आकर्षण के लिए महंगे कपड़ों की नहीं बल्कि इस गुण की है आवश्यकता

Edited By Punjab Kesari,Updated: 13 Aug, 2017 11:27 AM

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एक बड़े लेखक एक कार्यक्रम में जा रहे थे। उन्होंने साधारण कपड़े पहने

एक बड़े लेखक एक कार्यक्रम में जा रहे थे। उन्होंने साधारण कपड़े पहने थे। लेखक के साथ उनका एक मित्र भी जा रहा था। अपने मित्र को अत्यंत साधारण कपड़ों में देखकर वह बोला, ‘‘आप इतने महान लेखक हैं, बड़े कार्यक्रम में जा रहे हैं। जब लोग आपको मामूली कपड़ों में देखेंगे तो आपके बारे में क्या सोचेंगे?’’ 

लेखक ने उत्तर दिया, ‘‘जो लोग मेरे साहित्य की वजह से मुझे जानते हैं, उन्हें मेरे कपड़ों में कोई दिलचस्पी नहीं होगी और जो लोग मुझे नहीं जानते, उन पर मेरे कपड़ों का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।’’ यह सही है कि कई बार हम आंतरिक गुणों के विकास की अपेक्षा बाहरी दिखावे को ज्यादा महत्व देते हैं। हम जब किसी विशेष आयोजन में जाते हैं तो अच्छे से अच्छे कपड़े पहनकर और सज-संवरकर ही जाते हैं। प्रश्न उठता है कि क्या हमें बाहरी सौंदर्य के प्रति उदासीन ही रहना चाहिए? लोग हमारे कपड़ों के चुनाव व हमारे कपड़े पहनने के सलीके की तारीफ करें तो खुशी होती ही है। 

बात महंगे कपड़ों की नहीं, सलीके की हो रही है। यदि आप एक अच्छे कलाकार अथवा साहित्यकार हैं तो अच्छे और सलीके से पहने हुए कपड़े आपके व्यक्तित्व को निखारने का ही काम करेंगे। अच्छे कपड़े सलीके से पहनने में कोई बुराई नहीं लेकिन हर चीज की एक सीमा होती है, समय और साधन भी अपेक्षित होते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि हम अपने समय और संसाधनों का कैसे उपयोग करते हैं। यदि एक व्यक्ति अपना अधिकांश समय अपनी साज-सज्जा में ही लगा देगा तो वह काम कब करेगा? अर्थोपार्जन भी जीवन के लिए आवश्यक है और इसके लिए समय भी होना चाहिए।

इसी तरह से यदि कोई कलाकार, लेखक अथवा चिंतक अपना ज्यादा समय बाह्य व्यक्तित्व की साज-सज्जा में लगा देगा तो उसे अपने मुख्य कार्य के लिए समय ही नहीं मिल पाएगा इसलिए हमारी संस्कृति में सादा जीवन व उच्च विचार को प्राथमिकता दी गई है। सादगी अपने आप में महत्वपूर्ण है। यह व्यक्ति को दूसरे महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए समय प्रदान करने में सक्षम है। तो यह जरूरी है कि बाहरी साज-सज्जा को ही हम अपना मूल काम न समझने लग जाएं। मगर यह ध्यान रखना और भी जरूरी है कि आंतरिक विकास और बाहरी साज-सज्जा अनिवार्य तौर पर परस्पर विरोधी नहीं हैं। आंतरिक तौर पर हम जितना सुलझते जाते हैं, हमारे जीवन में संतुलन उतना ही स्पष्ट होता जाता है।
 

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