कैसे '8' के अंक ने बनाया श्री कृष्ण को योगेश्वर भगवान जानें, सत्य

Edited By ,Updated: 24 Aug, 2016 08:41 AM

shri krishna janmashtami

श्री कृष्ण को सनातन धर्म में पूर्णावतार माना गया है। पृथ्वी पर कृष्ण से अधिक संपूर्ण किसी दैवीय तत्व ने जन्म नहीं लिया। अतः शास्त्रों ने श्रीकृष्ण को पूर्ण अवतार कहकर संबोधित किया है। शास्त्रों में वर्णित "कृष्‍णम वंदे जगतगुरू:" का अर्थ है की कृष्ण...

श्री कृष्ण को सनातन धर्म में पूर्णावतार माना गया है। पृथ्वी पर कृष्ण से अधिक संपूर्ण किसी दैवीय तत्व ने जन्म नहीं लिया। अतः शास्त्रों ने श्रीकृष्ण को पूर्ण अवतार कहकर संबोधित किया है। शास्त्रों में वर्णित "कृष्‍णम वंदे जगतगुरू:" का अर्थ है की कृष्ण ही गुरु हैं और कृष्ण ही सखा हैं। कृष्ण ही श्री भगवान हैं तथा कृष्ण हैं राजनीति, धर्म, दर्शन और योग का पूर्ण वक्तव्य। शास्त्र कहते है "भजगोविंदम मूढ़मते" अर्थात कृष्ण को समझना और तथा उनके दिखाए पथ पर अग्रसर होना ही भगवत आराधन का मार्ग है। अन्य देवी-देवताओं की भक्ति मात्र भ्रम और निर्णयहीनता के मार्ग पर ले जाती है।

 

श्री कृष्ण अवतरण का वैज्ञानिक दृष्टिकोण: प्राचीन भारत महान खगोलशास्त्री और गणितज्ञ आर्यभट्ट जी के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ई.पू. में हुआ था तथा नए शोधानुसार महाभारत का युद्ध 3067 ई. पूर्व हुआ था। इस युद्ध के 35 वर्ष के बाद भगवान कृष्ण ने देह त्याग दी तथा तभी से कलयुग का प्रारंभ माना जाता है। इंग्लैंड निवासी शोधकर्ताओं ने पुरातात्विक तथ्यों तथा खगोलीय घटनाओं के आधार पर कृष्ण जन्म और महाभारत युद्ध के समय की सटीक व्याख्या की है। इंग्लैंड निवासी डॉ. मनीष पंडित जो की न्यूक्लियर मेडिसिन के फिजिशियन है उन्होंने महाभारत में वर्णित 150 खगोलीय घटनाओं के आधार पर महाभारत युद्ध 22 नवंबर 3067 ईसा पूर्व को होना बताया है। उस समय श्री कृष्ण 5556 वर्ष के थे।

 

श्री कृष्ण अवतरण का ज्योतिषीय दृष्टिकोण: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद महीने की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को महानिशीथ काल में वृष लग्न में हुआ था। उस समय चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र में भ्रमण कर रहे थे। रात्री के ठीक 12 बजे क्षितिज पर वृष लग्न उदय हो रहा था तथा चंद्रमा और केतु लग्न में विराजित थे। चतुर्थ भाव सिंह राशि में सूर्यदेव विराजित थे। पंचम भाव कन्या राशि में बुध विराजित थे। छठे भाव तुला राशि में शुक्र और शनिदेव विराजित थे। सप्तम भाव वृश्चिक राशि में राहू विराजित थे। भाग्य भाव मकर राशि में मंगल विराजमान थे तथा लाभ स्थान मीन राशि में बृहस्पति स्थापित थे। भगवान श्री कृष्ण की जन्मकुंडली में राहु को छोड़कर सभी ग्रह अपनी स्वयं राशि अथवा उच्च अवस्था में स्थित थे। 

 

श्री कृष्ण अवतरण का अंकशास्त्र: श्री कृष्ण का जन्म रात्रि के सात मुहूर्त निकलने के बाद आठवें मुहूर्त में हुआ। तब रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि थी जिसके संयोग से जयंती नामक योग बन रहा था। कृष्ण जन्म के दौरान आठ का जो संयोग बना उसमें कई रहस्य छुपे हैं। श्री कृष्ण की आठ ही पत्नियां थी। आठ अंक का उनके जीवन में बहुत महत्व रहा है। अंकशास्त्र अनुसार अंक "8" शनि का प्रतीक है। आठ का संयोग अष्टमी तिथि, देवकी की आठवीं संतान, आठ पत्नियां, आठवां मुहूर्त। नक्षत्र सारिणी में शनि ही आठवें नक्षत्र पुष्य के स्वामी है। नक्षत्र सारिणी के अनुसार कृष्ण चौथे नक्षत्र रोहिणी के अर्ध चंद्रमा के साथ पैदा हुए थे अर्थात 8/2 = 4 यहां भी अंक आठ का फेरा है। शास्त्रों में वर्णित है की शनिदेव कृष्ण जन्म से हजारों वर्ष पूर्व से ही कृष्ण भक्ति में विलीन थे। 

 

योगेश्वर श्री कृष्ण के जन्म योग: श्रीकृष्ण की जन्मकुण्डली में लग्न में उच्च राशिगत चंद्रमा द्वारा मृदंग योग बन रहा था जिसके फलस्वरूप श्रीकृष्ण कुशल शासक और जन-मानस प्रेमी बने। ज्योतिष के अनुसार जब कभी वृष लग्न मे चंद्रमा विराजित हो तब जातक जनप्रिय नेता और कुशल प्रशासक होता है। श्रीकृष्ण की जन्मकुण्डली के सभी ग्रह वीणा योग बना रहे थे। जिसके फलस्वरूप श्रीकृष्ण गीत, नृत्य, संगीत और कला क्षेत्र में निपुण थे। श्रीकृष्ण की जन्मकुण्डली में पर्वत योग बन रहा था जिसके कारण ये परम यशस्वी बने। पंचम स्थान में विराजित उच्च के बुध ने इन्हें कूटनीतिज्ञ विद्वान बनाया तथा मकर राशि में विराजित उच्च के मंगल ने यशस्वी योग बनाकर इन्हें पूजनीय बनाया। एकादश भाव में मेष राशि में उच्च के सूर्य ने भास्कर योग का निर्माण किया कारण श्रीकृष्ण पराक्रमी, वेदांती, धीर और समर्थ बनें।

आचार्य कमल नंदलाल

ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com  

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