24 जून से लेकर 2 जुलाई तक करें ये काम, 9 दिनों बाद होगा चमत्कार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Jun, 2017 11:02 AM

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नवरात्र साल में 4 बार आते हैं, प्रथम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल दशमी तक जिसे बासन्तीय नवरात्र कहते हैं।

नवरात्र साल में 4 बार आते हैं, प्रथम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल दशमी तक जिसे बासन्तीय नवरात्र कहते हैं। दूसरे आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से आश्विन शुक्ल दशमी तक जिसे शारदीय नवरात्र कहते है। इसके अतिरिक्त 2 गुप्त नवरात्र भी होते हैं। अषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से अषाढ़ शुक्ल दशमी तक। दूसरे माघ शुक्ल प्रतिपदा से माघ शुक्ल दशमी तक गुप्त नवरात्र का समय होता है। 24 जून से लेकर 2 जुलाई तक आषाढ़ महीने के माता के गुप्त नवरात्र प्रारम्भ हो रहे हैं। नौ दिवसीय साधना के पर्व में करें ये काम, फिर देखें आपके जीवन में कैसे होगा चमत्कार।


माता की पूजा " लाल रंग के कम्बल " के आसन पर बैठकर करना प्रकृष्ट माना गया है। 


साधको, योगियों, सिद्धि प्राप्त करने वालो के लिए " कुश " का आसन सर्वोत्तम होता है। 


माता के पूजन हेतु सोने चांदी कांसे के दीपक का उपयोग उत्तम होता है।


माता की पूजा हेतु शुद्ध घी का दीप जलाना सर्वश्रेष्ठ होता है।


तिल के तेल का दीपक मौली की बाती का उपयोग शुभ माना गया है।


शत्रुओं से मुक्ति पाने के लिए सरसों व चमेली के तेल का दीपक जलाएं।  


माता के मंत्रों का जाप करने के लिए रुद्राक्ष अथवा लाल चन्दन की माला का प्रयोग करें।


माता के बिशेष अनुष्ठान के समय सोने, चांदी, कांसा, तांबा और लोहे का दीपक अवश्य जलाना चाहिए।


धन प्राप्ति हेतु माता के मंत्रो का जाप कमलगट्टे की माला से करना चाहिए।


दीपक के नीचे " चावल " रखने से मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है तथा " सप्तधान्य " रखने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते है।


घर में पूजा करते समय माता के सम्मुख 1 बाती का दीपक तथा विशेष अनुष्ठान के समय 9 बाती का दीपक जलाएं।


अगर आप सक्षम है तो " सोने के मनकों वाली माला " से माता के मंत्रो का जाप करें।


माता की पूजा करते समय " गुडहल " के फूल अवश्य अर्पित करें। इससे माता प्रसन्न होती है।


नवरात्र पूजा के समय 9 दिन अखंड दीप प्रज्वलित करना चाहिए।


अष्टमी - नवमी तिथि को दो से दस वर्ष तक की 9 कन्याओं को देवी का रूप मानकर पूजन करने के पश्चात भोजन करवाना चाहिए तथा फल, दक्षिणा भेंट देनी चाहिए।

दो वर्ष की कन्या - कुमारी
तीन वर्ष की - त्रिमुर्तनी
चार वर्ष की - कल्याणी
पांच वर्ष की - रोहिणी
छह वर्ष की - काली
सात वर्ष की - चंडिका
आठ वर्ष की - शाम्भकी
नौ वर्ष की - दुर्गा और दस वर्ष की कन्या को सुभद्रा स्वरुप माना गया है।

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