कैसे चैंपियन बने शूटर अभिनवा बिंद्रा? जानें उनके पिता की जुबानी

Edited By ,Updated: 24 Aug, 2016 06:43 PM

financial support from father abhinav become a successful shooter

वर्ष 2008 बीजिंग ओलंपिक में भारत को पहली बार व्यक्तिगत शूटिंग में गोल्ड मैडल दिलाने वाले भारतीय निशानेबाज अभिनवा बिंद्रा भले ही रियो ओलंपिक 2016

नई दिल्ली: वर्ष 2008 बीजिंग ओलंपिक में भारत को पहली बार व्यक्तिगत शूटिंग में गोल्ड मैडल दिलाने वाले भारतीय निशानेबाज अभिनवा बिंद्रा भले ही रियो ओलंपिक 2016 में भारत को पदक दिलाने से चूक गए हों लेकिन उनका प्रदर्शन काबिल ए तारिफ था। 

जब बिंद्रा ने 2008 में भारत को पदक दिलाया था, उस समय वहां के बुनियादी ढांचे में उल्लेखनीय सुधार और इलेक्ट्रॉनिक लक्ष्यों में कई गुना वृद्धि की जा रही थी। परिणामस्वरूप लंदन ओलंपिक 2012 में अभिनव बिंद्रा ने अपना अच्छा प्रदर्शन किया और भारत के लिए एक सिल्वर और एक कांस्य पदक जीता। लेकिन रियो में शूटिंग के मंच पर अपना बेहतर प्रदर्शन करने में असफल रहे। अंतिम शॉट तक अभिनव शूटिंग मैदान में थे लकिन एक मामूली से अंतर बिंद्रा कांस्य पदक से चूक गए। जबकि जीतू रॉय फाइनल तक बने रहे।

1995 में जब अभिनव ने अपना शूटिंग कैरियर की शुरुआत की थी तब केवल 10 मीटर एयर पिस्टल रायफल की शिक्षा के लिए अभिनव को कर्णी सिंह शूटिंग रेंज जाना पड़ता था। जो उनके घर चंडीगढ़ से लगभग 250 किलोमीटर की दूरी पर था। जिसके चलते उनके पिता ए.एस. बिंद्रा ने अभिनव के लिए घर के पीछे ही अंतरराष्ट्रीय स्तर का एक शूटिंग रेंज खोल दिया, ताकि अभिनव को प्रशिक्षण में हर वह सुविधा मिले, जिसकी उसे आवश्यकता है। इसके साथ ही अभिनव का समय भी बचता था। बिंद्रा ने बताया कि शूटिंग में प्रयोग होने वाले सिलेंडरो को यहां की दुकानों से खरीदना मुश्किल था। इसलिए मैंने जर्मनी से मशीनें मंगवाई।

उन्होंने कहा कि 1998 में हुए कॉमवैल्थ खेलों में अभिनव ने 15 वर्ष की उम्र में हिस्सा लिया। अभिनव तब सबसे कम उम्र का प्रतिभागी थे। कॉमनवैल्थ में अभिनव के प्रदर्शन से पता चला कि उसे प्रतिस्पर्धा के मैदान में पदक जीतने के लिए काफी मेहनत की जरूरत है। इसलिए उसने यूरोपीय सर्किट में खेलना शुरू कर दिया। लेकिन सरकार की ओर से उसे कोई मदद नहीं मिली। उन्होंने कहा कि जब अभिनव 16 वर्ष का था जब उसकी माता ने इस पेशे में उसका साथ देना शुरू किया था। वर्ष 2000 में अभिनव को सिडनी ओलंपिक का टिकट मिला तब भी सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई निवेश नहीं किया। 

वर्ष 2004 एथेंस ओलंपिक में अभिनव ने फाइनल में जगह बनाते हुए सातवें स्थान पर रहे। 2 साल बाद उसने देश के लिए पहला गाेल्ड मैडल जीता। अभिनव के पिता ने कहा कि जब वह एथेंस ओलंपिक के लिए तैयारी कर रहा था, तब उसके विदेशी कोच ने बताया कि अभिनव को हैड्रोथ्रेपी की जरूरत है। जिसके लिए स्वीमिंग पूल की आवश्यकता है। मैंने घर पर ही इसका निर्माण शुरू करवा दिया, जो 2004 में बनकर तैयार हुआ। अभिनव ने इसका प्रयोग 2006 वर्ल्ड चैंपियनशिप और 2008 बीजिंग ओलंपिक में तैयार होने के लिए किया। 

उन्होंने कहा कि हर ओलंपिक से पहले खेल के अनुसार शूटिंग रेंज का फर्श बदल दिया जाता था। यहां तक कि लाइट और दीवार के रंग भी बदले जाते हैं ताकि उसे ओलंपिक रेंज के लिए तैयारी करने का अहसास हाेता रहे। अब हमें विश्व स्तरीय बायोमैकेनिक्स उपकरण भी मिल गया है।

अभिनव का कठिन परिश्रम और दृढ़ संकल्प देखकर उनके माता पिता ने भी व्यक्तिगत शूटिंग में देश के लिए स्वर्ण जीतने में उसे काफी योगदान दिया है। सीनियर बिंद्रा ने कहा कि मेरे पास धन था, ताे मैंने अभिनव को विश्व स्तरीय शूटर बनाने के लिएखर्च किया। लेकिन ऐसे बहुत से माता-पिता हैं जो इतना खर्चा नहीं उठा सकते। उन्होंने कहा कि यदि हमें एक ओलंपिक चैंपियन की आवश्यकता है तो सरकार को विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचे में विकास की आवश्यकता है साथ ही शुरुआत में उच्च स्तरीय स्टाफ और उनकी तरफ से हर तरह का समर्थन मिलना चाहिए। अन्य देश अपने खिलाडिय़ों के लिए वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिक रूप से बहुत कुछ कर रहे हैं। जबकि यहां यह सब कुछ पूरी तरह से अनदेखा किया जा रहा हैं।

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