Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Jun, 2017 02:03 PM
सामाजिक समरसता और सहिष्णुता के लिए मनीषियों ने अनेक उपाय बताए हैं, जिनका अनुसरण कर हम समाज को एक सूत्र में बांध सकते हैं।
सामाजिक समरसता और सहिष्णुता के लिए मनीषियों ने अनेक उपाय बताए हैं, जिनका अनुसरण कर हम समाज को एक सूत्र में बांध सकते हैं। वसुधैव कुटुंबकम यानी समस्त पृथ्वी ही परिवार है का जो बीज मंत्र भारतीय संस्कृति ने दिया, वह इसी का एक भाग है। सबसे पहले इसे खुद पर लागू करना होगा। हमारे शरीर को ज्ञानेंद्रियां संचालित करती हैं। हम कुछ देखते हैं और मन उसे देखने को अपराध कहता है तो हमें अपनी आंखों के प्रति सहिष्णु बनना चाहिए तथा तत्काल उधर से दृष्टि हटा लेनी चाहिए।
दूसरा कोई भले न जान पाए कि हम क्या गलत कर रहे हैं लेकिन अपना मन हर काम के गलत-सही के बारे में बताता रहता है। इसकी सीधी-सी पहचान है कि जो काम हम चोरी से करते हैं वह गलत है। यही बात अन्य ज्ञानेंद्रियों पर लागू होती है। हम जब खुद मन-बुद्धि से एक सूत्र में नहीं रहेंगे तो समाज को एक सूत्र में नहीं बांध सकते। ऐसा इसलिए क्योंकि यदि खुद हमारे कर्म और चिंतन में विरोधाभास रहेगा तो वह हमारी कार्यपद्धति में भी उतर आएगा। समाज की सबसे छोटी इकाई व्यक्ति है। समाज को उत्तम व आदर्शवादी बनाने के लिए आलीशान मकान और भारी-भरकम भौतिक साधन नहीं, बल्कि सुसंस्कारित व्यक्ति का होना जरूरी है। कबीर, तुलसी, सूर, गांधी, मदनमोहन मालवीय आदि ने सादा जीवन उच्च विचार को अपनाकर समाज को स्वच्छ और कुरीतियों से दूर किया। जो हमारे लिए ठीक नहीं, वह दूसरों के लिए भी ठीक नहीं की सोच को मजबूती से पकडऩे की जरूरत है। येन-केन-प्रकारेण शॉर्टकट उपलब्धि अनेक विकृतियों को जन्म देती है और तब समाज में विषमता, विषाक्तता, नफरत का माहौल बनने लगता है।
भगवान राम ने भी पहले सहनशीलता का परिचय देते हुए रावण को एक मौका दिया। इसी तरह भगवान कृष्ण ने भी पहले सहिष्णुता का परिचय देते हुए 5 गांव ही देने का
अनुरोध कौरव पक्ष के समक्ष किया था, ताकि विवाद टल जाए। जो व्यक्ति समाज के लिए सहिष्णु नहीं होता, एक दिन ऐसा आ जाता है कि वह अपने परिवार के प्रति भी क्रूर हो जाता है और फिर उसका निजी जीवन कष्टदायी बन जाता है।