सितारों का संकेत - आरक्षण का खेल कहीं रोक न दे खुशहाली की रेल

Edited By ,Updated: 31 Aug, 2015 08:50 AM

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सनातन धर्म में सामाजिक विभाजन का मूलाधार है जातिगत वर्ण व्यवस्था। शास्त्रनुसार भारतीय हिन्दू समाज को चार वर्णों की व्यवस्था में विभाजित किया गया था: चार वर्ण थे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और दलित....

सनातन धर्म में सामाजिक विभाजन का मूलाधार है जातिगत वर्ण व्यवस्था। शास्त्रनुसार भारतीय हिन्दू समाज को चार वर्णों की व्यवस्था में विभाजित किया गया था: चार वर्ण थे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और दलित । दर्शनशास्त्र अनुसार सांस्कृतिक संगठन के प्रारंभ वर्ण विभाजन कर्म आधारित था परंतु बाद में यह जन्‍माधारित हो गया ।

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वर्तमान भारतीय समाज वर्ण विभाजन का विकसित रूप जाति-व्‍यवस्‍था के रूप में विद्धमान है । प्राचीन भारतीय समाज में ब्राह्मणों धार्मिक अनुष्ठान का कर्म किया करते थे । क्षत्रिय राज्य कार्य के उत्तरदायी थे। वैश्यों वाणिज्य कर्म करते थे तथा दलित सेवा कर्म करते थे। वर्ण व्यवस्था का प्राचीनतम उल्लेख यजुर्वेद के 31वें अध्याय में वर्णित है । शास्त्रानुसार चार वर्ण व्यक्ति की प्रकृति में विद्धमान तीन गुणों से बने थे । ये त्रिगुण हैं सत, रज व तम । श्रीमद भगवत गीता में सत, रज व तम गुणों को एकाधिक परिप्रेक्ष्य में बताया गया है ।

जातिगत व्यवस्था के आधार पर आरक्षण का मामला इन दिनों अत्यधिक गर्म है। कोई इसके समर्थन मे है तो कोई विरोध में। आरक्षण आंदोलन से जूझते गुजरात का मामला देश में चर्म पर है। गुजरात के पाटीदार समाज ने वर्ष 1985 में ओबीसी आरक्षण का विरोध किया था। परंतु यही पाटीदार समाज आज अपने लिए आरक्षण मांग रहा है, आखिर क्यों ? राजस्थान में वर्षों से चला आ रहा गुर्जरों के आरक्षण का मामला अब शांत हो चुका है ।

हाल ही में हरियाणा में जाट समुदाय में भी आरक्षण की मांग उठी थी । वास्तविकता में आरक्षण भारत हेतु गले की फांसी बन चुका है। अब आरक्षण की मांग सड़कों पर उतर आई है । लोग जाति व धर्म के नाम आरक्षण की मांग करते है । परंतु इस देश में सभी को जीने का सामान्य अधिकार है फिर क्यों अपने समाज को नीचा दिखाकर औरों की अपेक्षा कम आंके जाने की मांग करते है। ऐसे कई सवाल अमूमन हर किसी के मन में उठते है । इस लेख के माध्यम से हम अपने पाठकों को बताते है आरक्षण का ज्योतिषीय कनैक्शन।

ज्योतिषशास्त्र अनुसार सूर्य राजशाही का प्रतीक है व शनि प्रजातंत्र व अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व करता है । शनि की राशियां मकर व कुंभ है तथा सूर्य की राशि सिंह है । जब-जब शनि का प्रभाव सिंह, मकर व कुंभ राशि पर होता है तब शनि की स्थिति मजबूत होती है । शनि का भ्रमण काल हर 30 वर्षों के बाद आता है । जब भी शनि मजबूत होता है तो जनजातियां मजबूत होती हैं । पौराणिक मतानुसार सूर्य-शनि पिता पुत्र होते हुए भी परम शत्रु है ।

जहां सूर्य देवगणों का प्रतिनिधित्व करते है वहीं शनि जनजातियों का है। सूर्य रोशनी है व शनि अंधेरा है। जब सूर्य बलवान होता है स्वर्णों का बोलबाला रहता है । जब शनि बलवान होता है तब दलितों का बोलबाला होता है । शनि की प्रबलता व सूर्य की निर्बलता से राजशाही का अंत भी होता है ।1947 से 1950 जब भारत में राजशाही का अंत हुआ, उस समय शनि कर्क में होकर मकर पर दृष्टि दे रहा था । नेपाल में भी ऐसा हुआ शनि कर्क में होकर मकर पर दृष्टि दे रहा था । ऐसी स्थिति1919 में रुस में भी थी ।

इतिहास अनुसार सर्वप्रथम 1918 में मद्रास प्रेसिडेंसी में चुनिंदा जातियों हेतु आरक्षण लागू हुआ; तब शनि सिंह में होकर कुंभ को देख रहे थे। 1935 में पूना समझौते उपरांत सीटों में विधायिका को आरक्षण मिला; उस समय शनि कुंभ में होकर सिंह को देख रहे थे। 1979-80 में मंडल आयोग ने अन्य पिछड़ी जातियों के आरक्षण हेतु रिपोर्ट दी; उस समय शनि सिंह में होकर कुंभ को देख रहे थे । 1990 में भारत सरकार में जब मंडल कमीशन रिपोर्ट मंजूर की उस समय शनि मकर में थे ।

1993 में जब केंद्र की नौकरियों में आरक्षण लागू किया गया तब भी शनि कुंभ में होकर सिंह को देख रहे थे। 2006 में केंद्र सरकार ने मंडल कमीशन 2 लागू किया; इसी वर्ष 01.11.06 से शनि सिंह में होकर कुंभ को देख रहे थे। वर्तमान में शनि वृश्चिक में गोचर कर रहे है; तीसरी दृष्टि से मकर को देख रहे हैं व दसवीं दृष्टि से सिंह को देख रहे हैं । इससे शनि कर्मठ हुआ है व सूर्य कमजोर हुआ है । सितारों की चाल संकेत दे रही है की आरक्षण आने वाले दिनों में देश हेतु बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है।

आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

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