ये पढ़ें: आपके दुखों का बोझ दिल-दिमाग से सदा के लिए उतर जाएगा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 08 Aug, 2017 10:44 AM

your burden of suffering will end up with heart and mind

घने जंगल में ऊंची पहाड़ी पर एक संत रहते थे। दुनिया की आपाधापी से दूर उन्होंने पर्वतों पर ही एकाकी जीवन व्यतीत करना बेहतर समझा था। मगर उनकी प्रसिद्धि इतनी अधिक थी कि उनके

घने जंगल में ऊंची पहाड़ी पर एक संत रहते थे। दुनिया की आपाधापी से दूर उन्होंने पर्वतों पर ही एकाकी जीवन व्यतीत करना बेहतर समझा था। मगर उनकी प्रसिद्धि इतनी अधिक थी कि उनके दर्शनों के लिए लोग उस निर्जन घने वन में दुष्कर मार्ग से गुजरते हुए भी उन तक पहुंच जाते। लोगों की संत पर अपार श्रद्धा थी और उन्हें लगता था कि वह उनके दुखों और समस्याओं से छुटकारा दिला सकते हैं। ऐसे ही कुछ श्रद्धालु संत के पास अपनी समस्या का समाधान पाने के लिए पहुंचे। संत उस समय समाधि में लीन थे, लिहाजा लोग वहीं बैठकर इंतजार करने लगे। इस बीच कुछ और श्रद्धालु भी वहां पहुंच गए। श्रद्धालुओं के आने के साथ वहां शोर भी बढ़ता जा रहा था। शोर सुनकर संत की समाधि टूटी। उन्होंने उपस्थित लोगों से आने का कारण पूछा तो वे सब अपने-अपने दुख गिनाने लगे।


संत ने उनसे कहा, ‘‘मैं तुम सभी को दुखों और कष्टों से मुक्ति का उपाय बताऊंगा लेकिन मेरी भी एक शर्त है। मैं यहां एकांत में कुछ समय के लिए तपस्या करना चाहता हूं, इसलिए आप लोग वापस पहुंचकर किसी और को मेरा पता नहीं बताएंगे।’’ 


लोग इसके लिए राजी हो गए।  तब संत ने उनसे कहा, ‘‘आप लोग अपने-अपने कष्ट और तकलीफें एक पर्चे पर लिखकर मेरे सामने रख दीजिए।’’ 


जब सभी लोग लिख चुके, तब संत ने एक टोकरी में सारे पर्चों को गड्ड-मड्ड कर दिया और लोगों से कहा कि वे इस टोकरी को एक-दूसरे के आगे बढ़ाते जाएं। हर व्यक्ति इसमें से एक पर्चा उठाए और पढ़े। इसके बाद वह यह तय करे कि अपने दुख ही अपने पास रखना चाहेगा या किसी और के दुख लेना पसंद करेगा। सभी लोगों ने टोकरी से पर्चे उठाकर पढ़े और पढ़ते ही उनकी उलझन बढ़ गई। आखिरकार वे इस नतीजे तक पहुंचे कि उनके दुख और तकलीफें कितनी ही बड़ी क्यों न हों, पर औरों के दुख-दर्द के सामने वे कुछ भी नहीं थीं। दो घंटे के भीतर उनमें से हर किसी ने सारे पर्चे देख लिए और सभी को अपना ही पर्चा अपनी जेब के हवाले करना उचित लगा।


दूसरों के दुखों की झलक पाकर उन्हें अपने दुख हल्के लगने लगे थे। जीवन का यह जरूरी सबक सीखकर सभी अपने-अपने घर को चले गए। उनके दुख तो बरकरार थे, पर उनका बोझ अब दिल-दिमाग पर उतना नहीं लग रहा था।

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