देश में क्यों बढ़ रही है हताशा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 25 Sep, 2017 01:04 AM

why is growing frustration in the country

मोदी सरकार के 3 साल पूरे हो गए। सरकारी स्तर पर अनेक क्रांतिकारी निर्णय लिए गए। देश को बताया गया...

मोदी सरकार के 3 साल पूरे हो गए। सरकारी स्तर पर अनेक क्रांतिकारी निर्णय लिए गए। देश को बताया गया कि उनके दूरगामी अच्छे परिणाम आएंगे। सरकार के इस दावे पर शक करने की कोई वजह नहीं है। कारण स्पष्ट है कि मोदी दिल से चाहते हैं कि भारत एक मजबूत राष्ट्र बने। राष्ट्र मजबूत तब बनता है, जब उसके नागरिक स्वस्थ हों, सुसंस्कारित हों, अपने भौतिक जीवन में सुखी हों और उनमें आत्मविश्वास और देश के प्रति प्रेम हो। 

इस चौथे ङ्क्षबदू पर मोदी जी ने अच्छा काम किया है। जिस तरह उनका सम्मान हर धर्म के हर देश में हुआ है, उससे आज हर भारतीय गर्व महसूस करता है। इसमें बहुत अहम भूमिका प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री अजीत डोभाल की रही है, जिन्होंने रात-दिन कड़ी मेहनत करके प्रधानमंत्री की अंतर्राष्ट्रीय पकड़ मजबूत बनाने का काम किया है। श्री डोभाल का देश प्रेम किसी से छुपा नहीं है। उन्होंने देश के हित में कई बार जान को जोखिम में डाला है। इसलिए वह जो भी कहते हैं, प्रधानमंत्री उसे गंभीरता से लेते हैं। फिर क्यों देश में हताशा है?

कारण स्पष्ट है कि अन्य क्षेत्रों में भी ऐसे तमाम लोग हैं, जिन्होंने समाज की अच्छाई के लिए गरीबों के कल्याण और धर्म तथा संस्कृति की रक्षा के लिए अपना जीवन समॢपत कर दिया। ऐसे लोगों को अभी तक प्रधानमंत्री ने अपने साथ नहीं जोड़ा हैै, जबकि केन्द्र की सत्ता में आने से पहले गुजरात में उनकी छवि थी कि वह हर नए विचार और उसके लिए समर्पित व्यक्तियों को सम्मान देकर जमीनी काम करने का मौका देते थे, पर जब से वह दिल्ली आए हैं, तब से उन्होंने डोभाल साहब जैसे अन्य क्षेत्रों के सक्षम और राष्ट्रभक्त लोगों को अपने सलाहकार मंडल में स्थान नहीं दिया, जबकि उन्हें अकबर के नौ रत्नों की तरह अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञों को भी अपने टीम में शामिल कर लेना चाहिए। 

मोदी जी की सारी निर्भरता अफसरों के ऊपर है, जो ठीक नहीं है क्योंकि अफसर बंद कमरे में सोचने के आदी हो चुके हैं। इसलिए उनका जमीन से जुड़ाव नहीं होता। यही कारण है कि नीतियां तो बहुत बनती हैं, पर उनका क्रियान्वयन होता दिखाई नहीं देता। इसी से जनता में हताशा फैलती है। इस मामले में नीति आयोग के सी.ई.ओ. अमिताभ कांत को पहल करनी चाहिए। वह ऐसा मॉडल विकसित करें, जिससे केन्द्र सरकार के अनुदान फर्जी कंसल्टैंट्स और भ्रष्ट नौकरशाही के जाल में उलझने से बच जाएं, पर पता नहीं क्यों वह भी अभी तक ऐसा नहीं कर पाए हैं? 

देश के युुवाओं में बेरोजगारी के कारण भारी हताशा है। ऐसा नहीं है कि बेरोजगारी मोदी सरकार की देन है। चूंकि, मोदी जी ने अपने चुनावी अभियान में युवाओं को रोजगार देने का आश्वासन दिया था, इसलिए उनकी अपेक्षाएं पूरी नहीं हुईं। माना कि हम आधुनिक विकास मॉडल के चलते युवाओं को नौकरी नहीं दे सकते, पर उनकी ऊर्जा को अच्छे कामों में लगाकर उन्हें भटकने से तो रोक सकते हैं। इस दिशा में भी आज तक कोई ठोस काम नहीं हुआ। यही हाल देश के उद्योगपतियों और व्यापारियों का भी है, जो आज तक भाजपा के कट्टर समर्थक रहे हैं। वे भी अब मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों के चलते बहुत नाराज हैं और अपनी आमदनी व कारोबार के तेजी से घट जाने से चिंतित हैं। उन्हें लगता है कि यह सरकार तो उनकी सरकार थी, फिर उनके साथ यह अन्याय क्यों किया गया? 

उधर भाजपा के नेतृत्व की शायद सोच यह है कि व्यापारी उद्योगपति तो 3 प्रतिशत भी नहीं हैं। इसलिए उनके वोटों की दल को चिंता नहीं है। सारा ध्यान और ऊर्जा आर्थिक रूप से निचले पायदानों पर खड़े लोगों की तरफ दिया जा रहा है जिससे उनके वोटों से फिर सरकार में आया जा सके। जबकि व्यापारी और उद्योगपति वर्ग का कहना यह है कि वे न केवल उत्पादन करते हैं, बल्कि सैंकड़ों परिवारों का भरण-पोषण भी करते हैं और उन्हें रोजगार देते हैं। मौजूदा आर्थिक नीतियों ने उनकी हालत इतनी पतली कर दी है कि वे अब अपने कर्मचारियों की छंटनी कर रहे हैं। इससे गांवों में और बेरोजगारी और युवाओं में हताशा फैल रही है। पता नहीं क्यों देश में जहां भी जाओ, वहां केन्द्र सरकार की आर्थिक नीतियों को लेकर बहुत हताशा व्यक्त की जा रही है। लोग नहीं सोच पा रहे हैं कि अब उनका भविष्य कैसा होगा? 

मीडिया के दायरों में अक्सर यह बात चल रही है कि मोदी सरकार के खिलाफ लिखने या बोलने से देशद्र्रोही होने का ठप्पा लग जाता है। हमने इस कॉलम में पहले भी संकेत किया था कि आज से 2500 वर्ष पहले मगध सम्राट अशोक भेस बदल-बदल कर जनता से अपने बारे में राय जानने का प्रयास करते थे। जिस इलाके में विरोध के स्वर प्रबल होते थे, वहीं राहत पहुंचाने की कोशिश करते थे। मैं समझता हूं कि मोदी जी को मीडिया को यह साफ संदेश देना चाहिए कि अगर वे निष्पक्ष और संतुलित होकर रिपोॄटग करते हैं तो वे उनके खिलाफ टिप्पणियों का भी स्वागत करेंगे। इससे लोगों का गुबार बाहर निकलेगा। देश में बहुत सारे योग्य व्यक्ति चुपचाप अपने काम में जुटे हैं। उन्हें ढूंढ कर बाहर निकालने की जरूरत है और उन्हें विकास के कार्यों की प्रक्रिया से जोडऩे की जरूरत है। तब कुछ रास्ता निकलेगा। केवल नौकरशाही पर निर्भर रहने से नहीं। 


 
    

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