साई बाबा ने 50 साल पहले शिरडी के लिए की थी ये भविष्यवाणी!

Edited By ,Updated: 19 Apr, 2017 07:40 AM

this prophecy was done by sai baba for 50 years before shirdi

संत कवि श्री दासगणु महाराज ने महाराष्ट्र के संतों के संबंध में ऐतिहासिक जानकारी एकत्र कर उसे काव्यबद्ध किया है। मराठी के लोकप्रिय ओवीबद्ध छंद में उन्होंने संतों का चरित्र चित्रण किया है। श्री दासगणु शिरडी के श्री साईबाबा के

संत कवि श्री दासगणु महाराज ने महाराष्ट्र के संतों के संबंध में ऐतिहासिक जानकारी एकत्र कर उसे काव्यबद्ध किया है। मराठी के लोकप्रिय ओवीबद्ध छंद में उन्होंने संतों का चरित्र चित्रण किया है। श्री दासगणु शिरडी के श्री साईबाबा के सान्निध्य में दीर्घ काल तक रहे। बाबा की इच्छा के अनुसार उन्होंने ‘भक्तिलीलामृत’, ‘भक्तिसारामृत’ और संतकथामृत नामक संत चरित्रों की रचना की। इसके अलावा कुछ अन्य चरित्र ग्रंथ भी उन्होंने लिखे। साईबाबा के आदेशानुसार मराठवाड़ा-नांदेड़ को उन्होंने अपनी कर्मभूमि बनाया। इस आदेश के अनुसार वह अक्सर पंढरपुर और नांदेड़ में ही रहते थे। बाबा के लीला चरित्र का वर्णन करने वाला ‘श्री साईचरित’ नामक उनका ग्रंथ अत्यंत प्रसिद्ध है। श्री दासगणु रचित ‘शिरडी माझे पंढरपुर’, ‘साईबाबा रामवर’ और ‘रहम नजर करो अब मेरे साई’, काव्य पंक्तियां भी संसार भर में गाई जाती हैं। कभी साईबाबा ने उनसे कहा था, ‘‘अरे गणु! देखना, अगले पचास वर्षों में इस शिरडी में इतनी भीड़ बढ़ जाएगी कि पैर रखने की भी जगह नहीं बचेगी।’’


दासगणु की समाधि
बाबा और अपने गुरु पू. वामनशास्त्री इस्लामपुरकर के प्रति दासगणु जी की बहुत श्रद्धा थी। नांदेड़ में श्री दासगणु के भक्तों की संख्या बढऩे लगी। वहां लोगों ने उनसे गुरुमंत्र प्राप्त कर, उनका शिष्यत्व भी ग्रहण किया। आसपास के स्थानों से भी लोग उनके पास गुरुमंत्र लेने के लिए आने लगे। उनका भक्त परिवार बढ़ता गया। नांदेड़ से 45 कि.मी. दूर एक स्थान है ‘गोरटे।’ आगे चलकर गोरटे ग्राम में दासगणु की समाधि बनी। यहां भक्तों के निवास की भी व्यवस्था है। कीर्तन परंपरा के प्रभाव और महत्व के कारण एक सुंदर और प्रशस्त कीर्तन मंडप भी बना है। यहां भोजन की उत्तम व्यवस्था है और विशाल भोजन मंडप भी है।


जन्म और कर्मभूमि
श्री दासगणु का जन्म महाराष्ट्र के कोंकण प्रदेश के परिवार में हुआ था। इनका कुलनाम सहस्रबुद्धे था। बाद के दिनों में श्री दासगणु ने अपने सद्गुरु बाबा के चरणों में अपना जीवन समर्पित कर दिया। अत्यंत उत्कट भक्ति और श्री विष्णुसहस्रनाम के प्रति आत्यंतिक श्रद्धा ही उनके जीवन की विशेषता थी। कार्तिक कृष्ण त्रयोदश को श्री दासगणु ने देह का त्याग किया।

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