Edited By ,Updated: 25 Aug, 2016 05:42 PM
बॉक्सिंग में अपना नाम रोशन कर चुके कमल कुमार वाल्मीकि आज कूड़ा-कचरा ढोने को मजबूर हैं।
कानपुरः बॉक्सिंग में अपना नाम रोशन कर चुके कमल कुमार वाल्मीकि आज कूड़ा-कचरा ढोने को मजबूर हैं। उत्तर प्रदेश के ग्वालटोली के मलीन बस्ती में रहने वाले कमल परिवार का पेट पालने के लिए घर-घर जाकर कूड़ा बटोरते हैं। उनका कहना है कि जाति आरक्षण और स्पोर्ट्स कोटे के बावजूद उन्हें नौकरी नहीं मिली, क्योंकि उनके पास रिश्वत देने के लिए पैसे नहीं थे। ऐसे में मजबूर होकर वह कूड़ा उठाने का काम कर रहे हैं।
कमल के मुताबिक, वर्ष 2010 में उन्होंने कानपुर के डीएवी कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। इसके बाद सरकारी नौकरी के लिए कई अधिकारियों के चक्कर लगाए, लेकिन रिश्वत के लिए पैसे नहीं होने के कारण उन्हें हर जगह निराशा मिली। इसके बाद घर की खराब आर्थिक स्थिति के चलते उन्हाेंने नगर निगम में कॉन्ट्रेक्ट बेस पर कूड़ा उठाने काम शुरू कर दिया। उनके पिता भी नगर निगम में कूड़ा उठाने का काम करते थे और उनकी मां एक मंत्री के घर में सफाई का काम करती हैं।
कमल ने डिस्ट्रिक लेवल पर तीन गोल्ड मैडल जीते हैं, जबकि यूपी ओलंपिक्स में ब्रॉन्ज मैडल पर अपना कब्जा जमाया था। वर्ष 2006 में स्टेट गेम्स में ब्रॉन्ज मैडल और गेम्स में सिल्वर मेडल जीता। हालांकि, नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में उन्हें कोई मेडल नहीं मिला।