Masik Shivratri: भगवान शिव की आरती के बाद करें ये काम, मिलेगा पुण्य लाभ

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Jun, 2020 07:05 AM

shiv aarti

सनातन धर्म में पूजा-पाठ के दौरान मंत्रों के उच्चारण पर विशेष बल दिया जाता है।  जप का विधान प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण रहा है। मंत्रों में शक्ति का अपार भंडार भरा हुआ है। पूर्ण श्रद्धा से उसकी साधना विधिवत करने से

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Masik Shivratri: सनातन पंचाग के अनुसार हर माह कृष्ण पक्ष की 14 वीं तिथि पर मासिक शिवरात्रि का पर्व मनाए जाने का विधान है। वर्तमान समय में आषाढ़ मास चल रहा है। आज कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर मासिक शिवरात्रि है। ये दिन शिव और शक्ति की कृपा प्राप्त करने के लिए बहुत प्रभावशाली है। इस दिन व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यदि व्रत नहीं कर सकते तो भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अवश्य करें।

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सनातन धर्म में पूजा-पाठ के दौरान मंत्रों के उच्चारण पर विशेष बल दिया जाता है। जप का विधान प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण रहा है। मंत्रों में शक्ति का अपार भंडार भरा हुआ है। पूर्ण श्रद्धा से उसकी साधना विधिवत करने से उसका फल अवश्य प्राप्त होता है। हिन्दू धर्म में 36 कोटी देवी-देवता हैं और मंत्र भी अलग-अलग हैं। जिनका अपना-अपना महत्व है। धर्मग्रंथों के मतानुसार भोलेनाथ ऐसे देवता हैं, जो भक्तों को मनभावन लाभ व सुख देते हैं। शिव स्वयं काल के स्वामी हैं। शिव पूजन चाहे घर में करें या मंदिर में जब भी आरती करें उसके बाद शिव मंत्र 'कर्पूरगौरं' का जाप अवश्य करें, तभी मिलेगा पुण्य लाभ।

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'कर्पूरगौरं' मंत्र
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।

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मंत्र का अर्थ
कर्पूरगौरं- कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले।
करुणावतारं- करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं। 
संसारसारं- समस्त सृष्टि के जो सार हैं। 
भुजगेंद्रहारम्- जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं। 

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सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है। 

मंत्र का पूरा अर्थ: जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।

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मंत्र का महत्व: मान्यता है की जब भगवान शिव-पार्वती का विवाह हुआ था, उस समय श्री हरिविष्णु ने इस स्तुति का गुणगान किया था। मृत्युलोक में रहने वाले जितने भी जीव हैं उन सभी के अधिपति भोले बाबा हैं। उनसे विनय की जाती है की वह हमारे मन में वास करें और मृत्यु के भय को दूर करें। जिससे हमारा जीवन कल्याणकारी और सुखमय व्यतित हो।

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