आज के दिन अस्तित्व में आया था हिमाचल प्रदेश, इसकी सुंदरता में चार चांद लगाती हैं ये झीलें

Edited By ,Updated: 15 Apr, 2017 09:30 AM

lakes in himachal pradesh

आज हिमाचल दिवस है। 30 छोटी-बड़ी रियासतों को मिलाकर 15 अप्रैल 1948 को हिमाचल प्रदेश अस्तित्व में आया था, लेकिन इसे पूर्ण राज्य का दर्जा 25 जनवरी

आज हिमाचल दिवस है। 30 छोटी-बड़ी रियासतों को मिलाकर 15 अप्रैल 1948 को हिमाचल प्रदेश अस्तित्व में आया था, लेकिन इसे पूर्ण राज्य का दर्जा 25 जनवरी 1971 को मिला। हिमाचल विविधताओं से भरा प्रदेश है जिसकी भौगोलिक स्थितियां भी विषम हैं। दूर-दूर तक फैली हिमाच्छादित हिमालय तुंग, गगनचुम्बी पर्वतमालाएं, घने जंगल तथा कल-कल बहती नदियां, सुंदर झरने, दुर्लभ जड़ी-बूटियां ऊंची-ऊंची पहाड़ियां और मीलों तक फैले पेड़ों की लम्बी श्रृंखला, आसमान छूती बर्फ की चादर ओढ़े पहाड़ की चोटियां, सुंदर सैरगाहें, रमणीक धार्मिक स्थल और खूबसूरत झीलें इसे अलग ही रूप प्रदान करते हैं। इसके कोने-कोने में नैसर्गिक सौंदर्य के बिखरे पड़े खजाने आलौकिक प्राकृतिक सौंदर्य के एवं सांस्कृतिक विविधता के भी दर्शन होते हैं। यहां अनेक सुंदर सैरगाहें, बर्फ से ढंके सफेद पहाड़, खूबसूरत शुद्ध नीले जल से भरी झीलें और रमणीक धार्मिक स्थल हैं, जिन्हें प्रकृति ने अत्यंत खूबसूरती से संवारा है। पूरे साल के मौसम में यहां का नजारा मंत्रमुग्ध करने वाला होता है। सर्दियों में बर्फ ढंकी पहाड़ियां व सुंदर झीलें इन शांत पर्यटन स्थलों की प्राकृतिक खूबसूरती को कई गुणा बढ़ा देती हैं। हिमाचल के लगभग प्रत्येक जिले में कोई न कोई झील है।
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रिवालसर झील 
जिला मुख्यालय मंडी से लगभग 22 किलोमीटर की दूरी पर समुद्र तल से लगभग 4420 फुट की ऊंचाई पर मंडी-हमीरपुर-जालंधर सड़क मार्ग पर हिन्दू, बौद्ध और सिख धर्म की त्रिवेणी के रूप में विख्यात रिवालसर अपने प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ तीनों धर्मों के ऐतिहासिक तथ्यों को भी समेटे हुए होने के कारण समान रूप से दर्शनीय व पूजनीय है। तीन धर्मों का सांझा तीर्थ स्थल होने के कारण पर्यटक व श्रद्धालु वर्ष भर यहां आते रहते हैं। ऊंची-ऊंची रमणीक पहाड़ियों के मध्य स्थित खूबसूरत झील का स्वच्छ नीला जल मानो अपने स्वर्णिम युग की कहानी को दोहरा रहा है। झील के उत्तर-पूर्व में गुरु गोबिन्द सिंह की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के प्रयोजन से निर्मित गुरुद्वारा स्थित है। बौद्ध अनुयायी इस स्थान को गुरु पद्म संभव की तपोस्थली मानते हैं। महर्षि लोमष की तपोस्थली होने के कारण हिन्दुओं की भी यहां गहन श्रद्धा है। शिखर शैली में निर्मित मंदिर में उन्हें प्रस्तर प्रतिमा के रूप में स्थापित किया गया है। झील के किनारे भगवान शिव का शिखर शैली का खूबसूरत मंदिर स्थित है। इस पावन झील से लगभग 5-6 किलोमीटर की दूरी पर सरकीधार नामक स्थल है। यहां सात छोटी-बड़ी झीलें हैं जिन्हें ‘सात सरों’ के नाम से भी जाना जाता है। इनका संबंध पांडवों से जोड़ा जाता है। मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान मां कुंती को जब प्यास लगी तो अर्जुन ने अपने तीर से इस धार पर पानी निकाला था और इससे निर्मित झीलों को कुंतभ्यो, नीला व गंदलासर के रूप में जाना जाता है। इन झीलों से कुछ ही दूरी पर मां नयना देवी का भव्य मंदिर है। वर्ष भर श्रद्धालुओं व प्रकृति प्रेमियों का यहां तांता लगा रहता है।
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खजियार झील 
नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण अपने आंचल में प्रकृति के कई रंग समेटे एक मनोरम स्थल है खजियार मिनी स्विट्जरलैंड के नाम से विख्यात चम्बा जिले का यह स्थल जिला मुख्यालय से लगभग 24 किलोमीटर की दूरी पर समुद्र तल से लगभग 1920 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। क्रमबद्ध खड़े लहलहाते देवदार के पेड़ों के बीच एक मखमली घास के सुंदर मैदान व इसकी गोद में सिमटी है छोटी सी झील। कहते हैं कि खाजीनाग के नाम पर ही खजियार का नामकरण हुआ है। खाजीनाग का अति प्राचीन मंदिर पहाड़ी शैली में काष्ठ शिल्प की उत्कृष्ट कृतियों में से एक है और अत्यंत दर्शनीय स्थल है। मंदिर में प्रतिष्ठित काष्ठ की प्रतिमाएं मनमोहक हैं। मंदिर में खाजी नाग की मानवाकार पाषाण की प्रतिमा स्थापित है। खजियार के दिलकश नजारे व नैसर्गिक सौंदर्य पर्यटकों को लुभाते ही नहीं बल्कि खजियार की मनोहारी छटा उनके मन को मोह लेती है। सर्दी में गिरते बर्फ के फाहों के बीच इस स्थल को निहारना स्विट्जरलैंड का आभास देता है और यहां की यात्रा विदेश यात्रा की अनुभूति प्रदान करती है।
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कमरूनाग झील 
करसोग मार्ग पर मंडी से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित रोहांडा व चौकी नामक स्थानों से यात्रा कर इस स्थान पर पहुंचा जा सकता है। यह स्थल पहाड़ियों के आंचल में लगभग नौ हजार फुट की ऊंचाई पर है। घने देवदार, कैल, बान के जंगलों के सुंदर नजारों के मध्य पैदल मार्ग से इस रमणीक स्थल तक पहुंचा जा सकता है। कमरूनाग झील के चारों ओर फैली हरियाली सुंदर नगरी यात्रा की थकान मिटा देती है। झील के किनारे पर पहाड़ी शैली का देव कमरूनाग का प्राचीन मंदिर है। देव कमरूनाग को वर्षा का देवता माना जाता है। कहते हैं कि महाभारत के युद्ध में कमरूनाग ने रत्नचंद के नाम से भाग लिया, जिसे श्री कृष्ण ने युद्ध समाप्ति पर कमरूनाग की इच्छा के अनुरूप इस स्थल पर स्थापित किया था। जन समुदाय में देव कमरूनाग को बड़े देव (स्थानीय भाषा में बड़ादेयो) के नाम से पूजते हैं व वर्षा का देवता के नाम से पूजनीय अपने क्षेत्र में प्रतिष्ठित हैं। इस झील की गहराई जिज्ञासुओं के लिए एक अबूझ पहेली है। इसमें श्रद्धालु अपनी श्रद्धा अनुसार सोने, चांदी के सिक्के व आभूषण डालते हैं।
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पराशर झील 
मंडी नगर से 40 किलोमीटर दूर तथा समुद्र तल से 9 हजार फुट की ऊंचाई व 2730 की ऊंचाई पर सिराज, सनोर, बदार व उतरशाला पर्वत श्रृंखलाओं के आंचल में स्थित है मनोहारी पराशर झील। यहां की शांत प्राकृतिक छटा और संगीतमय वातावरण के मूक निमंत्रण  से वशीभूत होकर ही शायद ऋषि पराशर ने इसे अपनी तपो स्थली बनाया था। उन्हीं के नाम से इस स्थल का नाम पराशर पड़ा। पराशर झील के पास पहुंचने पर इसकी सुंदरता देखकर रास्ते की सारी थकान गायब हो जाती है। लगभग आधा किलोमीटर के दायरे में फैली इस झील की चारों तरफ छोटी-छोटी पहाड़ियां और उसके आंचल में स्वच्छ व निश्चल कटोरीनुमा झील कुदरता का एक अनोखा नजारा पेश करती है। प्राकृतिक सौंदर्य के अतिरिक्त झील के मध्य में तैरता हरा-भरा भूखंड इसकी सुंदरता को और भी निखारता है। यह एक आश्चर्य है जिसे स्थानीय भाषा में बैड़ा कहते हैं। झील के तट पर बिखरा आलौकिक सौंदर्य और चिर स्तब्धता अपनी पुरातन दिनों की गाथा एक अनोखे स्वर्णिम आनंद से हृदय को विभोर कर देती है। हर वर्ष (जून मास में) यहां आषाढ़ मास की संक्रांति को सरनाहुली का मेला लगता है जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु स्थानीय देवी-देवताओं को रथों पर सुसज्जित कर लोक वाद्य यंत्रों की मधुर लहरियों के साथ इस मेले में लाते हैं। देवी-देवताओं व मानव का यह समागम यहां के मौन सौंदर्य में और बढ़ौतरी करता है।
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सरोलसर झील 
जिला कुल्लू के उपमंडल आनी के तहत जिले में सबसे अधिक ऊंचाई (लगभग 10800 फुट) पर स्थित है जलोडी दर्रा। इस दर्रे से लगभग 5-6 किलोमीटर पगडंडी से चल कर सरोलसर तक पहुंचा जा सकता है। सरोलसर पर्यटकों के लिए बेहतर सैरगाह तथा श्रद्धालुओं के लिए तीर्थ स्थल के रूप में दूर-दूर तक विख्यात है। इस पवित्र तीर्थ व प्राकृतिक सौंदर्य की संगम स्थली में स्थित है मां बूढ़ी नागन का एक प्राचीन मंदिर। इस मंदिर के प्रांगण में एक प्राकृतिक एवं पुरातन झील है। इस झील के उद्भव को पांडवों के अज्ञातवास से जोड़ा जाता है। झील की विशेष बात यह है कि इसके पानी का कोई स्रोत नहीं है और झील का पानी न कम होता है, न ज्यादा। इससे भी रोचक तथ्य यह है कि यह झील चारों तरफ से पेड़ों से घिरी होने पर भी इस झील में तिनका या पेड़ के पते तक नहीं मिलते। कहते हैं कि जब कभी कोई तिनका या पेड़ आदि का पता झील में गिर जाता है तो एक अदृश्य पक्षी इन तिनकों को निकाल कर झील के किनारे ले जाता है। यह पक्षी किसी-किसी को ही दिखाई देता है। झील के किनारे की पहाडिय़ां, पेड़ और नीले आकाश का प्रतिबिम्ब इसमें साफ झलकता है। इससे इसकी स्वच्छता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
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रेणुका झील 
रेणुका झील सिरमौर जिले में स्थित है। यह सिरमौर जिला के मुख्यालय नाहन से लगभग 37 किलोमीटर दूर व समुद्र तल से लगभग 672 मीटर व चारों तरफ हरी-भरी पहाड़ियों के बीच में लगभग 3214 मीटर के घेरे में फैली नारी आकृति में प्रतीत होती है। हर प्रतिवर्ष दीवाली के पश्चात दशमी के दिन यहां पर मेले का आयोजन किया जाता है। रेणुका का यह मेला मां-पुत्र के मिलन का प्रतीक है। झील के पास भगवान परशुराम का प्राचीन मंदिर व भगवती रेणुका का मठ है। इसके बारे में कहा जाता है कि इसको अंग्रेजों के समय में गोरखों की एक टुकड़ी ने बनवाया था।
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मणिमहेश झील 
मणिमहेश झील चम्बा जिले के भरमौर क्षेत्र के कैलाश पर्वत के आंचल में भरमौर से 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जिसे दूसरा कैलाश भी कहा जा सकता है। ज्यों-ज्यों हम ऊपर की तरफ चढ़ते जाते हैं मणिमहेश यात्रा रोमांच का नया अनुभव देती रहती है जहां कदम-कदम पर अलग-अलग नजारे देखने को मिलते हैं और ऐसा लगता है मानो आसमान हमसे ज्यादा दूर नहीं है। यह झील समुद्रतल से लगभग 13270 फुट की ऊंचाई पर लगभग डेढ़ किलोमीटर की परिधि में फैली है। मणिमहेश की यात्रा प्रति वर्ष अगस्त-सितम्बर मास में आयोजित होती है जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु दूर-दूर से भाग लेते हैं। यह पवित्र यात्रा कृष्ण जन्म अष्टमी से शुरू होकर राधा अष्टमी तक चलती है। 
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नाको झील 
जिला किन्नौर के पूह सब मंडल के अंतर्गत शीत मरुस्थलीय क्षेत्र में समुद्रतल से 3662 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नाको झील जो पंदम संभव को समर्पित है। इसे विश्व की सबसे ऊंची तीर्थस्थली भी कहा जाता है, पूह की वादियों से होते हुए खाव व नाको तक का रोमांचकारी मार्ग से इस स्थल तक पहुंच कर पर्यटक व प्रकृति प्रेमी झील के पानी को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।   

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