प्रदूषण की भरमार, नदियों की ‘शुद्धता’ तार-तार

Edited By ,Updated: 01 Dec, 2015 12:47 AM

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प्रदूषित होती नदियां जितनी चिंता का विषय हैं उससे बड़ी चिंता वे मानव निर्मित कारण हैं जो इनका मूल हैं। निदान ढूंढे बिना नदियों के प्रदूषण से शायद ही मुक्ति मिल पाए।

(ऋतुपर्ण दवे): प्रदूषित होती नदियां जितनी चिंता का विषय हैं उससे बड़ी चिंता वे  मानव निर्मित कारण हैं जो इनका मूल हैं। निदान ढूंढे बिना नदियों के प्रदूषण से शायद ही मुक्ति मिल पाए। भारत में अब इसके लिए समय आ गया है जब जल क्रांति हो, लोग स्वस्फूर्त इस विषय पर सोचें, जागरूक हों और कुछ करें, तभी सकारात्मक नतीजे निकलेंगे वर्ना आयोग, बोर्ड, ट्रिब्यूनल यूं ही बनते रहेंगे। बहस, सुनवाई, फैसले होंगे, महज औपचारिकताओं की पूर्ति होगी और हर गांव, कस्बे, शहर, महानगर की आबादी की गंदगी का आसान और नि:शुल्क  वाहक बनी नदियां दिन-प्रतिदिन प्रदूषित होंगी, सूखेंगी और मरती रहेंगी। बस  हाय-तौबा के अलावा हाथ कुछ नहीं आएगा।
 
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की हालिया रिपोर्ट चौंकाने वाली है। 40 नदियों को जांचा गया, 35 बुरी तरह प्रदूषित निकलीं जिनका पानी पीने लायक बिल्कुल नहीं है। इनमें पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण हर जगह की नदियां हैं। 4 ही ठीक-ठाक निकलीं। पवित्र, जनआस्था, लोकगाथा और किंवदंतियों से जुड़ी गंगा, यमुना, नर्मदा, सोन, कृष्णा, इंद्रावती, वाणगंगा, कोसी, चम्बल, घाघरा, सतलुज, रावी, बेतवा, साबरमती, ताप्ती, महानदी, दामोदर, दमनगंगा, रामगंगा, सुबर्नरेखा, तुंगभद्रा, मार्कण्डा, सरसा, माही, किच्छा, पिलाखर, मंजीरा, चुरनी, बहेला, ढेला, स्वान, भीमा, वर्धा सबकी सब प्रदूषित हैं। यह जांच का छोटा नमूना है। तमाम नदियों के बारे में सोचकर सिहरन होने लगती है। इसे सैम्पल भी मानें तो साफ-सुथरी नदियों का प्रतिशत केवल 10 है। यकीनन बेहद विचारणीय है भारत में नदियों की दुर्दशा।
 
अकेले गंगा की सफाई 30 बरस से जारी है। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ महीने पहले ही तल्ख टिप्पणी की थी कि मौजूदा कार्ययोजनाओं से लगता नहीं कि गंगा 200 वर्षों में भी साफ हो पाएगी। कदम वह हो जिससे गंगा अपनी सनातन भव्यता हासिल कर सके। न्यायालय ने यह भी कहा कि इसे वर्तमान कार्यकाल में पूरा करना है या अगले कार्यकाल के लिए जिंदा रखना है। ‘नमामि गंगे’ योजना पर वर्ष 2014-15 में 324.88 लाख रुपए खर्चे गए जबकि वर्ष 2015-16 की पहली तिमाही में धेला भर भी नहीं। इधर अगले पांच सालों के लिए 20 हजार करोड़ रुपए की अग्रिम स्वीकृति है। 
 
यह दशा उस गंगा की है जो मोक्ष दायिनी है, खुद अपने मोक्ष को तरस रही है। नर्मदा और भी श्रेष्ठ मानी गई  है। पद्म पुराण में लिखा है ‘पुण्या कनखले गंगा, कुरुक्षेत्रे सरस्वती।  ग्रामे वा यदि वारण्ये, पुण्या सर्वत्र नर्मदा।।’ अर्थात गंगा को कनखल तीर्थ में विशेष पुण्यदायी माना जाता है, सरस्वती को कुरुक्षेत्र में, किन्तु नर्मदा चाहे कोई ग्राम हो या फिर जंगल सर्वत्र ही विशेष पुण्य देने वाली है। ऐसी पवित्र नर्मदा अपने उद्गम अमरकण्टक कुंड से ही प्रदूषित होने लगती है। वहीं सोन थोड़ा आगे एक कागज के कारखाने का जहर लिए रास्ते के हर गांव, कस्बे, शहर की गंदगी समाए बढ़ती जाती है। यमुना का हाल भी छुपा नहीं है। जो नदी जहां से भी गुजरी, वहां की गंदगी का आसान और मुफ्त वाहक भी बनती चली गई। हर कहीं औद्योगिक मलबा, फैक्टरियों का कचरा, गंदा सीवर बेहिचक नदियों में छोड़ा जा रहा है।
 
लोकसभा की बीते साल जुलाई की जानकारी के अनुसार 27 राज्यों में कुल 150 नदियां प्रदूषित हैं, सबसे ज्यादा 28 महाराष्ट्र में हैं। विकास की मिसाल गुजरात का हाल और भी बेहाल है, वहां 19 नदियां प्रदूषित हैं। 12 प्रदूषित नदियों के साथ उत्तर प्रदेश का तीसरा स्थान है। कर्नाटक की 11, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु की 9-9, राजस्थान, झारखंड, उत्तराखंड और हिमाचल की 3-3 और दिल्ली से गुजरने वाली इकलौती यमुना भी है। सभी बेहद प्रदूषित नदियों की श्रेणी में शामिल हैं। राष्ट्रीय नदी संरक्षण और राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की 10,176 करोड़ रुपए की योजनाओं में 21 राज्यों के 199 शहरों की 42 नदियां शामिल हैं। 
 
नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एन.जी. टी.) के अध्यक्ष जस्टिस दिलीप सिंह भी मानते हैं कि नदियों के किनारों पर अतिक्रमण न हो, मलबा न डले, हरियाली रखी जाए। नदी शुद्धिकरण ट्रीटमैंट प्लांट तो बनें लेकिन हमेशा चलने के खर्चों का इंतजाम पहले हो। उन्होंने माना कि लोग जागरूक हुए हैं और जी.एन.टी. तक पहुंचने लगे हैं जो सुकून की बात है पर अमल कराने वाले बेपरवाह हैं। कानूनन जी.एन.टी. निर्देशों के अमल में देरी पर दफा 26 और 28 के तहत संबंधित विभाग और अफसरों पर 25 करोड़ रुपयों तक के जुर्मानों का प्रावधान है। नदियों की बर्बादी में रेत का खेल भी जबरदस्त है। राज्य केवल करोड़ों तो रसूखदार अवैध तरीकों से अरबों रुपए कमाते हैं। इसमें स्थानीय प्रशासन, बिल्डर, माफिया, दबंग, राजनीतिज्ञ, धार्मिक संगठन  सभी शामिल हैं जो सिर्फ और सिर्फ नदियों को लूटते हैं, उन्हें देते कुछ नहीं। इन हालातों में भी 40 में से 4 नदियां लाज बचाए हुए हैं, यह क्या कम है?
 
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