सीना चौड़ा करता कारगिल युद्ध, पर टीस देते हैं सरकार के झूठे वादे

Edited By Punjab Kesari,Updated: 26 Jul, 2017 11:14 AM

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जुलाई 1999 के कारगिल युद्ध में देश के जांबाज पाक सेना से 2-2 हाथ कर रहे थे। पाक सेना को धूल चटाते हुए धोखे से कब्जाई गई चोटियों पर एक-एक कर तिरंगा फहरा रहे थे।

नई दिल्लीः जुलाई 1999 के कारगिल युद्ध में देश के जांबाज पाक सेना से 2-2 हाथ कर रहे थे। पाक सेना को धूल चटाते हुए धोखे से कब्जाई गई चोटियों पर एक-एक कर तिरंगा फहरा रहे थे। पाकिस्तान पर भारतीय सेना की वो जीत आज भी हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा कर देती है। उस दिन को याद कर मोहन सिंह के चेहरे पर गर्व के भाव आ जाते हैं, लेकिन अगले ही पल अपने बेटे सोनी की फोटो देख कर असंतोष और निराशा का भाव दिखता है। गर्व इस बात का कि इकलौता बेटा देश के काम आया और अमर हो गया और निराशा इस बात की कि 18 साल बाद भी सीमा और देश में कमोबेश वैसे ही हालात हैं।

कारगिल शहीद गुरदीप सिंह के पिता अपने बेटे को याद कर भावुक हो उठते हैं। आंसुओं को रोकना मुश्किल हो जाता है तो अपनी पत्नी मंजीत कौर को दिलासा देने लगते हैं। मोहन सिंह ने कहा कि बेशक 18 साल बीत गए हैं, लेकिन उन्हें आज भी वह दिन याद है जब जवान बेटे का शव तिरंगे में लिपटा घर लाया गया था। बेटे के बचपन से लेकर उसके सेना में भर्ती होने तक की सभी यादों को सांझा करते हुए मोहन सिंह बताते हैं कि उनके बेटे ने जो कारनामा कर दिखाया है, वह कोई नहीं दोहरा सकता। वह जब तक इस दुनिया में रहेंगे, अपने बहादुर बेटे की यादों के सहारे जिएंगे।

सरकार के झूठे वादे देते हैं टीस
कारगिल की जंग में चम्पावत के दान सिंह मेहता ने अपने अदम्य साहस से दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे। सीने पर गोलियां खाकर भी उन्होंने छह दुश्मनों को ढेर किया था। युद्ध में वह शारीरिक रूप से अक्षम हो गए। 6 महीने से भी ज्यादा समय तक उनका इलाज चला। नौ एमएम का छर्रा आज भी उनके सीने में है जो कभी-कभी दर्द देता है। उस दर्द से ज्यादा टीस उन्हें सरकारी वादाखिलाफी से होती है जो सीने में धंसे छर्रे से कहीं अधिक चुभती है।
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सरकार ने घोषणा की थी कि परिवार के भरण-पोषण के लिए उन्हें पेट्रोल पंप दिया जाएगा लेकिन यह वादा आज तक पूरा नहीं हो पाया है। यह बहादुर जवान अब फुटवियर की दुकान चलाकर जीविकोपार्जन कर रहा है। उनकी तीन बेटियां और एक बेटा है। शरीर से अक्षम होने के बाद उन्हें सेवा मुक्त कर दिया गया था और रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने भरोसा दिलाया था कि उनकी बच्चियों की रवरिश में भरपूर मदद दी जाएगी। अलबत्ता बेटियों की शिक्षा के नाम पर दो लाख और एक बेटी की शादी के लिए उत्तराखंड सरकार ने दो लाख रुपए जरूर दिए। हालांकि उनकी दो बेटियों की शादी अभी होनी बाकी है।

19 साल की छोटी उम्र में दी शहादत
कारगिल में घुसपैठ के बाद भारतीय सेना द्वारा ऑप्रेशन विजय चलाया गया था और 2 महीने तक चले इस युद्ध में देश ने 527 सैनिक खो दिए थे, जबकि 1300 से अधिक घायल हो गए थे। विश्व के इतिहास में कारगिल युद्ध दुनिया के सबसे ऊंचे क्षेत्रों में लड़ी गई जंग है। शहीद हुए सैनिकों में अधिकांश ऐसे थे, जिन्होंने अभी अपनी जवानी की दहलीज पर पूरी तरह कदम भी नहीं रखा था, लेकिन देश की खातिर वे तिरंगा हाथ में थामे हंसते-हंसते मातृभूमि की रक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हो गए। ऐसा ही एक वीर सिपाही था गुरदीप सिंह सोनी। साम्बा जिले के रामगढ़ क्षेत्र के गांव पलोटा का रहने वाला गुरदीप सिंह 6 जुलाई, 1999 को कारगिल में टाइगर हिल्स पर कब्जा करते हुए शहीद हो गया था। गुरदीप सिंह सोनी ने महज 19 साल की छोटी उम्र में ही खुद को वतन पर कुर्बान कर दिया।

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