‘नाड़ जलाने’ से हो रही दुर्घटनाएं और हवा में ‘फैलता जहर’

Edited By ,Updated: 29 Apr, 2016 01:36 AM

poison

धान और गेहूं की कटाई के बाद खेतों में खड़ी पराली और नाड़ को आग लगाने पर प्रतिबंध के बावजूद किसानों में अपने खेतों को जल्दी खाली करके दूसरी फसल के लिए ...

धान और गेहूं की कटाई के बाद खेतों में खड़ी पराली और नाड़ को आग लगाने पर प्रतिबंध के बावजूद किसानों में अपने खेतों को जल्दी खाली करके दूसरी फसल के लिए तैयार करने के उद्देश्य से इसे आग लगाने की कुप्रवृत्ति पिछले काफी समय से उत्तरी भारत के राज्यों में प्रचलित है।

 
इस आग की गर्मी से खेतों में मौजूद भूमिगत कृषि मित्र कीट तथा सूक्ष्म जीव मर जाते हैं, इससे कृषि भूमि का सत्यानाश होता है, उर्वरता घटती है और शत्रु कीटों का प्रकोप बढऩे से फसलों को अनेक बीमारियां लग जाती हैं।
 
अमरीकी कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार भारत में वायु प्रदूषण के चलते अन्न का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है और यदि भारत वायु प्रदूषण का शिकार न हो तो इसका अन्न उत्पादन वर्तमान से 50 प्रतिशत अधिक हो सकता है। 
 
पराली व नाड़ को आग लगाने से वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और मिथेन आदि विषैली गैसों की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है। एक टन पराली व नाड़ जलाने पर हवा में 3 किलो कार्बन कण, 60 किलो कार्बन मोनोऑक्साइड, 1500 किलो कार्बन डाईऑक्साइड, 200 किलो राख और 2 किलो सल्फर डाईऑक्साइड फैलते हैं। 
 
स्वास्थ्य के लिहाज से भी यह धुआं अत्यंत हानिकारक होता है। इससे लोगों की त्वचा एवं सांस संबंधी तकलीफें बढ़ जाती हैं। पंजाब और हरियाणा में इन्हें जलाने के दुष्परिणामों का दिल्ली तक असर दिखाई दे रहा है। 
 
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के अनुसार ‘‘पराली व नाड़ जलाने से होने वाला वायु प्रदूषण रोकने के लिए पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा सरकारों ने इनके जलाने पर रोक लगा दी है।’’ 
 
परंतु इस पर अमल नहीं हो रहा। समाचारपत्रों में इन्हें आग लगाने के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करने संबंधी सूचनाएं प्रकाशित करवाने के बावजूद यह प्रतिबंध कागजों तक ही सीमित है। इससे भी बुरी बात यह है कि संबंधित अधिकारी कम ही फील्ड में जाकर पराली व नाड़ जलाने के मामलों की पड़ताल करते हैं और किसान भी इसे गंभीरतापूर्वक नहीं लेते। 
 
पराली व नाड़ के निपटारे को लेकर पंजाब में भी लगभग यही स्थिति है। इसके धुएं के कारण वातावरण में दूर-दूर तक अंधकार छा जाने से बड़ी संख्या में सड़क दुर्घटनाएं और मौतें तक होती हैं। 
 
अभी 27 अप्रैल को नाभा-मालेरकोटला रोड पर एक गांव में किसानों द्वारा नाड़ को लगाई गई आग धीरे-धीरे गांव के निकट तक जा पहुंची जिसके परिणामस्वरूप कई मवेशी भी आग की लपेट में आकर झुलस गए। 
 
अब हरियाणा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा दोषी किसानों को इसे जलाने से रोकने के लिए तथा आदेश का उल्लंघन करने वाले किसानों के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए एक समिति गठित करने पर विचार किया जा रहा है जिसके अंतर्गत इसे जलाने पर 2500 से 15,000 रुपए तक जुर्माना किया जा सकेगा। 
 
अधिकारियों द्वारा खेतों में नाड़ न जलाने की अपील के बावजूद किसानों द्वारा ऐसा करने पर पंजाब में कुछ मामले दर्ज किए गए हैं परंतु इस सम्बन्ध में निगरानी को तेज करने की आवश्यकता है।
 
इससे भी बढ़कर आवश्यकता इस बात की है कि किसानों को पराली व नाड़ जलाने से रोकने के लिए जागरूक किया जाए। इसे ठिकाने लगाने के लिए उन्हें विकल्प बताए जाने चाहिएं। इसके लिए उन्हें रोटावेटर, हैप्पी सीडर तथा ‘स्ट्रॉ रीपर्स’ का इस्तेमाल करने की सलाह दी जा रही है जो उन्हें सस्ते दामों पर उपलब्ध करवाए जाते हैं परंतु वे इनका लाभ नहीं उठा रहे।
 
किसानों को इनके इस्तेमाल के लिए प्रेरित करने के साथ ही उन्हें यह जानकारी भी दी जाए कि पराली व नाड़ को जलाकर अपने खेतों की उर्वरता नष्टï करने और वायु प्रदूषण को बढ़ावा देने की बजाय इसे सही ढंग से ठिकाने लगाना अधिक बेहतर है।

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!