भारत को अंडेमान-निकोबार से कुदरती गैस और कच्चा तेल निकाल कर क्यों नहीं दिए जाते

Edited By ,Updated: 24 Oct, 2016 01:47 AM

natural gas and crude oil from india nicobar andeman not given out

एक तरफ  हमारा देश हजारों करोड़ रुपया पश्चिमी एशियाई देशों को देकर क्रूड ऑयल और नैचुरल गैस खरीद रहा है।

(विनीत नारायण): एक तरफ  हमारा देश हजारों करोड़ रुपया पश्चिमी एशियाई देशों को देकर क्रूड ऑयल और नैचुरल गैस खरीद रहा है। दूसरी ओर अंडेमान निकोबार द्वीप समूह में हमारे पास क्रूड ऑयल और नैचुरल गैस के अपार भंडार भरे पड़े हैं, जिन्हें हमारी लापरवाही के कारण इंडोनेशिया अप्रत्यक्ष रूप से दोहन करके दुनिया का सबसे बड़ा तेल निर्यातक बना हुआ है। क्या इसके पीछे कोई निहित स्वार्थ हैं। 

अमरीका के 2 वैज्ञानिकों ने मध्य-पूर्व एशिया के तेल के कुओं का पिछले 20 साल में शोध करके एक शोध पत्र प्रकाशित किया है जिसमें बताया गया है कि इन कुओं से रोजाना 10 से 20 मिलियन बैरल तेल निकालकर बेचा जाता है और यह काम पिछले 70-80 वर्षों से चल रहा है। इसके बावजूद हर साल जब मिडल ईस्ट के तेल के कुओं का स्तर नापा जाता है, तो वह पहले से भी ऊंचा निकलता है। यानी कि मिडल ईस्ट के तेल के कुओं में चमत्कार हो रहा है। वहां पर जितना मर्जी तेल निकाले जाओ, उसके बावजूद तेल का स्तर घटने की बजाय लगातार बढ़ रहा है। 

दरअसल मिडल ईस्ट के तेल के कुओं में तेल बढऩे का कारण वहां का ‘सबडक्शन जोन’ है। सऊदी अरब की ‘क्रस्टल प्लेट’ ईरान की ‘क्रस्टल प्लेट’ के नीचे 1200 डिग्री ‘सैल्सियस मैग्मा’ के अंदर जब प्रवेश करती है तो उस प्लेट के ऊपर जो कैल्शियम कार्बोनेट होता है वह टूट जाता है और उससे कार्बन निकलता है। फारस की खाड़ी का पानी जब 1200 डिग्री सैंटीग्रेड मैग्मा में प्रवेश करता है तो वह भी टूट जाता है और उसमें से हाइड्रोजन गैस निकलती है। हाईड्रोजन और कार्बन दोनों मिलकर तत्काल हाइड्रोकार्बन बना देते हैं, जिसको हम रोजमर्रा की भाषा में क्रूड ऑयल और नैचुरल गैस कहते हैं। 

वैज्ञानिकों ने अध्ययन किया है कि बंगाल की खाड़ी में भी यही हो रहा है। वहां पर ‘इंडो-आस्ट्रेलियन क्रस्टल प्लेट’ ‘यूरेशियन क्रस्टल प्लेट’ के नीचे डाइव कर रही है और उसके अंदर भी कैल्शियम कार्बोनेट टूट रहा है। साथ ही बंगाल की खाड़ी का पानी भी टूट रहा है और दोनों मिलकर वहां पर भी क्रूड ऑयल और नैचुरल गैस बना रहे हैं। 

बंगाल की खाड़ी का  जो ‘सबडक्शन जोन’ है उसका दक्षिणी हिस्सा इंडोनेशिया के पास है। इससे इंडोनेशिया प्रतिदिन 1 मिलियन बैरल क्रूड ऑयल निकालता है। इसके अलावा इंडोनेशिया की गैस प्रोडक्शन एशिया-पैसेफिक में नंबर एक है। अंडेमान निकोबार के उत्तर में म्यांमार (बर्मा) देश है। वह भी प्रतिदिन 30 हजार बैरल क्रूड ऑयल निकाल रहा है। इसके अलावा उसका गैस प्रोडक्शन भी बहुत ज्यादा है। उसने अंडेमान बेसिन के पास ‘ऑफशोर गैस फील्ड्स’ तथा ‘ऑयल फील्ड्स’ में तेल निकालने और उसके शुद्धिकरण का काम भी शुरू कर दिया है। 

प्रश्न यह पैदा होता है कि भारत अपनी कीमती विदेशी मुद्रा मिडल ईस्ट को देकर तेल क्यों खरीदता है? जबकि हमारे पड़ोसी देश इंडोनेशिया और म्यांमार उसी बंगाल की खाड़ी से तेल निकाल रहे हैं और हम हाथ पर हाथ रखकर बैठे हैं। हम अंडेमान निकोबार के ‘डीप वाटर ब्लॉक्स’ से तेल और गैस निकालकर देश को क्यों नहीं देते? हमारी विदेशी मुद्रा नाहक मिडल ईस्ट के शेखों को क्यों लुटाई जा रही है?  2014 में करीब 10 लाख करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा तेल और गैस की खरीदारी में मिडिल ईस्ट के शेखों को दी गई। 

2015 में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम गिरने से तेल और गैस की खरीदारी में 8.50 लाख करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा खर्च हुई। यह डेढ़ लाख करोड़ की विदेशी मुद्रा जो बची, उसी से सरकार चल रही है। अगर कहीं तेल के दाम अंतर्राष्ट्रीय बाजार में न गिरे होते तो महंगाई ने भारत की खाट खड़ी कर दी होती और हमारा भुगतान संतुलन भी गंभीर संकट के दौर में पहुंच जाता। फिर हमें चंद्रशेखर सरकार की तरह रिजर्व बैंक ऑफ  इंडिया का सोना गिरवी रखना पड़ जाता।

सरकार ने 5 ‘डीप वाटर ब्लॉक्स’ अंडेमान बेसिन में प्राइवेट कंपनियों को तेल निकालने के लिए ऑफर किए जिनमें से 1296 बिलियन बैरल्स तेल होने का प्रलोभन दिया। प्रश्न यह पैदा होता है कि हमारी राष्ट्रीय कम्पनियां जैसे कि  ओ.एन.जी.सी., ओ.आई. एल., गेल, जी.एस.पी.सी. आदि अंडेमान निकोबार के 16 डीप वाटर ब्लॉक्स में से तेल और गैस निकालकर देश को क्यों नहीं देतीं? 

उल्लेखनीय है कि इस इलाके में 83419 वर्ग कि.मी. में तेल और गैस फैली हुई है। इतने बड़े क्षेत्र में सरकार ने 22 तेल के कुएं खोदे और उनमें गैस मिली। इसी के आधार पर उन्होंने 5 डीप वाटर ब्लॉक्स में से तेल और गैस निकालने के लिए प्राइवेट कंपनियों को न्यौता दिया। पर प्रश्न यह पैदा होता है कि आज 2 साल गुजर गए जबसे इन कुओं से गैस मिल रही है। फिर भी कोई प्राइवेट कम्पनी ठेका लेने सामने नहीं आई, तो सरकार किस बात का इंतजार कर रही है? हमारी तेल कम्पनियां किस काम के लिए बनाई गई हैं? 

कहीं ऐसा तो नहीं कि मिडल ईस्ट के शेख अपनी दुकानदारी चलाए रखने के लिए हमारी जो नैशनल कम्पनियां हैं और इनसे जुड़े अधिकारी  और  मंत्री हैं, उनको मोटी-मोटी रिश्वत देकर अपना कत्र्तव्य न निभाने का दबाव डाल रहे हैं? इस विषय में तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुखेंदु शेखर रॉय ने मानसून सत्र में राज्यसभा में प्रश्न नंबर 1944 उठाया था जिसके जवाब में पैट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने 3 अगस्त, 2016 को जो कुछ कहा वह संतुष्टिपूर्ण बिल्कुल नहीं कहा जा सकता। 

उनका जवाब लीपापोती से ज्यादा कुछ नहीं था, इसलिए संदेह होना स्वाभाविक है।  इसलिए इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधे दखल देकर पूछना चाहिए कि इस ‘मल्टी बिलियन डॉलर’ के खेल में किस स्तर तक धांधलेबाजी हो रही है? मुठ्ठीभर लोग देश का आधा जी.डी.पी. मिडल ईस्ट के शेखों को देकर 130 करोड़ भारतीयों की जेब क्यों काट रहे हैं? 2 वर्ष पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टैलीविजन चैनलों पर यह घोषणा की थी कि मैं अंडेमान निकोबार से तेल निकालकर देश को दूंगा। पर अभी तक इस दिशा में क्या हुआ, देश को पता नहीं लगा। यह बहुत गंभीर विषय है जिसका आम भारतवासी के जीवन से संबंध है। इस पर एक श्वेत पत्र जारी होना चाहिए। 
 

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