वास्तुदोषों के कारण ही भारत के एकमात्र यहूदी उपासना स्थल के हैं ऐसे हालात!

Edited By ,Updated: 01 Sep, 2015 04:43 PM

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15 वीं शताब्दी में यहूदियों ने स्पेन से आकर भारत का एकमात्र यहूदियों का धार्मिक स्थल सिनागोग (Synagogue) का ज्यू टाऊन मतानचैरी में निर्माण किया।

15 वीं शताब्दी में यहूदियों ने स्पेन से आकर भारत का एकमात्र यहूदियों का धार्मिक स्थल सिनागोग (Synagogue) का ज्यू टाऊन मतानचैरी में निर्माण किया। ज्यू टाऊन मतानचैरी अरनाकुलम् के पास एक आईलैण्ड में स्थित है। आईलैण्ड के दूसरे भाग में फोर्ट कोच्ची भी है। सिनागोग (धार्मिक स्थल) परिसर के एकमात्र बड़े हाल की पश्चिम दिशा में यहूदियों का पवित्र ग्रन्थ तोराह लाल रंग के खूबसूरत कपड़ों से ढंक कर रखा गया है। तोराह के ठीक सामने हाल के मध्य में एक लकड़ी का स्टेण्ड है। हाल की पूर्व दिशा में एक मैजनाईन फ्लोर है जहां केवल महिलाएं ही बैठ सकती हैं। पुरुष हाल के नीचे वाले भाग में बैठते हैं। हाल के अन्दर फर्श पर 15 वीं शताब्दी में चीन से लाई गई सुन्दर चीनी टाईल्स लगी हैं और छत पर शानदार बेलजियम के झूमर लगे हुए हैं। 

जैसा कि, गाईड ने बताया, मतानचैरी बस्ती में अब यहूदियों के केवल 5 परिवार ही बचे हैं, जिसमें सिर्फ 11 सदस्य हैं जो सिनागोग के पास स्थित बाजार में दुकानें चलाते हैं। इस उपासना स्थल में प्रति शुक्रवार और शनिवार यहूदी प्रार्थना करने आते हैं। प्रार्थना के दौरान यहां कोई गैर यहूदी नहीं आ सकता है। इस सिनागोग पर भारत सरकार ने 20 पैसे मूल्य की एक डाक टिकिट भी निकाली है।

सम्पूर्ण भारत में एकमात्र यहूदी धर्मस्थल होने के बाद भी यह स्थान न तो विकसित हो सका है और न ही विशेष प्रसिद्धि प्राप्त कर सका, सिनागोग की इस स्थिति का कारण इसकी बनावट में कुछ महत्वपूर्ण वास्तुदोष होना है जो कि इस प्रकार है -

1 वर्तमान में यह धार्मिक स्थल सड़क के डेडएण्ड पर स्थित है जहां काफी ऊंचा क्लाक टावर बना हुआ है। जो कि, सिनागोग परिसर के ईशान कोण वाले भाग में स्थित है।

2 इसका मुख्यद्वार पूर्व आग्नेय में है। द्वार की यह स्थिति विवाद और कलह का कारण होने के साथ-साथ लोगों को अपनी ओर आकर्षित नहीं करती है। इस कारण यहां जितने पर्यटक आने चाहिए, उतने नहीं आ पाते हैं।

3 धर्मस्थल में अन्दर आते ही उल्टे हाथ पर आफिस और सीधे हाथ पर म्यूजियम है, जिनके पीछे प्रार्थना स्थल है। इस प्रकार आफिस और म्यूजियम की स्थिति पूर्व दिशा में है और यह पूरा भाग एक फीट ऊंचा है। परिसर के अन्दर ईशान कोण में एक चकोर कुंआ तो वास्तुनुकूल बना है परंतु साथ ही इसके पीछे ईशान कोण का बड़ा भाग तीन फीट ऊंचा होकर वास्तुदोष युक्त है। इन दोषों के कारण ही सिनागोग की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और न ही यहां आने वाले यहूदियों और पर्यटकों की संख्या बढ़ी है।

4 मुख्य हाल के बाहर परिसर के खुले भाग के फर्श का आधा ढाल उत्तर दिशा की ओर और आधा ढाल दक्षिण दिशा की ओर है। दक्षिण की ओर ढलान लिए हुए फर्श को वास्तुदोष माना जाता है। दक्षिण दिशा के दोष जो महिलाओं को प्रभावित करते हैं।

5 हाल के अन्दर पूर्व दिशा में बना मैजनाईन फ्लोर वास्तु सिद्धान्तों के विपरीत है। मैजनाईन फ्लोर केवल दक्षिण या पश्चिम दिशा में ही शुभ माने जाते हैं। इन्हीं सभी वास्तुदोषों के कारण ही भारत के एकमात्र यहूदी उपासना स्थल के ऐसे हालात बने हुए है। उपासना स्थल की पवित्रता को ध्यान में रखते हुए यदि सभी वास्तुदोषों को दूर करना सम्भव न हो तो जहां पवित्र ग्रन्थ तोराह रखा हुआ है, उस हाल में कोई परिवर्तन न करते हुए संशोधित प्लान में दिखाए अनुसार बाहर परिसर के कुछ वास्तुदोष दूर किए जाए तो निश्चित स्थिति में आश्चर्यजनक सकारात्मक सुधार आ सकता है और इस धार्मिक स्थल की पवित्रता भी पूर्ववत बनी रहेगी।

6 परिसर के सम्पूर्ण फर्श का ढ़ाल उत्तर, पूर्व दिशा एवं ईशान कोण की ओर कर दिया जाए ताकि परिसर का पानी ईशान कोण से बहकर बाहर जाए।

7 आफिस और म्यूजियम का 1 फीट ऊंचा प्लेटफार्म तथा ईशान कोण स्थित 3 फीट ऊंचा प्लेटफार्म नीचा कर परिसर के बाकी फर्श के बराबर कर दिया जाए अथवा परिसर के फर्श को ऊंचा कर आफिस और म्यूजियम के फर्श के बराबर कर दिया जाए और ईशान कोण स्थित 3 फीट ऊंचे भाग को नीचा कर बाकी फर्श के बराबर कर दिया जाए। इन परिवर्तनों से सिनागोग की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।

8 आफिस छोटा है और म्यूजियम बड़ा है। यदि आफिस के स्थान पर म्यूजियम और म्यूजियम के स्थान पर आफिस बनाया जाए, जिससे सिनागोग में अन्दर आने का द्वार पूर्व आग्नेय से हटाकर पूर्व ईशान में वास्तुनुकूल स्थान पर आ जाएगा, जिससे यहां आने वाले यहूदियों और पर्यटकों की संख्या में बढ़ौत्तरी होगी।

9 डेड एंड के दोष को खत्म करने के लिए संशोधित प्लान में दिखाए स्थान पर एक द्वार लगा देने से यह दोष खत्म हो जाएगा।

- वास्तु गुरू कुलदीप सलूजा 

thenebula2001@yahoo.co.in

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