वास्तु नहीं करेगा तंग, लक्ष्मी ऐसे घर से होती हैं प्रसन्न

Edited By ,Updated: 27 Aug, 2015 12:44 PM

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आज के जमाने में, वास्तु शास्त्र के आधार पर स्वयं भवन का निर्माण करना बेशक आसान और सरल लगता हो, लेकिन पूर्व निर्मित भवन में कोई तोड़-फोड़ किए बिना वास्तु सिद्धांतों को लागू करना बेहद मुश्किल है।

आज के जमाने में, वास्तु शास्त्र के आधार पर स्वयं भवन का निर्माण करना बेशक आसान और सरल लगता हो, लेकिन पूर्व निर्मित भवन में कोई तोड़-फोड़ किए बिना वास्तु सिद्धांतों को लागू करना बेहद मुश्किल है। यहां प्रस्तुत हैं कुछ ऐसे उपाय, जिन्हें अपनाकर आप वास्तुजनित दोषों से बहुत हद तक बचाव कर सकते हैं।

वास्तु नहीं करेगा तंग, लक्ष्मी ऐसे घर से होती हैं प्रसन्न 

* चार-चार इंच का ताम्र धातु से निर्मित, वास्तु दोष निवारण यंत्र भवन के मुख्य द्वार पर लगाना चाहिए।

* भवन के मुख्य द्वार के ऊपर की दीवार पर बीच में गणेश जी की प्रतिमा, अंदर और बाहर की तरफ, एक जगह पर आगे-पीछे लगाएं।

* वास्तु के अनुसार सुबह पूजा-स्थल (ईशान कोण) में श्री सूक्त, पुरुष सूक्त एवं संध्या समय श्री हनुमान चालीसा का नित्य पाठ करें।

* यदि भवन में जल का बहाव गलत दिशा में हो या पानी की सप्लाई ठीक दिशा में नहीं है तो उत्तर-पूर्व में कोई फाऊंटेन (फव्वारा) इत्यादि लगाएं। इससे भवन में जल संबंधी दोष दूर हो जाएगा।

* टी.वी. एंटीना/डिश वगैरह ईशान या पूर्व की ओर न लगाकर नैऋत्य कोण में लगाएं।

* भवन या व्यापारिक संस्थान में कभी भी ग्रेनाइट पत्थर का उपयोग न करें। ग्रेनाइट चुंबकीय प्रभाव में व्यवधान उत्पन्न कर नकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।

* भूखंड के ब्रह्म स्थल (केंद्र स्थान) में तामर धातु निर्मित एक पिरामिड दबाएं।

* भवन के दक्षिण-पश्चिम कोने में सफेद/क्रीम रंग के फूलदान में पीले रंग के फूल रखने से पारिवारिक सदस्यों के वैचारिक मतभेद दूर होकर आपसी सौहार्द में वृद्धि होती है।

* शयनकक्ष में कभी भी दर्पण न लगाएं। यदि लगाना ही चाहते हैं तो इस प्रकार लगाएं कि आप उसमें प्रतिबिम्बित न हों अन्यथा हर दूसरे वर्ष किसी गंभीर रोग का सामना करने को तैयार रहें।

* जल सेवन करते समय अपना मुख उत्तर-पूर्व की दिशा की ओर ही रखें।

* भोजन करते समय थाली दक्षिण-पूर्व की ओर रखें और पूर्व की ओर मुख करके ही भोजन करें।

* दक्षिण-पश्चिम कोण में दक्षिण की ओर सिरहाना करके सोने से नींद गहरी और अच्छी आती है। यदि दक्षिण की ओर सिर करना संभव न हो तो पूर्व दिशा की ओर भी कर सकते हैं।

* यदि भवन की उत्तर-पूर्व दिशा का फर्श दक्षिण-पश्चिम में बने फर्श से ऊंचा हो तो दक्षिण-पश्चिम में फर्श को ऊंचा करें। यदि ऐसा करना संभव न हो तो पश्चिम दिशा के कोने में एक छोटा-सा चबूतरा टाइप बना सकते हैं।

* दक्षिण-पश्चिम दिशा में अधिक दरवाजे, खिड़कियां हों तो उन्हें बंद करके उनकी संख्या कम कर दें।

* सीढिय़ां सदैव दक्षिणावर्त हों अर्थात उनका घुमाव बाएं से दाएं की ओर यानी घड़ी चलने की दिशा में होना चाहिए। वामावर्त यानी बाएं को घुमावदार सीढिय़ा जीवन में अवनति की सूचक हैं। इससे बचने के लिए आप सीढिय़ों के सामने की दीवार पर एक बड़ा सा दर्पण लगा सकते हैं, जिसमें सीढिय़ों की प्रतिछाया दर्पण में पड़ती रहे।

* अकस्मात धन हानि, खर्चों की अधिकता, धन का संचय न हो पाना इत्यादि परेशानियों से बचने के लिए घर के अंदर अलमारी एवं तिजोरी इस स्थिति में रखनी चाहिए कि उनके कपाट उत्तर अथवा पूर्व दिशा की ओर खुलें।

पं. दयानंद शास्त्री

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