गांधी जी का ये संदेश हर भारतीय को सिखाएगा जीने की नई राह

Edited By Punjab Kesari,Updated: 12 Oct, 2017 11:22 AM

gandhijis message will teach every indian a new way of living

एक बार गांधी जी के पौत्र कांतिभाई सेवाग्राम में आश्रम वासी होने आए

एक बार गांधी जी के पौत्र कांतिभाई सेवाग्राम में आश्रम वासी होने आए। कांतिभाई ने गांधी जी से निवेदन किया, ‘‘बापू, 2 धोतियों से काम नहीं चलेगा, कम से कम एक धोती तो मुझे और दी जाए।’’ 


गांधी जी ने कहा, ‘‘2 धोतियों में तो मेरा और सभी आश्रम वासियों का अच्छी तरह काम चल जाता है, तुम्हें तीसरी धोती की जरूरत क्यों? यहां हम सब काफी सादगी और मितव्ययता से रहते हैं।’’


कांतिभाई ने गांधी जी को आश्वस्त करना चाहा कि प्रवास आदि के लिए एक धोती साथ में अतिरिक्त रखी जाए तो ठीक रहेगा परन्तु गांधी जी को यह तर्क समझ में नहीं आया और उन्होंने कांतिभाई से दो टूक कह दिया कि यह देश का काम है। जनता को पाई-पाई का हिसाब देना होता है। हम स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे हैं तो उसका अर्थ यह नहीं कि हम उस धन को चाहे जैसे खर्च करें। यह सोचना गलत होगा कि हमें कोई पूछने वाला नहीं। हमें जनता को जवाब देना चाहिए और मैं तो कहता हूं कि सुविधा का ख्याल रखने वालों को सेवाग्राम से कोई संबंध रखना ही नहीं चाहिए। यहां रहना है तो संयम से ही रहना होगा।’’


गांधी जी का यह व्यवहार देख कर वहां मौजूद एक पत्रकार ने गांधी जी से पूछा, ‘‘बापू, एक धोती की ही तो बात है। इस छोटी-सी बात पर इतना जोर क्यों दे रहे हैं?’’ 


गांधी जी ने तब उन सज्जन को कहा, ‘‘इसे छोटी-सी बात मत समझो। यह संस्कारों की बात है। संग्रह की भावना इसी से उपजती है और समाज में विषमता पैदा करती है। हम कहते हैं कि हमारा काम गरीबों की सेवा करना है तो उसका अर्थ है कि जनता से हम अपनी जरूरत के लिए अल्प से अल्प प्राप्त करें और बदले में अधिक से अधिक दें, तब तो हुई सेवा।’’ 


इतना कह कर गांधी जी चुप हो गए। कांतिभाई को सेवाग्राम में तीसरी धोती नहीं मिली, पर संदेश उन तक पहुंच चुका था।

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