ड्रैगन को अब पाक का सहारा !

Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Jul, 2017 05:57 PM

china suffers from lack of hardworking donkeys

भारत में गधों पर राजनीतिक वाद-विवाद भले हो, लेकिन चीन में इनकी कमी से छोटे-मझोले कारोबारियों का कामकाज ठप्प हो गया है...

बीजिंगः भारत में गधों पर राजनीतिक वाद-विवाद भले हो, लेकिन चीन में इनकी कमी से छोटे-मझोले कारोबारियों का कामकाज ठप्प हो गया है। पठारी और छोटी पहाड़ियों के दुर्गम इलाकों में गधे ही ढुलाई के सबसे बेहतर जरिया हैं, लेकिन ये खोजे नहीं मिल रहे हैं। इसलिए चीन यानि ड्रैगन को अब पाकिस्तान का सहारा है क्योंकि पाकिस्तान सरकार आर्थिक गलियारे के रास्ते चीन को सालाना 80 हजार गधों की आपूर्ति का प्रस्ताव दिया है, लेकिन यह ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर है।

तंजानिया, इथियोपिया, नाइजर के अलावा पाकिस्तान सहित ज्यादा मुस्लिम देशों में गधों के मांस पर प्रतिबंध है। गधों की कमी का एक बड़ा कारण उनका प्रजनन में ज्यादा रुचि नहीं होना भी हैं। मादा गधा 14 माह में बच्चे को जन्म देती है। पेशे से किसान मा युफा का कहना है कि 2014 में उनका गधा मर गया, तब से उन्हें नया गधा नहीं मिल रहा है। युफ का कहना है कि करीब 30 करोड़ किसान खेती, फसलों को ले जाने या अनाज की सफाई में गधों का इस्तेमाल करते हैं। खासकर गरीब किसान ट्रैक्टर और अन्य मशीनों की जगह गधों पर ही निर्भर हैं।

चीन में 30 साल पहले गधों की आबादी 1.1 करोड़ थी, जो अब दो तिहाई घटकर 30 लाख रह गई है। गधों की आबादी बढ़ाने पर भी सरकार ध्यान नहीं दे रही है।दरअसल, चीन लंबे समय से जानवरों की हड़्डियों और खालों से दवा तैयार करता रहा है। इसें बाघ की हड्डियों, शार्क का सूप और हाथी दांत का इस्तेमाल शामिल है। गधों की खालों को भी उबालकर ई जियाओ नाम की दवा बड़े पैमाने पर बनाई जा रही है। 

गधे संरक्षण चैरिटी समूह के ब्रिटिश सदस्य एलेक्स मेयर्स का कहना है कि ई जियाओ का उत्पादन रोका जाना मुश्किल है।  इस दवा के निर्माताओं का कहना है कि वह तो किसानों और पशुपालकों को पुराने गधों को बेचने का जरिया मुहैया करा रहे हैं। इस दवा के उत्पादन से तो ज्यादा गधों को पालने का प्रोत्साहन मिलता है। हिरण की सींगों और जिनसेंग के बाद ई जियाओ की चीन में बेहद मांग है। 

चीन में गधों की खालों से पारंपरिक दवा ई जियाओ बनाए जाने के धंधे से इनकी भारी कमी हो गई है। ई जियाओ की मांग 2010 से दोगुना हो गई है। नैशनल ई जियाओ एसोसिएशन के मुताबिक, 2015 में इस दवा का करीब 68 लाख किलोग्राम उत्पादन हुआ। कभी यह दवा अमीरों को ही मुहैया थी, क्योंकि एक गधे से करीब एक किलो ही ई जियाओ मिल पाती है। 
 
 

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