चीन और अमरीका का बिजनेस वॉरजोन बना भारत, जानिए क्यों?

Edited By ,Updated: 12 Feb, 2016 12:23 PM

make my trip goibibo

ऑनलाइन ट्रैवल कंपनी मेक माइ ट्रिप जहां एक ओर भारत में अपने पैर मजबूत करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है वहीं उसकी प्रतिद्वंद्वी कंपनी गो इबिबो अपने ग्राहकों को भारी छूट ऑफर कर रहा है।

नई दिल्लीः ऑनलाइन ट्रैवल कंपनी मेक माइ ट्रिप जहां एक ओर भारत में अपने पैर मजबूत करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है वहीं उसकी प्रतिद्वंद्वी कंपनी गो इबिबो अपने ग्राहकों को भारी छूट ऑफर कर रहा है। गो इबिबो में दक्षिण अफ्रीकी मीडिया ग्रुप नैस्पर का बड़ा निवेश है।

 

मेक माइ ट्रिप दरअसल चर्चा में इसलिए है क्योंकि उसने फंड जुटाने के लिए परंपरा से हटकर पश्चिम की बजाय पूर्व की ओर कोशिशें तेज कर दी हैं। वह चीन में निवेशक की तलाश कर रही है और उसे इसमें कुछ हद तक सफलता भी मिली है।

 

पिछले महीने ही कंपनी ने चीन के ऑनलाइन ट्रैवल फर्म सी ट्रिप से करीब 180 मिलियन डॉलर (1223.1 करोड़ रुपए) के निवेश हासिल होने की घोषणा की थी। एक अनुमान के मुताबिक मेक माइ ट्रिप की कुल वैल्यू 645 मिलियन डॉलर की जबकि सी ट्रिप की कुल मार्कीट वैल्यू 15 अरब डॉलर की है।

 

चीनी निवेशक पश्चिमी निवेशकों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। पिछले काफी लंबे समय से भारतीय कंपनियों की फंडिंग की जरूरत को पश्चिमी डॉलर्स पूरा करते आ रहे थे लेकिन अब इसमें बदलाव देखने को मिल रहा है। लॉजिस्टिक्स स्टार्टअप शैडोफैक्स के फाऊंडर अभिषेक बंसल कहते हैं कि चीनी निवेशक यहां के बाजार में मजबूती देख रहे हैं और वे यहां निवेश को लेकर कॉन्फिडेंस भी दिखा रहे हैं।

 

चीन की अर्थव्यवस्था और उसकी मुद्रा की गिरती हालत ने वहां के बड़े निवेशकों को भारत के इंटरनैट और टैक्नॉलजी इकोसिस्टम की तरफ रुख करने पर मजबूर कर दिया है। दिलचस्प बात यह है कि अब तक यहां अमरीकी डॉलर्स का दबदबा देखा जाता था। इस नए ट्रेंड ने ही भारत में चीन और अमरीकी निवेशकों के लिए एक तरह से बिज़नेस वॉरज़ोन तैयार कर दिया है।

 

चीन के इंटरनैट जाएंट्स बायदू, अलीबाबा और टेंसेंट जिन्हें बैट (BAT) के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्टार्टअप्स में आक्रामक रूप से निवेश कर रहे हैं। हालांकि अभी तक बायदू को इस दिशा में खास सफलता नहीं मिल सकी है और वह अभी भी किसी बड़ी डील की तलाश कर रहा है। अलीपे-पेटीएम, फॉक्सकॉन और अलीबाबा ग्रुप-स्नैपडील जैसे चीनी निवेश के कुछ और उदाहरण इसमें शामिल हैं।

 

एक और गौर करने वाली बात यह है कि जहां चीनी कंपनियां भारतीय स्टार्टअप्स में निवेश कर रहीं हैं वहीं इस ट्रेंड से अलग उबर और ऐमजॉन जैसी अमेरिकी कंपनियां भारतीय स्टार्टअप्स को प्रतिद्वंद्वी की तरह देखती हैं। इसके अलावा राजनीतिक संबन्धों के मद्देनज़र चीनी कंपनियां यहां के स्टार्टअप्स में बड़ी हिस्सेदारी लेने से भी बच रहीं हैं जिसका सीधा फायदा यह है कि इन स्टार्टअप्स की बागडोर भारतीयों के हाथों में ही रहती है।

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