जीवन में चाहते हो सुख-शांति तो मन में न आने दें ऐसे भाव

Edited By ,Updated: 27 Sep, 2016 01:05 PM

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जब किसी व्यक्ति के मन की बात पूरी नहीं हो पाती है तो उसे क्रोध आना स्वाभाविक है। जो लोग इस क्रोध को संभाल लेते हैं, वे निकट भविष्य

जब किसी व्यक्ति के मन की बात पूरी नहीं हो पाती है तो उसे क्रोध आना स्वाभाविक है। जो लोग इस क्रोध को संभाल लेते हैं, वे निकट भविष्य में कार्यों में सफलता भी प्राप्त कर लेते हैं। जबकि, जो लोग क्रोध को संभाल नहीं पाते हैं और इसके आवेश में 
गलत काम कर देते हैं, वे परेशानियों का सामना करते हैं।

 

रामायण में रावण ने क्रोधित होकर विभीषण को लंका से निकाल दिया था। इसके बाद विभीषण श्रीराम की शरण में चले गए। युद्ध में विभीषण ने ही श्रीराम को रावण की मृत्यु का रहस्य बताया था। इसी तरह कंस भी क्रोधी था और अपने क्रोध के कारण ही उसने कृष्ण के जन्म की संभावना को खत्म करने के लिए देवकी और वासुदेव को कारागार में बंद करवा दिया। किंतु इसी क्रोध के कारण उसका अंत हुआ और आखिरकार श्रीकृष्ण ने उसके अहंकार का मर्दन किया।

 

इस सत्य को हमारे वेदों, पुराणों से लेकर अन्य तमाम आदि ग्रंथों ने उद्घाटित किया है कि क्रोध के आवेश में व्यक्ति ठीक से निर्णय नहीं ले पाता है। अत: मनुष्य को चाहिए कि वह हमेशा अपने क्रोध पर काबू करना सीखे। हमारे शास्त्र तो ध्यान के माध्यम से क्रोध को नियंत्रित कर सकने की पद्धति भी बताते हैं।

 

इसी तरह जिन लोगों में असुरक्षा की भावना होती है, वे किसी भी काम को पूरी एकाग्रता से नहीं कर पाते हैं। वे पल-पल खुद को सुरक्षित करने के लिए सोचते रहते हैं। राजा कंस को जब आकाशवाणी से यह मालूम हुआ कि देवकी की 8वीं संतान उसका काल बनेगी तो वह डर गया, मृत्यु के भय से असुरक्षित महसूस करने लगा। इस भय में उसे देवकी की संतानों को जन्म होते मार दिया। कई ऐसे काम किए, जिससे उसके पापों का घड़ा भर गया। लाख प्रयासों के बाद भी वह श्रीकृष्ण को नहीं मार पाया और उसी का अंत हुआ। अत: हर मनुष्य को बाहरी क्रोध और आंतरिक भय के भाव से हमेशा बचकर रहना चाहिए। तभी जीवन शांतिमय होगा।

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