चीन को भारत के हर दावे पर एतराज क्यों

Edited By ,Updated: 05 May, 2016 07:37 PM

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चीन ने अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न अंग बताने वाले अमेरिकी राजनयिक क्रेग. एल. हॉल के बयान पर ऐतराज जताया है। इस

चीन ने अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न अंग बताने वाले अमेरिकी राजनयिक क्रेग. एल. हॉल के बयान पर ऐतराज जताया है। इस पर वह वॉशिंगटन से सफाई मांगने की तैयारी कर रहा है। वह चाहता है कि भारत-चीन सीमा विवाद में कोई अन्य देश दखलंदाजी न करे। चीन के विदेश मंत्रालय के अनुसार अमरीकी राजनयिक का बयान तथ्यों से पूरी तरह परे है। दरअसल, चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत कहता है और उस पर अपनी दावेदारी जताता रहा है। अमरीकी राजनयिक बयान के जवाब में चीनी विदेश मंत्रालय का मानना है कि चीन और भारत के बीच सीमा का सवाल चीन की क्षेत्रीय संप्रभुता और चीनी लोगों की भावनाओं से जुड़ा है। कोई उसे बताए कि यह मामला भारत के संप्रभुता और जनभावनाओं से भी जुड़ा हुआ है। इसमें हस्तक्षेप करके चीन उसे चोट पहुंचा रहा है। इससे उसे बाज आना चाहिए।

अरुणाचल प्रदेश भारत का एक उत्तर पूर्वी राज्य है। इसकी सीमाएं दक्षिण में असम, दक्षिणपूर्व में नागालैंड, पूर्व में म्यांमार, पश्चिम मे भूटान और उत्तर में तिब्बत से मिलती हैं। भारत के इस राज्य क एक हिस्से पर चीन अपना दावा करता हे और उसने इसे दक्षिणी तिब्बत का नाम भी दे दिया है। चीन से भारत की आपत्ति है कि उसने किस आधार पर इस प्रदेश को दक्षिण तिब्बत मान लिया है। यह सीधेतौर पर उसकी संप्रभुता में दखलांदाजी है। पिछले महीने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और उनके चीनी समकक्ष यांग जाइची के बीच सीमा वार्ता का 19वां दौर पूरा हुआ था। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा को अपने दायरे में लेती है। चीन का कहना है कि सीमा विवाद 2,000 किलोमीटर, खासकर पूर्वी सेक्टर में अरुणाचल प्रदेश, तक सीमित है। भारत का पक्ष है कि इस विवाद में 1962 के युद्ध के दौरान चीन द्वारा हड़प लिया गया, अक्साई चिन सहित समूची एलएसी शामिल है। 

चीन कभी शांत नहीं रहा है। वह अपनी कोई न कोई हरकत करके इस मुद्दे को गर्म रखता है। पिछले साल चीन के सरकारी चैनल सीसीटीवी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा की खबरें दिखाते समय भारत के नक्शे में जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा नहीं दिखाया गया था। भारत के नक्शे को गलत तरह से दिखाने पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कांग्रेस ने प्रधानमंत्री से सवाल किया था कि वह इस मुद्दे को चीनी नेतृत्व के साथ सख्ती से क्यों नहीं उठाते। यही नहीं, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिह जब अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर गए थे, तब भी चीन को आपत्ति थी। भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने चीन की आपत्तियों को ख़ारिज करते हुए जवाब दे दिया था कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और प्रधानमंत्री वहां जाने को स्वतंत्र हैं।

सवाल है कि चीन अरुणाचल प्रदेश के ​एक हिस्से पर दावा क्यों करता है। चीन का कहना है कि अरुणाचल प्रदेश के तवांग इलाके में जो बौद्ध मठ हैं वे बुद्धिज्म के प्रतीक हैं। यहीं छठे दलाई लामा का जन्म हुआ था। इसलिए यह इलाका तिब्बत का एक हिस्सा है। कश्मीर से सटे अक्साई चिन को चीन ने इस शर्त पर छोड़ने प्रस्ताव दिया था यदि भारत अरुणालच का यह हिस्सा खाली कर दे। भारत ने इसे मानने से इंकार कर दिया। जब वर्तामन दलाई लामा ने भी जब अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न अंग बताया तो वह और बौखला गया था।

भारत की आजादी से पूर्व 1914 में तिब्बत और ब्रिटिश सरकार में एक समझौता हुआ था जिसके अनुसार तवांग घाटी को भारत का हिस्सा मान लिया गया था। चीन इस समझौते को नहीं मानता है, इसीलिए बार—बार तवांग पर अपना हक जताता है। उसने बलपूर्वक 1951 पर तिब्बत पर कब्जा कर लिया और तब से लेकर आज तक उसकी आजादी की आवाज उठाने वालों का दमन करता रहा है। भारत ने तिब्बत की आजादी के आंदोलन को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन ​दिया हुआ है। यह भी चीन को चुभता है।

सीमा पर चीन की चुनौती से निपटने के लिए भारत ने अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मोस मिसाइल तैनात करने का फ़ैसला करना पड़ा। यह चीन के खिलाफ़ भारत की पहली आक्रामक और रणनीतिक तैनाती मानी गई। तीन ब्रह्मोस मिसाइलें पश्चिमी सरहद पर तैनात हैं, ताकेि पाकिस्तान को भारत की मजबूती का अहसास हो। इसके बाद 290 किलोमीटर दूर के निशाने को भेदने वाली ब्रह्मोस को तिब्बत इलाके में भारतीय सेना की पहुंच आसान करने और चीनी मिसाइलों का मुकाबला करने के लिए तैनात किया गया। चीन को इस पर भी बहुत एतराज था।

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