श्रीकृष्ण को निरुत्तर कर दिया था कुंती पुत्र ने जानिए, क्यों?

Edited By ,Updated: 24 Aug, 2016 04:10 PM

shri krishna

संधि का प्रस्ताव असफल होने पर जब श्रीकृष्ण हस्तिनापुर लौट चले तब महारथी कर्ण उन्हें सीमा तक विदा करने आए। मार्ग में कर्ण को समझाते हुए श्रीकृष्ण ने कहा

संधि का प्रस्ताव असफल होने पर जब श्रीकृष्ण हस्तिनापुर लौट चले तब महारथी कर्ण उन्हें सीमा तक विदा करने आए। मार्ग में कर्ण को समझाते हुए श्रीकृष्ण ने कहा, ‘‘कर्ण, तुम सूत पुत्र नहीं हो, तुम तो महाराजा पांडू और देवी कुंती के सबसे बड़े पुत्र हो। यदि दुर्योधन का साथ छोड़कर पांडवों के पक्ष में आ जाओ तो तत्काल तुम्हारा राज्याभिषेक कर दिया जाएगा।’’
 
यह सुनकर कर्ण ने उत्तर दिया, ‘‘वासुदेव, मैं जानता हूं कि मैं माता कुंती का पुत्र हूं, किन्तु जब सभी लोग सूत पुत्र कहकर मेरा तिरस्कार कर रहे थे तब केवल दुर्योधन ने मुझे सम्मान दिया। मेरे भरोसे ही उसने पांडवों को चुनौती दी है। क्या अब उसके उपकारों को भूलकर मैं उसके साथ विश्वासघात करूं? ऐसा करके क्या मैं अधर्म का भागी नहीं बनूंगा? मैं यह जानता हूं कि युद्ध में विजय पांडवों की होगी लेकिन आप मुझे अपने कर्तव्य से क्यों विमुख करना चाहते हैं? कर्तव्य के प्रति कर्ण की निष्ठा ने श्रीकृष्ण को निरुत्तर कर दिया।’’
 
इस प्रसंग में कर्तव्य के प्रति निष्ठा व्यक्ति के चरित्र को दृढ़ता प्रदान करती है और उस दृढ़ता को बड़े-से-बड़ा प्रलोभन भी शिथिल नहीं कर पाता, यानी वह चरित्रवान व्यक्ति  ‘से लेबिल’ नहीं बन पाता। इसके अतिरिक्त इसमें धर्म के प्रति आस्था और निर्भीकता तथा आत्मा सम्मान का परिचय मिलता है जो चरित्र की विशेषताएं मानी जाती हैं।

 

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