हर आदमी चाहता है कि मोदी वो सब करें जो आज तक कोई नहीं कर पाया

Edited By ,Updated: 30 May, 2016 01:45 AM

every man wants to date someone that he could not do everything

मोदी सरकार के 2 साल पूरे होने पर जहां एक तरफ सरकार जश्न मना रही है, वहीं विपक्षी सरकार को कटघरे में खड़ा करने की भरपूर कोशिश कर ...

(विनीत नारायण): मोदी सरकार के 2 साल पूरे होने पर जहां एक तरफ सरकार जश्न मना रही है, वहीं विपक्षी सरकार को कटघरे में खड़ा करने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं, पर अभी तक कामयाब नहीं हुए। हम बेबाकी से यहां उन बातों की चर्चा करें जिनकी चर्चा आमतौर पर नहीं की जा रही। दिल्ली के हर 5 सितारा होटल की लॉबी में पिछले 2 साल से सन्नाटा पसरा है। आप सोचेंगे कि इसका मोदी सरकार से क्या मतलब। गहरा मतलब है। 2 साल पहले ये लॉबियां दिल्ली के तमाम दलालों और देशभर के व्यापारियों, उद्योगपतियों और अच्छी पोस्टिंग की इच्छा लेकर आने वाले अफसरों से भरी रहती थीं। इन लॉबियों में अरबों रुपए के बेनामी लेन-देन हो जाते थे। नरेन्द्र मोदी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐसी लगाम कसी कि दलालों के धंधे चौपट हो गए क्योंकि अब कोई यह दावा नहीं कर सकता कि वह इस सरकार में काम करवा सकता है। आपको याद होगा जब एक केन्द्रीय मंत्री ने प्रधानमंत्री के मित्र माने जाने वाले मुकेश अम्बानी के साथ किसी 5  सितारा होटल में मुलाकात की तो उन्हें ऐसा न करने की कड़ी हिदायत प्रधानमंत्री से मिली। यह बाकी सब मंत्रियों के लिए संकेत था।
 
इस मुहिम का नकारात्मक पक्ष यह है कि अब उद्योग जगत और व्यापार से जुड़े बड़े लोग परेशान हैं कि उनके जा-बेजा काम नहीं हो रहे। उनकी शिकायत है कि इससे आर्थिक विकास की गति धीमी पड़ गई है। उनका मानना है कि काले धन का सर्कुलेशन और मोटी रिश्वत का टॉनिक पीकर ही अर्थ व्यवस्था तेजी से आगे बढ़ती है जबकि मोदी सरकार का इरादा प्रशासन को जनोन्मुखी व पारदर्शी बनाने का है। अब देखना यह होगा कि आगामी 3 वर्षों में किसका पलड़ा भारी रहता है। 
 
इसी क्रम में यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि ऊपर के भारी भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने के बावजूद जमीन तक आज भी रुपए में 15 पैसे पहुंच रहे हैं जिसके 2 कारण हैं-एक तो नौकरशाही के चले आ रहे ढांचे में किसी भी क्रांतिकारी परिवर्तन का अभाव। दूसरा गुणवत्ता बढ़ाने के नाम पर अनावश्यक रूप से अनेक अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कंसल्टैंट्स की हर मंत्रालय में नियुक्ति। अफसरशाही आज भी अपने अहंकार और अहमकपन से फैसले ले रही है। सच को तथ्यों के साथ सामने रखने पर भी वह सुनने और बदलने को तैयार नहीं है। परिणामत: कितनी भी नई योजनाएं शुरू क्यों न हो जाएं, जमीन पर उनका क्रियान्वयन राज्य सरकारों के पुराने रवैये के कारण पहले की तरह ही कागजी ज्यादा हो रहा है। पता नहीं प्रधानमंत्री तक यह बात पहुंच रही है या नहीं। 
 
अंतर्राष्ट्रीय कंसल्टैंट्स मोटी रकम वसूल रहे हैं और मोटा वेतन पाने वाले आला अफसर उनके जिम्मे काम सौंपकर अपने फर्ज से बच रहे हैं जबकि इन अंतर्राष्ट्रीय कंसल्टैंट्स की समझ जमीनी हकीकत के बारे में न के बराबर है। प्राय: इनके सुझाव बेतुके और अव्यावहारिक होते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि इस देश के अनुभवसिद्ध लोगों की सलाह मानी जाए जिससे कम लागत में ठोस काम हो सके। पर ऐसी नीति ज्यादातर ताकतवर लोगों को रास नहीं आती इसलिए वे ढांचागत परिवर्तन का हमेशा विरोध करते हैं क्योंकि इससे उनके अस्तित्व पर संकट आ जाता है। साथ ही बड़ी लूट करने की गुंजाइश नहीं बचती। नीति आयोग के सी.ई.ओ. अमिताभ कांत को मैंने इस विषय पर सोचने और काम करने की सलाह दी है। वर्ना मोदी जी के कई अच्छे प्रयास जमीन तक नहीं पहुंच पाएंगे।
 
केन्द्र सरकार की अफसरशाही नरेन्द्र मोदी की कार्यशैली से भी बहुत त्रस्त है। वे न तो खुद आराम करते हैं और न अफसरों को गोल्फ खेलने और मौज-मस्ती करने का समय देते हैं। नतीजतन बहुत सारे अफसर अपने गृहराज्य लौटने को बेताब हैं। मोदी जी को चाहिए कि अफसरशाही के सामने लक्ष्य निर्धारित करने, उन्हें समय पर पूरा करने और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहरा दें। कोताही करने वालों को कड़ी सजा देने का प्रावधान कर दें। इसके साथ ही अपने इतिहास के अनुरूप वे समाज में हर अच्छा काम करने वाले व्यक्ति को बुलाकर पूछें कि तुम जो करना चाहते हो उसके रास्ते में क्या अड़चन है और उस अड़चन को दूर करने की पहल करें।
 
यह सही है कि राज्यसभा में बहुमत के अभाव में राजग सरकार अपने विधेयक पारित नहीं करवा पा रही है, पर जहां संभव है वहां तो नीतियों और निर्देशों को स्पष्ट करके बहुत बड़ा काम करवाया जा सकता है। जिन नीतियों को आज बदलने की जरूरत है जिससे हर काम गति से हो सके। जिन विभागों में ऐसा करना सम्भव हो वहां तो यह कवायद चालू की जाए। उधर देश के कुछ टी.वी. चैनल, जो रात-दिन राज्यसभा की सीट के लालच में मोदी सरकार का यशगान करने में जुटे हैं, उनसे मोदी जी को कोई लाभ नहीं मिलने वाला क्योंकि जनता जमीन पर परिवर्तन देखना चाहती है। जरूरत इस बात की है कि इन टी.वी. चैनलों पर विचारोत्तेजक और गंभीर कार्यक्रम हों जिनमें देश के नागरिकों की सोच और प्राथमिकताएं बदलने की क्षमता हो। यह कार्य करने में ये चैनल असफल रहे हैं। 
 
हमने कई बार यहां लिखा है कि मौर्य सम्राट अशोक भेस बदल कर जनता के बीच जाता और उसकी राय गोपनीय तरीके से जान जाता। इससे उसे अपना शासन चलाने में बहुत मदद मिली। पर मोदी सरकार के 2 साल हो गए ऐसा न्यौता शायद ही किसी ऐसे व्यक्ति के पास आया हो, जो अपनी राय खुल कर दे सके। मोदी जी को इस बारे में अपना तंत्र और सुधारना चाहिए। ‘निन्दक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय। बिन साबुन पानी बिना, निर्मल करे सुभाय।’ आज देश में मोदी की टक्कर का सशक्त नेता दूसरा नहीं है। इसलिए हर आदमी चाहता है कि मोदी वह सब कर दें जो अब तक कोई नहीं कर पाया।

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