श्री रामचरित मानस: ध्यान रखेंगे ये बात, कभी नहीं बनेंगे गरीब व लाचार

Edited By ,Updated: 28 Sep, 2016 12:19 PM

ram charit manas

श्रीराम चरित मानस में लिखा है, " कर्म प्रधान विश्व करि राखा" अर्थात् भगवान ने इस संसार को कर्म प्रधान बनाया है। इस संसार में हमारे सुख-दुःख, हमारे कर्मानुसार ही हैं। यहां तक की हमें जो परिवार के सदस्य के रूप में पिता-माता, भाई-बहन, पति-पत्नी व...

श्रीराम चरित मानस में लिखा है, " कर्म प्रधान विश्व करि राखा"


अर्थात् भगवान ने इस संसार को कर्म प्रधान बनाया है। इस संसार में हमारे सुख-दुःख, हमारे कर्मानुसार ही हैं। यहां तक की हमें जो परिवार के सदस्य के रूप में पिता-माता, भाई-बहन, पति-पत्नी व बच्चे इत्यादि जो भी मिले हैं, ये सब हमारे कर्मों का ही फल है।


यहां तक की हमारे रिश्तेदार, पड़ोसी व घर के कुत्ता-बिल्ली आदि जानवर व तोता-चिड़िया आदि पक्षी भी हमारे कर्मानुसार ही हमारे सम्पर्क में आते हैं। 

पिछले अधिक पुण्य होने से हमें इनसे अधिक सुख मिलता है। हमारे पाप अधिक होने से इनके निमित्त हमें दुःख मिलता है। पाप-पुण्य मिश्रित रहने से हमें इनसे सुख भी मिलता है, दुःख भी मिलता है। 


श्रीमद् भागवत् के चौथे स्कन्ध में श्रीनारद जी के उपदेशानुसार व दसवें स्कन्ध में ब्रह्माजी के उपदेशानुसार हमारे दुःखों के कारण हमारे परिवार के सदस्य या रिश्तेदार आदि नहीं हैं। ये तो सिर्फ निमित्त हैं। कारण तो हमारे अपने ही बुरे कर्म हैं। 


श्रीमद् भगवद् गीता के दूसरे अध्याय के 47वें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैंने मनुष्य को इतना अधिकार दिया है कि वह अच्छे कर्म करके अपने भाग्य को अच्छा भी बना सकता है और बुरे कर्म करके और बुरा भी। इसके अलावा श्रीमद् भगवद् गीता के ही 18वें अध्याय के 62वें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैंने मनुष्य को इतने ज्यादा अधिकार दिए हैं की वह इनका सद्-उपयोग करके, मेरे चरणों में शरणागत होकर अपने दुःखों को अपने जन्म-मृत्यु के चक्र को हमेशा-हमेशा के लिये समाप्त कर सकता है।  इतना ही नहीं वह मेरे आनन्द-मय धाम में हमेशा-हमेशा के लिये मेरी सेवा में भी आ सकता है जोकि मोक्ष की स्थिती से भी कहीं अधिक ऊपर है। 


माता-पिता, सास-ससुर व दादा-दादी इत्यादि बड़ों की सेवा करना, गरीबों-असहायों व लाचारों की मदद करना पुण्य के काम हैं। गरीब की मदद करके व लाचारों की सहायता करके हम उसको निकम्मा नहीं बनाते हैं, बल्कि उसका स्नेह जीतते हैं, उसके दिल में अपने लिये जगह बनाते हैं ताकि वह हमारी बात सुने और उन पाप कर्मों को न करे जिसके कारण वह आज गरीब व लाचार बना है। किसी को अच्छा रास्ता दिखाने से व किसी को अच्छे रास्ते पर चलने की प्रेरणा देने से भगवान का आशीर्वाद हमको तो मिलता ही है, साथ में अच्छे रास्ते पर चलकर वह गरीब व लाचार व्यक्ति अपने पुण्यों के प्रभाव से व भगवद-शरणागति के प्रभाव से भविष्य में गरीब व लाचार नहीं रहता।

श्री चैतन्य गौड़िया मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
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