कानपुर की मैरीकॉम पतंग बनाने को मजबूर, सामने आया सरकार का झूठा वादा (PICS)

Edited By ,Updated: 03 Sep, 2015 09:21 PM

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पिछले सप्ताह ही खेल दिवस के मौके पर केन्द्र और राज्य सरकार ने खिलाडिय़ों को सम्मानित किया और खेल को बढ़ावा देने के बड़े-बड़े दावे किए लेकिन कानपुर की एक महिला बाक्सर रुक्सार बानो की हालत इन दावों की पोल खोल देने के लिये काफी है।

कानपुर(अंबरीश त्रिपाठी): पिछले सप्ताह ही खेल दिवस के मौके पर केन्द्र और राज्य सरकार ने खिलाडिय़ों को सम्मानित किया और खेल को बढ़ावा देने के बड़े-बड़े दावे किए लेकिन कानपुर की एक महिला बाक्सर रुक्सार बानो की हालत इन दावों की पोल खोल देने के लिये काफी है। कानपुर की यह मैरी कॉम इन दिनों घर में पतंग बनाकर अक्टूबर में होने वाली चैम्पियनशिप के लिये पैसे जुटा रही है। 
 
मजबूत कलाईयां पतंग बनाने को मजबूर-
ये मजबूत कलाईयॉ कभी बॉक्सिंग रिंग के भीतर प्रतिद्वन्दी खिलाड़ी को धूल चटाया करती थीं लेकिन अब ये पतले और नाजुक कागज पर गोंद लगाने और उनसे पतंग बनाने का काम कर रही हैं। यह कलाईयॉ हैं कानपुर के मछरिया इलाके में रहने वाली रुक्सार बानो की है , जिसने कभी मणिपुर की चुन्गनीजंग की तरह मैरी कॉम बनने का सपना देखा था। 10 नेशनल बाक्सिंग चैंपियनशिप और 12 स्टेट चैंपियनशिप में हिस्सा लेकर स्वर्ण और रजत सहित ढेरों पदक जीत चुकी कानपुर के मछरिया मोहल्ले की रुक्सार बानो आज तक तीन हजार का जूता नहीं ले पाई हैं। पैसों की इस कदर तंगी है कि खुद और पूरा परिवार दिनभर पतंग बनाता है और 10 घंटे में मात्र 80 रुपये कमा पाता है। 
 
जूता उधार लेकर की प्रैक्टिस- 
विशाखापट्टनम में बाक्सिंग के इंडिया लेवल कैंप में दर्जनों खिलाड़ी प्रैक्टिस कर रहे थे तब रूकसार मैदान में संकोच कर आंखों में आंसू लिए खड़ी सबको देख रही थी। सब खिलाड़ी महंगे ट्रैक सूट, महंगे जूते, महंगी किट लिए उछल कूद मचाए थे और यह लड़की अपने पैरों के फटे जूते छिपाने की कोशिश कर रही थी। उसका 300 रुपये कीमत का जूता दो रनिंग में ही फट गया था। कोच से समस्या बताई तो वे उसे पास के शोरूम में ले गए। उसके नाप का जूता पहनाया लेकिन फिट आने के बाद भी उसने कह दिया कि जूता टाइट है। वजह यह थी कि जूता तीन हजार रुपये का था और उसकी जेब में सात सौ रुपये ही थे। झूठ बोलकर कि कोई जूता फिट नहीं आ रहा, वह शोरूम से चली आई और फिर एक जूनियर के हाथ-पैर जोड़कर जूता उधार लेकर प्रैक्टिस की। हीन भावना से दबी कुचली यह खिलाड़ी अब तब टूर्नामेण्ट के लिए क्वालिफाई नहीं कर पाई। 
 
ग्लब्स उतारकर पकड़ी पतंग-
अब रुक्सार ने ग्लब्स उतारकर पतंग पकड़ ली है, अर्थिक तंगी के चलते वो 2014 से किसी प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले पाई। अक्तूबर में फिर चैंपियनशिप है पर प्रैक्टिस को दिल्ली जाने तक के पैसे नहीं। रूकसार भर्राए गले से पूछती है खिलाडिय़ों के अच्छे दिन कब आएंगे। 
 
मैरीकॉम से कुछ अलग नहीं है रूकसार की कहानी-
रूकसार की कहानी मैरीकॉम से कुछ अलग नहीं है। महिला बॉक्सर बनने के लिये उसे भी अपने पिता के विरोध का सामना करना पड़ा।
रुक्सार बताती है कि थोड़ी शोहरत तो मिली लेकिन घर वाले बिफर गए। फिर भी चोरी-छिपे स्कूल में और ग्रीनपार्क में जाकर प्रैक्टिस करती रही। पटियाला में नेशनल खेलकर कांस्य जीत लाई और फिर घर के पते पर 10,000 की चेक आई तो अब्बू हत्थे से उखड़ गए। मोहल्ले वालों ने बहुत समझाया तो माने। 
 
क्या कहते हैं रूकसार के पिता- 
पिता मोहम्मद अशरफ ने बताया कि एक प्राइवेट कॉलेज से इंटर कर रही पांच बार बेस्ट बॉक्सर का खिताब जीत चुकी रुक्सार उस निम्नवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती है जहां खेल के बारे में सोचना और खिलाड़ी बनने का सपना सोचना भी दूर की बात है। सन् 2006 में जब वो कानपुर के कान्याकुब्ज गल्र्स कालेज में पढ़ती थी तो एक दिन बाक्सिंग के कोच संजीव दीक्षित कुछ बच्चों को बाक्सिंग सिखाने आए, तब पहली बार एक-दो मुक्के चलाए। कोच ने लड़की का हौसला भॉप लिया और हौसला बढ़ाया। कई बार कहने पर बाक्सिंग सीखने लगी। कोच ने कोई फीस नहीं ली, उल्टा अपनी जेब से मदद करने लगे तो रुखसार के मुक्कों में दम आने लगा। उसे 2006 में ग्रीनपार्क में स्टेट ट्रायल में मौका मिल गया लेकिन खान-पान दुरुस्त नहीं था तो अंडर वेट रह गई। फिर भी मौका मिल गया और बुलंदशहर में हुई प्रतियोगिता में 40-42 किलो भारवर्ग में गोल्ड मेडल जीत लिया। 2014 कामनवेल्थ गेम्स के लिए चुन ली गई पर दिल्ली ट्रायल में जाने के लिए पैसे नहीं थे तो छोटे भाई को मिला लैपटॉप बेचना पड़ा। क्या-क्या बेचती? यह सोचकर 2014 में बाक्सिंग ग्लब्स उतार कर रख दिए।  
                 
सरकारें करती हैं खोखले वायदे-रूकसार की अम्मी 
रुक्सार बानो अपनी अम्मी, बहन के साथ मिलकर दिनभर पतंग बनाती है। 1000 पतंग बनाने में 40 रुपये कमाई होती है। ग्लब्स देखकर बार-बार रोती है पर आंसू नीचे नहीं गिरने देती कि कहीं पतंग भीगकर खराब न हो जाए। कहती है, शासन-प्रशासन, सरकार, स्कूल-कालेज, कहीं से मदद नहीं मिली। बॉक्सर की एक दिन की डाइट करीब 300 रुपये की होनी चाहिए पर पूरा परिवार मिलकर 80 रुपये कमा पाता है। रूकसार एक बार मैरीकॉम से मुलाकात कर चुकी है। उनके जैसी बनना चाहती है लेकिन सरकारों के खोखले वायदे उसके सपने पूरे नहीं होने देते। 
 
रुक्सार बानो का रिकार्ड - 
राज्य प्रतियोगिताएं-12 राज्य प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। 2006-लखनऊ-बुलंदशहर में गोल्ड मेडल, 2007-गाजियाबाद-मुरादाबाद में गोल्ड, 2008 लखनऊ, 2009 बुलंदशहर-कानपुर, 2011-बुलंदशहर और लखनऊ में गोल्ड मेडल, 2012 झांसी और 2013 मुजफ्फरनगर में गोल्ड जीता।
नेशनल चैंपियनशिप-
10 नेशनल चैंपियनशिप खेलीं। 2006 पटियाला में कांस्य, 2007 काकीनाणा कांस्य, 2009 पटना, कांस्य, 2012 पटियाला कांस्य, 2010 इरोड में कांस्य जीते।

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