोपड़ी बनाकर रहते होगें, क्योंकि 1990 में जब की यह घटना बताई जाती है उस समय मसूरी शहर की आबादी मुश्किल से 15-20 हजार रही होगी।

लम्बीधार की भौगोलिक स्थिति इस प्रकार है कि इसकी पूर्व दिशा, ईशान कोण, उत्तर दिशा में ऊंची पहाडि़यां हैं तथा दक्षिण दिशा, नैऋत्य कोण और पश्चिम दिशा में गहरी खाई है, जहां नीचे बरसाती नदी बहती है। खदानों के प्रशासनिक भवन और हॉस्पिटल में जाने का लगभग 200 मीटर लम्बा रास्ता उत्तर एवं पूर्व दिशा में स्थित है, इस प्रकार यह दिशाएं अन्य दिशाओं की तुलना ऊंची हैं। इन भवनों के आगे सामने उत्तर एवं पूर्व दिशा में काफी समतल जमीन है। जबकि प्रशासनिक भवन और हॉस्पिटल के पीछे दक्षिण एवं पश्चिम दिशा में पहाड़ी में एकदम तीखा खाईनुमा ढ़लान है। यहां के बुजुर्ग रहवासी बताते हैं कि लम्बीधार की चूना पत्थरों की खदानें कम चैड़ाई की सीढ़ीनुमा होने के कारण कई बार यहां काम करने वाले मजदूर पहाड़ से फिसल कर नीचे गिरने से मर जाते थे।

लम्बीधार में चूना पत्थर की खदाने है और जहां चूना पत्थर की खदानें होती हैं वहां काम करने के दौरान फेफड़ों में धूल जाने से फेफड़ों के गम्भीर रोग होते ही हैं जिस कारण वहां रहने वाले मजदूरों की औसत आयु काफी कम हो जाती है। इसी प्रकार की समस्या मध्यप्रदेश के मन्दसौर जिले की चूना पत्थरों की खदानों में काम करने वाले मजदूरों की भी है। लम्बीधार के ईशान कोण के ऊंचे होने और नैऋत्य

 कोण के नीचे होने के के कारण यह बात निश्चित ही कही जा सकती है कि यहां काम करने वाले मजदूरों को स्वास्थ्य संबंधित गम्भीर कष्ट रहे होगें जिससे उनकी असामायिक मृत्यु होती रही होगी, क्योंकि वास्तुशास्त्र के अनुसार जहां अकाल मृत्यु होती है वहां इन्हीं दोनों दिशाओं में इसी प्रकार के वास्तुदोष अवश्य पाए जाते हैं। 

वास्तुदोषपूर्ण भौगोलिक स्थिति से उत्पन्न नकारात्मक ऊर्जाओं के कारण यहां लोगों को भूत-प्रेत होने का एहसास होता है। लम्बीधार के पास के गांव में रहने वाले लोगों से जब बन्द चूना खदानों के बारे में चर्चा हुई तो उन्होंने बताया कि जब खदानों को खोदने का काम में जब ठेकेदारों को घाटा होने लगा तब उन्होंने इन खदानों में खुदाई का काम बन्द कर दिया और जो उस वक्त यहां जो मजदूर काम करते थे वो भी यहां से कहीं ओर चले गए और यह जगह वीरान हो गई।

मसूरी मुख्य मार्ग से लम्बीधार और उससे आगे जाने का पहाड़ी रास्ता कच्चा, घुमावदार, ऊंचा-नीचा और जोखिमभरा होने के कारण यहां वाहनों की दुर्घटना सामान्य से ज्यादा होती हैं, परन्तु लोगों ने इन दुर्घटनाओं को भूत-प्रेत से जोड़ रखा है। सच तो यह है कि लम्बीधार में कोई भूत-प्रेत नहीं है। लम्बीधार चूना-पत्थरों की खदानों की भौगोलिक स्थिति के कारण उत्पन्न हुई नकारात्मक ऊर्जाओं के कारण ही लोगों को यहां भूत-प्रेत होने का अहसास होता है।

- वास्तु गुरू कुलदीप सलूजा 

thenebula2001@yahoo.co.in 

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