टीचर्स डेः अंधेरे से उजाले की ओर ले जाने वाले शिक्षको को समर्पित है ये दिन

Edited By ,Updated: 05 Sep, 2015 08:30 AM

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एक बार विख्यात दार्शनिक प्लेटो ने कहा था, ‘राजाओं को दार्शनिक होना चाहिए और दार्शनिकों को राजा।’ प्लेटो के इस कथन को सन् 1962 में राधाकृष्णन ने तब सच कर दिखाया जब वह भारत के दूसरे राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। सन् 1967 में निधन तक राष्ट्रपति के रूप में...

एक बार विख्यात दार्शनिक प्लेटो ने कहा था, ‘राजाओं को दार्शनिक होना चाहिए और दार्शनिकों को राजा।’ प्लेटो के इस कथन को सन् 1962 में राधाकृष्णन ने तब सच कर दिखाया जब वह भारत के दूसरे राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। सन् 1967 में निधन तक राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने देश की अमूल्य सेवा की। डा. राधाकृष्णन जीवनभर अपने आप को शिक्षक मानते रहे। उन्होंने अपना जन्मदिवस शिक्षकों के लिए समर्पित किया इसलिए 5 सितम्बर को भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

तमिलनाडु में चेन्नई के पास तिरूतनी नामक गांव में 5 सितम्बर1888 को जन्मे डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन प्रकांड विद्वान और दार्शनिक थे। बचपन से ही मेधावी राधाकृष्णन ने दर्शनशास्त्र में एम.ए. की उपाधि ली और मद्रास रैजीडैंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हो गए। 

इसके बाद वह प्राध्यापक भी रहे। डा. राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शनशास्त्र से परिचित कराया। सारे विश्व में उनके लेखों की प्रशंसा हुई।

शिकागो विश्वविद्यालय ने डा. राधाकृष्णन को तुलनात्मक धर्मशास्त्र पर भाषण देने के लिए आमंत्रित किया। वह भारतीय दर्शनशास्त्र परिषद् के अध्यक्ष भी रहे। कई भारतीय विश्वविद्यालयों की भांति कोलंबो एवं लंदन विश्वविद्यालय ने भी अपनी-अपनी मानद उपाधियों से उन्हें सम्मानित किया। विभिन्न महत्वपूर्ण उपाधियों पर रहते हुए भी उनका ध्यान तथा जोर सदैव अपने विद्यार्थियों और संपर्क में आए लोगों में राष्ट्रीय चेतना बढ़ाने की ओर रहता था।

डा. राधाकृष्णन अपने राष्ट्रप्रेम के लिए विख्यात थे फिर भी अंग्रेज सरकार ने उन्हें सर की उपाधि से सम्मानित किया। वह छल-कपट से कोसों दूर थे। अहंकार तो उनमें नाम मात्र भी न था। 

देश की स्वतंत्रता के बाद भी डा. राधाकृष्णन ने अनेक महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। वह संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था और पूरे संसार के लोगों की भलाई के लिए कार्य करने वाली यूनैस्को की कार्यसमिति के अध्यक्ष भी बनाए गए।

सन् 1949 से सन् 1952 तक डा. राधाकृष्णन रूस की राजधानी मास्को में भारत के राजदूत पद पर रहे। भारत-रूस की मित्रता बढ़ाने में उनका भारी योगदान रहा था। सन् 1952 में वे भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति बनाए गए। इस महान दार्शनिक, शिक्षाविद् और लेखक को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद जी ने देश का सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न प्रदान किया। 

शिक्षक दिवस

इस दिन समस्त देश में भारत सरकार द्वारा श्रेष्ठ शिक्षकों को पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। राधाकृष्णन गैर-राजनीतिक व्यक्ति होते हुए भी देश के राष्ट्रपति बने। इससे यह साबित होता है कि यदि व्यक्ति अपने क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ कार्य करे तो भी दूसरे क्षेत्र उसकी प्रतिभा से अप्रभावित नहीं रहते। 

राधाकृष्णन बहुआयामी प्रतिभा के धनी होने के साथ ही देश की संस्कृति को प्यार करने वाले व्यक्ति थे। उन्हें एक बेहतरीन शिक्षक, दार्शनिक, देशभक्त और निष्पक्ष एवं कुशल राष्ट्रपति के रूप में यह देश सदैव याद रखेगा। 

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