त्रिदेव सहित सभी देवी-देवता इस पवित्र नदी पर करते हैं स्नान

Edited By ,Updated: 18 Feb, 2017 09:30 AM

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हिंदू धर्म में व्रत-उपवास के साथ ही प्रमुख तिथियों पर तीर्थ क्षेत्र में स्नान करने का विधान है। इनमें भी प्रयाग स्नान की अगाध महिमा है।

हिंदू धर्म में व्रत-उपवास के साथ ही प्रमुख तिथियों पर तीर्थ क्षेत्र में स्नान करने का विधान है। इनमें भी प्रयाग स्नान की अगाध महिमा है। व्रत दो श्रेणियों में विभाजित किए जा सकते हैं काम्य एवं नित्य। काम्य व्रत किसी विशेष अभिलाषा अथवा मनोकामना की पूर्ति के लिए किए जाते हैं। संतान लाभ, धन-प्राप्ति, पद लाभ आदि अभीष्ट फलों के लिए जो व्रत किए जाते हैं उन्हें काम्य व्रत कहा जाता है। नित्य व्रत वे हैं जो किसी अभिलाषा की पूर्ति के उद्देश्य से नहीं किए जाते वरन आध्यात्मिक उदात्त प्रेरणा से भक्ति एवं प्रेम के लिए किए जाते हैं। काम्य व्रत आसक्ति से प्रकट होते हैं, नित्य व्रत निरासक्ति एवं जन कल्याण की भावना से। नित्य व्रत का पालन ही निष्काम कर्म योग है अत: इसका स्थान सर्वोपरि है। नित्य व्रत का व्रती कहता है-
न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्ग न पुनर्भवम।
कामये दुख-तप्तानां प्राणिनां आत्र्तिनाशनम।।


पद्मपुराण प्रयाग में माघ-मास में दिए गए दानों के प्रतिफल का वर्णन करते हुए कहा गया है-
माघेन्नदातामृतपऋ : सुरालये, हेस्नश्च दाता बलभित्समीपग:।


त्रिवेणी में गौ-दान की महिमा है। 


प्रयाग का प्रमुख दान है-वेणी दान। संगम में अधिष्ठाता को यह दान अर्पित किया जाता है। इसका तात्पर्य है यात्री द्वारा शिखा के अतिरिक्त सभी केशों का मुंडन एवं गंगा में प्रवाह। केश के मूल में पाप निवास करता है, ऐसी लोक धारणा है। पाप के मूलोच्छेदन के लिए संगम से उत्तम और कौन-सा स्थान हो सकता है-


केशमूलान्युपाश्रित्य सर्वपापानि देहिनाम।
तिष्ठन्ति तीर्थस्नानेन तस्माततांस्तत्र वापयेत।।


प्रयाग क्षेत्र में कल्पवास करने पर भी जो मुंडन नहीं करते हैं वे नरक भोग करते हैं।
प्रथम स्नान पर गीले कपड़ों में ही क्षौर कराने का विधान है। तदुपरांत पुन: स्नान कर सूखे रेशमी कपड़े पहन कर स्वर्णमयी, रजतमयी, मुक्तामयी अथवा पुष्पमयी वेणी माधव को अर्पित की जाती है। यह दान सभी पापों से तुरन्त मुक्ति दिलाता है।


तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा है- माघ मकर गति रवि जब होई, तीर्थ पतिहि आव सब कोई 


अर्थात सूर्य देव जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो माघ मास में तीर्थराज प्रयाग में संगम तट पर सभी आते हैं।


धर्मराज युधिष्ठिर ने महाभारत युद्ध के दौरान मारे गए अपने रिश्तेदारों की सद्गति के लिए मार्कंडेय ऋषि के सुझाव पर कल्पवास किया था। स्नान का सबसे उत्तम समय तभी माना जाता है जब आकाश में तारागण दिखाई दे रहे हों यानी सूर्योदय से पूर्व। प्रयाग में रह कर पूरे माघ मास तक जो व्यक्ति कल्पवास तथा यज्ञ, शम्या, गोदान, ब्राह्मण भोजन, गंगा पूजा, दारागंज स्थित वेणीमाधव की पूजा, व्रतादि और दानादि करता है उसे विशेष पुण्य प्राप्त होता है। ब्रह्मा, विष्णु, महादेव, आदित्य, मरुद्गण तथा अन्य सभी देवी-देवता माघ मास में संगम स्नान करते हैं ऐसा माना जाता है। इस स्नान को करने और कल्पवास करने वाले को अश्वमेध यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है।

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