इंदिरा युग से मोदी युग तक: क्या भूलें क्या याद करें

Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Nov, 2017 03:27 AM

from the indira era to the modi era do not forget to remember

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की उत्तराधिकारी इंदिरा प्रियदॢशनी का यह जन्मशती वर्ष है। यदि कांग्रेस का शासन होता, तो शायद उनका गुणगान, महिमामंडन करते हुए समारोहों की बाढ़ लगी होती। आज तो लगता है कि स्वयं कांग्रेस उन्हें भुलाने में ही...

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की उत्तराधिकारी इंदिरा प्रियदर्शनी का यह जन्मशती वर्ष है। यदि कांग्रेस का शासन होता, तो शायद उनका गुणगान, महिमामंडन करते हुए समारोहों की बाढ़ लगी होती। आज तो लगता है कि स्वयं कांग्रेस उन्हें भुलाने में ही अपना भविष्य देखती है जबकि एक समय था कि उनके लिए ‘इंडिया इज इंदिरा और इंदिरा इज इंडिया’ के विशेषणों का इस्तेमाल हुआ और विपक्ष ने उन्हें ‘गूंगी गुडिय़ा’ तक कहा। 

इस सब के बावजूद उनमें कुछ तो ऐसा था जिससे उनके समर्थक उन्हें दीवानगी की हद तक चाहते थे और विरोधी किसी भी कीमत पर उन्हें हटाना चाहते थे। इसीलिए उनका कहना था कि ‘मैं कहती हूं गरीबी हटाओ, वे कहते हैं इंदिरा हटाओ।’ आज केन्द्र और अधिकांश राज्यों में जिस तरह भारतीय जनता पार्टी छाई हुई है, वही स्थिति कभी कांग्रेस की थी। देशभर में इंदिरा गांधी का नेतृत्व था और वही स्थिति प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की है। आज मोदी जी का भी यही कहना है ‘मैं कहता हूं भ्रष्टाचार हटाओ, वे कहते हैं मोदी हटाओ।’ ऐसे में दोनों ही नेताओं के व्यक्तित्व, कार्यशैली और उपलब्धियों को लेकर समानता और विरोधाभास का आकलन स्वाभाविक है। 

सबसे पहले समानताओं की बात करते हैं। जहां तक बड़े-बड़े सपने देखने और उन्हें पूरा करने की दिशा में कदम उठाने की बात है, दोनों ही समान हैं। दोनों ही के शब्दकोष में ‘असंभव’ शब्द नहीं मिलेगा। इसी के साथ दोनों ही का मुकाबला अपने-अपने दल के वरिष्ठ जनों के विरोधी तेवरों से है। जहां तक सामान्य जनता की बात है, तो भावनात्मक रूप से वह इंदिरा गांधी के साथ उतनी ही शिद्दत से जुड़ी थी जितनी मजबूती से आज वह नरेन्द्र मोदी के साथ खड़ी है। विपक्ष हो या अपने ही दल के विरोधी स्वर रखने वाले साथी हों, दोनों नेताओं को लेकर यह अद्भुत समानता दिखाई देती है कि आप चाहे उनसे मोहब्बत करें या नफरत, परन्तु उनकी उपेक्षा करना नामुमकिन है। 

दृढ़ता और जन समर्थन: दोनों ही प्रधानमंत्रियों के लिए किसी के प्रभाव या दबाव में आने की बात कल्पना से भी परे है। जो मोर्चा उन्होंने तय किया, उससे हटने का प्रश्न ही नहीं, चाहे परिणाम कु छ भी हो। अपने भाषणों से दोनों ही में श्रोताओं को मुग्ध करने की अभूतपूर्व क्षमता देखने को मिलती है और मीडिया का प्रेमभाव भी दोनों ही के लिए एक समान है। यदि दोनों ही व्यक्तित्वों में असमानताओं को देखें तो वर्तमान प्रधानमंत्री केवल एक ही अंतर से इंदिरा गांधी से बहुत आगे हैं। वह यह है कि नरेन्द्र मोदी के लिए परिवार, सगे-संबंधी और अपने लोगों के साथ किसी तरह की रियायत करने की बात सोची भी नहीं जा सकती, वहीं इंदिरा गांधी अपने परिवार को ही देश पर शासन करने के योग्य और शासन का उत्तराधिकारी मानती थीं। 

प्रधानमंत्री की योग्यता के लिए किसी भी कसौटी पर खरे न उतरने के बावजूद वह अपने पुत्रों में भारत का भविष्य तलाशती थीं। यही नहीं, एक दल के रूप में कांग्रेस को भी अपने पारिवारिक दायरे से कभी उन्होंने बाहर निकलने नहीं दिया। दुर्भाग्य से आज उनकी मृत्यु को 3 दशक से अधिक समय व्यतीत होने पर भी कांग्रेस की कल्पना केवल गांधी परिवार तक ही सीमित है।

जिस प्रकार इंदिरा शासन में उनके विरोधियों के पास बिना किसी ठोस आधार या वैकल्पिक व्यवस्था के केवल इंदिरा हटाओ का एजैंडा था, उसी प्रकार आज विपक्ष के पास बिना किसी नीति के मोदी हटाओ की मुहिम है। सौभाग्य की बात यह है कि जनमानस का समर्थन जिस तरह तब इंदिरा गांधी के साथ था, वही आज नरेन्द्र मोदी के साथ है। इसलिए किसी उथल-पुथल की संभावना न तब थी, न अब है। तब इंदिरा गांधी से नफरत के आधार पर उन्हें हटाने की बात की जाती थी, आज नरेन्द्र मोदी को केवल नापसन्द करने के आधार पर हटाने का सपना देखा जाता है। 

यदि हम उपलब्धियों की बात करें तो देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा सुनिश्चित करने की नींव इंदिरा गांधी द्वारा ठीक उसी प्रकार रखी गई, जैसे कि किसी ऊबड़-खाबड़ जमीन पर भवन निर्माण से पहले उसे समतल करना जरूरी होता है। इंदिरा गांधी ने भारत रूपी भवन की नींव मजबूत करने के लिए जो कदम उठाए, उनमें राजा-महाराजाओं को मिलने वाले प्रिवीपर्स की समाप्ति, बैंकों से लेकर खनिज संसाधनों तथा आवश्यक सेवाओं का राष्ट्रीयकरण, कृषि के क्षेत्र में हरित क्रांति का सूत्रपात, वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास और आधुनिक संचार और उपग्रह संसाधनों का देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में उपयोग शामिल हैं और सबसे बड़ा यह कि पाकिस्तान के दो टुकड़े करके उसे हमेशा के लिए पंगु बना देना। कह सकते हैं कि उनके काल में जमीन समतल हो चुकी थी लेकिन उनकी हत्या के बाद जितने भी कांग्रेसी प्रधानमंत्री आए, उनके काल में समतल जमीन फिर से बंजरपन का शिकार होती गई। 

चुनौतियां: आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास एक बार फिर देश को भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, रिश्वतखोरी और लूट-खसूट से मुक्त कराने की चुनौती है, जिसकी खुली छूट का बीज इंदिरा शासन के दौरान पड़ चुका था। उनके बाद कांग्रेसी सरकारों के शासन में उसमें अंकुर फूटे और वर्तमान सरकार के आने तक इन सभी दुर्गुणों की खेती पूरी तरह लहलहा रही थी। वर्तमान भाजपा सरकार के सामने यही चुनौती है कि ऊसर पड़ गई सोच और दीमक लग चुकी व्यवस्था को कैसे बदला जाए। जहां तक सोच की बात है अभी भी जातिवाद, धार्मिक संकीर्णता, अंधविश्वास और पाखंडी व्यवहार हमारे देश के नेतृत्व को बुरी तरह जकड़े हुए हैं। ‘यथा राजा तथा प्रजा’ के अनुसार, सामान्य व्यक्ति के सामने टुकुर-टुकुर निहारने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं है। 

इंदिरा शासन में जिस प्रकार अपने फायदे के लिए अराजक तत्वों को प्रोत्साहन मिलने का परिणाम आत्मघाती हुआ, उसी प्रकार यदि समय रहते जाति और धर्म के आधार पर किए जाने वाले भेदभाव को रोकने में भाजपा ने ढील बरती, तो उसका भविष्य भी कांग्रेस जैसा हो सकता है। इसका ताजा उदाहरण ‘पद्मावती’ फिल्म को लेकर हो रहे उन्माद पर सरकार की चुप्पी और कोई कानूनी कार्रवाई तक न करना है। इसी तरह गौमांस को लेकर हत्या तक हो जाने पर भी चुप बैठना तथा राम मंदिर को लेकर अनाप-शनाप बयानबाजी पर कोई रोकटोक न करना इसी तरह की बातें हैं, जिनका भाजपा और नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता पर गहरा असर पड़ रहा है। 

इंदिरा गांधी की सबसे अधिक आलोचना उनके द्वारा एमरजैंसी लगाए जाने को लेकर होती है और जो उनके सत्ता से हाथ धोने का कारण भी बना। आज  यदि समय रहते लोगों को जोडऩे की बजाय तोडऩे की प्रक्रिया पर अंकुश न लगाया गया तो आर्थिक सुधारों को गतिमान करने के लिए उठाए गए कदम और रेरा जैसा कानून लागू करने तथा स्वरोजगार को बढ़ावा देने के उपाय व्यर्थ हो सकते हैं और देश एक बार फिर डावांडोल होने की स्थिति में आ सकता है।-पूरन चंद सरीन

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