जानिए, कैसे देव और भगवान ने क्रोध पर काबू रखकर पाई दैत्य पर विजय

Edited By ,Updated: 31 Aug, 2015 04:30 PM

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सनत कुमारों के शाप के कारण जय और विजय वैकुंठ से गिरकर दिति के गर्भ में आ गए। कुछ काल के पश्चात दिति के गर्भ से दो पुत्र उत्पन्न हुए जिनका नाम प्रजापति कश्यप ने हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष रखा। इन दोनों के उत्पन्न होने के समय तीनों लोकों में अनेक...

सनत कुमारों के शाप के कारण जय और विजय वैकुंठ से गिरकर दिति के गर्भ में आ गए। कुछ काल के पश्चात दिति के गर्भ से दो पुत्र उत्पन्न हुए जिनका नाम प्रजापति कश्यप ने हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष रखा। इन दोनों के उत्पन्न होने के समय तीनों लोकों  में अनेक प्रकार के भयंकर उत्पात होने लगे। स्वर्ग, पृथ्वी, आकाश सभी कांपने लगे। सूर्य और चंद्र पर केतु और राहु बार-बार बैठने लगे। नदियों तथा जलाशयों के जल सूख गए। सब ओर हाहाकार मच गया। गायों के थनों से रक्त बहने लगा। उल्लू, सियार आदि रोने लगे।

दोनों दैत्य जन्मते ही आकाश तक बढ़ गए। उनका शरीर फौलाद के समान पर्वताकार हो गया। हिरण्यकश्यप ने तप करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया। ब्रह्मा जी से उसने वरदान ले लिया कि उसकी मृत्यु न दिन में हो न रात में, न घर के भीतर और न बाहर। ऐसे तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करके वह एक-छत्र राज करने लगा।

उसका छोटा भाई हिरण्याक्ष उसकी आज्ञा का पालन करते हुए शत्रुओं का नाश करने लगा। एक दिन वह वरुण की पुरी में जा पहुंचा, पाताल लोग में पहुंच कर हिरण्याक्ष ने वरुण देव से युद्ध की याचना करते हुए कहा हे वरुण देव आप मुझसे युद्ध करके अपने युद्ध कौशल का प्रमाण दें।

उस दैत्य की बात सुनकर वरुण देव को क्रोध तो बहुत आया पर उन्होंने कहा, अब लडऩे का चाव नहीं रहा। तुम को तो यज्ञपुरुष नारायण के पास जाना चाहिए, वे ही तुम से लडऩे योग्य हैं। वरुण देव की बात सुनकर उस दैत्य ने देवर्षि नारद के पास जाकर नारायण का पता पूछा। देवर्षि नारद ने उसे बताया कि नारायण इस समय वाराह का रूप धारण कर पृथ्वी को रसातल से निकालने के लिए गए हैं। इस पर हिरण्याक्ष रसातल में पहुंच गया। वहां उसने भगवान वाराह को अपनी दाढ़ पर रख कर पृथ्वी को लाते हुए देखा। उस महाबली दैत्य ने वाराह भगवान से कहा, तू मेरे रहते इस पृथ्वी को रसातल से नहीं ले जा सकता। आज मैं तेरा वध कर डालूंगा।

हिरण्याक्ष के इन वचनों को सुनकर वाराह भगवान को बहुत क्रोध आया किन्तु पृथ्वी को वहां छोड़कर युद्ध करना उन्होंने उचित नहीं समझा और उसके कटु वचनों को सहन करते हुए वह गजराज के समान शीघ्र ही जल के बाहर आ गए।

उनका पीछा करते हुए हिरण्याक्ष भी बाहर आया और कहने लगा! तुझे भागने में लज्जा नहीं आती, तुम आकर मुझ से युद्ध करो। पृथ्वी को जल पर उचित स्थान पर रखकर और अपना उचित आधार प्रदान कर भगवान वाराह दैत्य की ओर मुड़े और कहा, ‘‘अरे ग्राम सिंह, अब तेरी मृत्यु सिर पर नाच रही है।’’

उनके इन व्यंग्य वचनों को सुनकर हिरण्याक्ष उन पर झपट पड़ा। भगवान वाराह और हिरण्याक्ष के मध्य भयंकर युद्ध हुआ और अंत में हिरण्याक्ष का भगवान वाराह के हाथों वध हो गया। भगवान वाराह के विजय प्राप्त करते ही ब्रह्मा जी सहित समस्त देवतागण आकाश में से पुष्प वर्षा कर उनकी स्तुति करने लगे। 

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