Edited By ,Updated: 28 Sep, 2016 04:33 PM
अंग्रेजी हुकूमत की जड़े हिला वाले शहीद भगत सिंह काे 23 मार्च 1931 काे फंसी पर लटका दिया गया था।
नई दिल्लीः अंग्रेजी हुकूमत की जड़े हिला वाले शहीद भगत सिंह काे 23 मार्च 1931 काे फंसी पर लटका दिया गया था। फांसी की सजा सुनाए जाने पर भी उन्हे मौत का तनिक भी खौफ नहीं था। फांसी के दिन भी वह अखबार पढ़ते रहे और साथियों के साथ मजाक करते रहे और मात्र 23 वर्ष 5 माह और 23 दिन की आयु में हंसते-हंसते संसार से विदा हाे गए।
आज हम आपको भगत सिंह के उस अाखिरी खत से रूबरू कराने जा रहे हैं, जाे उन्हाेंने फांसी से पहले लिखा था। इससे आपके सामने ये स्पष्ट हो जाएगा कि भगत इस देश और दुनिया को कैसे समझते थे। आखिर वो क्या वजह थी कि भगत ने असेम्बली में बम ऐसी जगह फेंका जिससे किसी इंसान को कोई नुक्सान न हो। आखिर क्यों भगत फांसी से बच सकते थे उसके बावजूद उन्होंने फांसी पर चढ़ना देश और समाज के लिए ज्यादा ज़रूरी समझा।
पेश है साथियों के नाम लिखा भगत का आखिरी ख़त
साथियो,
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना नहीं चाहता। लेकिन एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं, कि मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता।
मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है, इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊंचा मैं हर्गिज नहीं हो सकता।
आज मेरी कमजोरियां जनता के सामने नहीं हैं। अगर मैं फांसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएंगी और क्रांति का प्रतीक चिंह मद्धिम पड़ जाएगा या संभवतः मिट ही जाए। लेकिन दिलेराना ढंग से हंसते-हंसते मेरे फांसी चढ़ने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएं अपने बच्चों के भगतसिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी।
हां, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थीं, उनका हजारवां भाग भी पूरा नहीं कर सका। अगर स्वतंत्र, जिंदा रह सकता तब शायद उन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता। इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फांसी से बचे रहने का नहीं आया। मुझसे अधिक भाग्यशाली कौन होगा? आजकल मुझे स्वयं पर बहुत गर्व है। अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है। कामना है कि यह और नजदीक हो जाए।