अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस पर विशेष: ‘जीवात्मा और परमात्मा के मिलन को कहते हैं योग’

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Jun, 2017 07:46 AM

special on international yoga day yoga is the union of spirit and spirit

योग शब्द का अर्थ है समाधि लगाना। योग क्रिया को परमात्मा से मेल का साधन भी माना जाता है। श्रीमद्भागवत गीता में श्री कृष्ण जी ने कहा है कि

योग शब्द का अर्थ है समाधि लगाना। योग क्रिया को परमात्मा से मेल का साधन भी माना जाता है। श्रीमद्भागवत गीता में श्री कृष्ण जी ने कहा है कि योग: कर्मसु कौशलम् अर्थात कर्मों में कुशलता को योग कहते हैं। श्रीमद्भागवत गीता के छठे अध्याय में पारंपरिक योग के अभ्यास, ध्यान पर चर्चा करते हुए कर्म योग, भक्ति योग और ज्ञान योग के बारे में बताया गया है। कुछ विद्वानों का मत है कि जीवात्मा और परमात्मा के मिल जाने को योग कहा जाता है। 


योग भारतीय धरोहर होने की वजह से हमारी जीवन शैली में इसका विशेष महत्व है। दुनिया के कई हिस्सों में योग का प्रचार और प्रसार हो चुका है। इसे करने से शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं। योग से कई तरह की बीमारियों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। इसे करने के लिए कोई विशेष उम्र की जरूरत नहीं पड़ती बस मन में इसे करने की ललक होनी चाहिए। 5 से 90 वर्ष तक की उम्र वर्ग के लोग किसी भी प्रशिक्षित योग विशेषज्ञ के निर्देशन में इसे कर सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र ने 2 वर्ष पूर्व 21 जून को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने की घोषणा की थी। 


योग के प्रकार 
योग की प्रमाणिक पुस्तकों में शिवसंहिता और गौरक्षशतक में योग के 4 प्रकारों का वर्णन मिलता है। योग के ये 4 प्रकार मंत्रयोग, हठयोग, लययोग और राजयोग हैं। योग की उच्चावस्था तक पहुंचने के लिए साधक समाधि और मोक्ष जैसी क्रियाओं का प्रयोग करता है। श्रीमद्भागवत गीता में ज्ञानयोग और कर्मयोग 2 प्रकार के योग का वर्णन मिलता है। 


भारत में योग 5 हजार वर्ष पुराना 
योग की उत्पत्ति भारत में लगभग 5000 वर्ष से पूर्व की मानी जाती है। प्राचीन काल से ही वेदों में योग का उल्लेख मिलता है। सिंधु घाटी की सभ्यता से मिली मूर्तियां भी योग और समाधि की मुद्रा को प्रदर्शित करती हैं। ऋषि पतंजलि को योग दर्शन का संस्थापक माना जाता है।

 

योग के आठ अंग यानी अष्टांग योग इसका आधार बन गया है 
1. यम : हमें जिंदगी में अहिंसा, झूठ नहीं बोलना, गैर लोभ, गैर विषयाशक्ति और गैर स्वामीगत जैसा व्यवहार रखना चाहिए। 

2. नियम : जिंदगी में 5 धार्मिक क्रियाओं में पवित्रता, संतुष्टि, तपस्या, अध्ययन और भगवान को आत्मसमर्पण जैसी भावनाओं को अपनाना चाहिए। 

3. आसन : पतंजलि योग में ध्यान लगाने के लिए आसन का प्रयोग करना चाहिए। योग के लिए बैठने के आसन का प्रयोग करना चाहिए। 

4. प्राणायाम : पतंजलि योग सूत्र में शरीर की शक्ति को नियंत्रित करने के लिए सांस को शरीर में रोकने की प्रक्रिया है। 

5. प्रत्याहार: शरीर को स्वस्थ रखने के लिए मन की भावनाओं को नियंत्रण में रखना। 

6. धारणा : शरीर की शक्तियों को नियंत्रित करने के लिए मन को एकाग्र करके आसानी से लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है। एक ही लक्ष्य पर ध्यान लगाकर सारी शक्ति को उसे प्राप्त करने के लिए लगाना। 

7. ध्यान : लक्ष्य की प्राप्ति के लिए गहन चिंतन करने के लिए ध्यान लगाने का प्रयोग किया जाता है। 

8. समाधि : यह योग पद्धति की चरम अवस्था है। आत्मा को परमात्मा तक पहुंचाने के लिए समाधि क्रिया की जाती है। सविकल्प और अविकल्प 2 प्रकार से समाधि लगाई जाती है। 


‘शारीरिक स्वास्थ्य के लिए योग वरदान से कम नहीं’
योगासन शारीरिक स्वास्थ्य के लिए वरदान से कम नहीं है क्योंकि इसे सही निर्देशन में करने से इसका शरीर के समस्त भागों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। योगासन करने से शरीर में स्नायु तंत्र, रक्ताभिगमन तंत्र और श्वासोच्छवास तंत्र की क्रियाएं व्यवस्थित रूप से कार्य करती हैं। योग के प्रयोग से मनुष्य का सर्वपक्षीय विकास होता है। योगासन करने से शरीर चुस्त रहता है। शरीर की भीतरी ग्रंथियां दुरुस्त रहती हैं तथा पाचन शक्ति की विभिन्न गड़बडिय़ों को दूर करने में सहायक होता है। योगासन रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाते हैं। योगासन से मांसपेशियों को शक्ति मिलती है।

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